Gyan Ganga: ज्ञान और शक्ति का संगम: भगवान शंकर ने बताया असली बल का रहस्य

By सुखी भारती | Aug 07, 2025

संसार में मानव रुप में असंख्य ही मनुष्यों का आगमन होता है। किंतु उन मानव जीवों में, कितने मनुष्य देवत्च को प्राप्त होते हैं, यह विचार करने वाली बात है।


श्री गुरु अर्जुन देव जी के दरबार में एक पहलवान आता है। वह ऐसा पहलवान था, जो आज तक एक भी दंगल नहीं हारा था। उसके नाम का डंका दूर दूर तक बजता था। उसका सर्वत्र ऐसा भय था, कि उसका नाम सुनते ही बड़े बड़े पहलवान, दंगल में उससे भिड़ने की बजाये, अपना गाँव छोड़ कर भाग जाते थे। वह श्री गुरु अर्जन देव जी के दरबार में आकर, उन्हें प्रणाम तो करता है, किंतु उसके प्रणाम करने में भी एक अकड़ ही थी। वह गुरु जी के समक्ष भी तन कर ही खड़ा था। गुरु जी ने उससे पूछा, कि तुम इतने बलवान व हट्टे कट्टे हो, क्या करते हो?

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: शिव-पार्वती ने खोला मानव जीवन का सबसे बड़ा रहस्य!

तो पहलवान बोला-मैं पहलवान हुँ गुरु जी! कुश्ती लड़ता हुँ। मेरे समक्ष जो भी पहलवान आता है, मैं उसे नीचे पलटनी देकर नीचे गिराने में, एक क्षण भी नहीं लगाता। मेरा गिराया हुआ, जीवन भर नहीं उठ पाता। भागना तो बहुत दूर की बात, वह चलने फिरने को भी विवश रहता है।


गुरु अर्जुन देव जी ने मुस्कराते हुए कहा-हे पहलवान! आपकी इस चौड़ी छाती व बलवान शरीर का हम सम्मान करते हैं। किंतु तब भी इस सुंदर व बलवान शरीर का लाभ ही क्या, अगर आपका बल किसी को गिराने के काम आये। बल तो वह है, जो किसी को उपर उठाने के कार्य में लगे। किसी को नीचे न गिराकर, उसे सम्मान के उच्च पद पर पहुँचाने में लगे। हे पहलवान! तुम्हारा कौशल परपीड़ा हरने वाला न होकर, पीड़ा पहुँचाने वाला है। इसलिए ऐसे बल की इस पावन दरबार में कोई महिमा नहीं।


ठीक भगवान शंकर भी देवी पार्वती को कहते हैं-


‘कुलिस कठोर निठुर सोइ छाती।

सुनि हरिचरित न जो हरषाती।।

गिरिजा सुनहु राम कै लीला।

सुर हित दनुज बिमाहनसीला।।’


अर्थात हे पार्वती! जो कोई व्यक्ति इस भ्रम में हो, कि मेरी छाती सबसे चौड़ी है। तो मैं कह देना चाहता हुँ, कि केवल चौड़ी छाती से ही कल्याण नहीं होने वाला। उस चौड़ी छाती में किसी का हृदय ही संकीर्ण है, तो फिर क्या लाभ? चौड़ी छाती में समाया हृदय, प्रभु के पावन चरित्रें को सुनकर हरषाता ही नहीं है, तो बिना वाद विवाद के यह मान लेना उचित है, कि वह छाती वज्र के समान है।


भगवान श्रीराम जी से जब श्रीहुनमान जी प्रथम भेंट करते हैं, तो श्रीराम उन्हें अपनी छाती से ही लगाते हैं। क्योंकि वे जानते थे, कि हमारी प्रतीक्षा को अपनी छाती में संजोकर, श्रीहनुमान जी कब से टकटकी लगाये बैठे थे। क्या उनका बल व प्रतिभा इतना कम था, कि वे सुग्रीव के चौकीदार बनते? सुग्रीव ने उन्हें यही देखने के लिए ही तो बिठाया था, कि कहीं मेरा शत्रु बाली तो नहीं आ रहा? किंतु सुग्रीव को क्या पता था, कि श्रीहनुमान जी बाली की नहीं, अपितु मेरी बाट जोह रहे थे। उनकी छाती अगर द्रवित होती थी, तो मेरी याद में, मेरे प्रति वैराग्य में होती थी। सोचो जो श्रीहनुमान जी बचपन में ही सूर्य को मुख में डाल कर, उसे बँधी बनाने की क्षमता रखते हों, वे भला बालि को क्या ही समझने वाले थे। किंतु इतना अथाह बल होने के पश्चात भी, वे सुग्रीव के चौकीदार बनकर मेरी प्रतीक्षा करते रहे। क्योंकि उनकी छाती द्रवित ही हमारा दर्शन करके होनी थी। ऐसे भक्त, जिनकी छाती में सदैव हम बसते हों, उन्हें हम भी अपनी छाती से ही लगाते हैं। उनका स्थान सदा से ही हमारे हृदय में होता है।


क्रमशः


- सुखी भारती

प्रमुख खबरें

कौन है असली ग्रुप ऑफ डेथ? FIFA World Cup 2026 ड्रॉ के बाद विश्लेषकों की राय, इन ग्रुप्स पर टिकी नजरें

India-US Trade Pact: 10 दिसंबर से शुरू होगा पहले चरण का मंथन, टैरिफ पर हो सकती है बात

रूस में फैलेगा पतंजलि का साम्राज्य, MoU साइन, योग और भारतीय संस्कृति का बढ़ेगा प्रभाव

Horoscope 07 December 2025 Aaj Ka Rashifal: सभी 12 राशियों का कैसा रहेगा आज का दिन, पढ़ें आज का राशिफल