SIR के अतिरिक्त काम को 'बोझ' नहीं देश के लिए 'योगदान' देने का अवसर समझें BLO

By नीरज कुमार दुबे | Nov 18, 2025

भारत में मतदाता सूची का शुद्धिकरण मात्र एक प्रशासनिक कार्य नहीं, बल्कि लोकतंत्र की गुणवत्ता और उसकी विश्वसनीयता को मजबूत करने वाला राष्ट्रहित का अभियान है। विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) का उद्देश्य है कि हर योग्य मतदाता को मतदान अधिकार मिले और फर्जी या निष्क्रिय नाम हटाए जाएँ। लेकिन हाल के दिनों में केरल, तमिलनाडु और राजस्थान से आई आत्महत्या और विरोध से जुड़ी खबरों ने इस महत्वपूर्ण अभियान के प्रति नकारात्मक वातावरण बना दिया है। सवाल यह नहीं कि काम का दबाव था या नहीं, बल्कि यह कि क्या समस्याओं का समाधान संवाद, शिकायत और सहयोग से होना चाहिए या आत्महत्या जैसे कठोर कदमों से?


केरल में BLO अनीश जॉर्ज और राजस्थान में BLO मुकेश जांगिड की आत्महत्या ने भावनात्मक माहौल तो बना दिया, लेकिन इससे SIR के खिलाफ अनावश्यक नकारात्मकता भी फैलने लगी है। निश्चित रूप से यदि किसी कर्मचारी पर अनुचित दबाव या प्रशासनिक अव्यवस्था हो तो संबंधित विभाग, वरिष्ठ अधिकारियों और कर्मचारी संगठनों के माध्यम से उसकी शिकायत की जानी चाहिए। प्रशासनिक व्यवस्थाएं संवाद के लिए बनी हैं, संघर्ष या आत्मसमर्पण के लिए नहीं।

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देखा जाये तो दुःखद घटनाओं को तर्कहीन विरोध का आधार बनाना उस लोकतांत्रिक व्यवस्था की अनदेखी है जो प्रत्येक कर्मचारी को अपनी बात रखने का मंच देती है। आत्महत्या न तो समाधान है और न ही संदेश— यह केवल व्यक्तिगत, पारिवारिक और संस्थागत पीड़ा का स्रोत बनती है। यह सत्य है कि BLOs के ऊपर कई जिम्मेदारियाँ होती हैं— स्कूल का कार्य, राजस्व विभाग का दायित्व, पंचायत या नगरपालिका की गतिविधियाँ और साथ ही मतदाता सूची पुनरीक्षण। लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि हर महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्य में कुछ अतिरिक्त प्रयास की अपेक्षा स्वाभाविक है।


SIR एक साधारण प्रक्रिया नहीं, बल्कि राष्ट्र के लोकतंत्र की बुनियाद को मजबूत करने का अभियान है। यह सुनिश्चित करता है कि कोई पात्र नागरिक मतदान से वंचित न रहे और कोई फर्जी नाम लोकतंत्र की शुचिता को प्रभावित न करे। ऐसे में यदि किसी कर्मचारी के हिस्से में थोड़ा अतिरिक्त श्रम आता है, तो इसे राष्ट्रहित में श्रमदान की तरह स्वीकार करना चाहिए। अगर BLOs अपना दायित्व सकारात्मक सोच के साथ निभाएं, तो यह बोझ नहीं, बल्कि गौरव की भूमिका बन सकती है— एक ऐसी भूमिका जो चुनाव की विश्वसनीयता का आधार तैयार करती है।


तमिलनाडु में कुछ कर्मचारी संगठनों ने एसआईआर अभियान के बहिष्कार की घोषणा की है, मगर ज़रूरत इस बात की है कि बहिष्कार या नकारात्मक माहौल बनाने की बजाय, प्रक्रियाओं को सरल बनाने, समयसीमा को व्यावहारिक बनाने और डिजिटल प्रशिक्षण देने जैसे रचनात्मक सुझाव दिए जाएँ। यदि रात में बैठकें करना समस्या हैं, तो उनके समय को विनियमित किया जा सकता है, लेकिन प्रक्रिया को रोकना समाधान नहीं है। वहीं राजस्थान के कर्मचारी संगठन की यह बात विचारणीय है कि “गुणवत्ता मात्रा पर भारी होनी चाहिए।” निश्चित रूप से सही तथ्य जरूरी हैं, लेकिन यह गुणवत्ता भी तभी संभव है जब हम जिम्मेदारियों से भागने की बजाय, उन्हें सही तरीके से निभाने का मार्ग खोजें।


यह भी आवश्यक है कि सरकार और चुनाव आयोग BLOs को उचित प्रशिक्षण, पर्याप्त समय, तकनीकी सहयोग और मानदेय उपलब्ध कराएं। यदि प्रशासन सहयोगी और संवेदनशील हो, तो कर्मचारी भी प्रेरित होकर इस अभियान में नई ऊर्जा के साथ भाग लेंगे। लेकिन इसी के साथ कर्मचारियों को भी चाहिए कि छोटी-छोटी प्रशासनिक बाधाओं को जीवन-मूल्य के साथ न जोड़ें, बल्कि रचनात्मक तरीके से समस्या का समाधान खोजें।


बहरहाल, मतदाता सूची सिर्फ एक दस्तावेज नहीं, बल्कि लोकतंत्र का जन-धर्म है। इसमें कार्यरत BLOs और कर्मचारी केवल सरकारी अधिकारी नहीं, बल्कि लोकतंत्र के अग्रिम पंक्ति के सिपाही हैं। अगर थोड़ा अतिरिक्त दायित्व आया है, तो यह बोझ नहीं, बल्कि योगदान का अवसर है। यह समय नकारात्मक माहौल बनाने का नहीं, बल्कि लोकतंत्र की शुचिता हेतु कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ने का है।


-नीरज कुमार दुबे

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