By अभिनय आकाश | Oct 28, 2025
जब आसामान में बादशाहत की जंग छिड़े और चीन व पाकिस्तान अपनी ताकत के झूठे दावे करने लगे। उस वक्त भारत ऐसा दांव चलता है जो पूरा खेल ही पलट देता है। अगर ये सौदा हकीकत में उतर गया तो भारतीय वायु सेना की ताकत सौ गुणा बढ़ जाएगी। सुखोई एसयू 57 यानी रूस का सुपर हंटर जेट की बात हम कर रहे हैं। खबर है कि भारत और रूस के बीच 84 एसयू 57 की डील लगभग फाइनल स्टेज में पहुंच चुकी है। यानी की अब वो घड़ी करीब है जब भारत के स्कावर्डन में आसमान के नए योद्धा शामिल होंगे। लेकिन ये सिर्फ एक डील नहीं बल्कि भारत की नई रणनीति और एक ऐसा मास्टरस्ट्रोक जो चीन व पाकिस्तान दोनों के वॉर रूम में सन्नाटा फैला देंगे। साल 2018 में भारत ने इसी प्रोजेक्ट यानी कि एफजीएफए यानी फिफ्थ जेनरेशन एयरक्रॉफ्ट से हाथ खींच लिया था। लेकिन तब इसमें कुछ तकनीकी सीमाएं थी। इंजन, स्टील्थ और मेंटेनेंस के मुद्दे थे।
पिछले सात साल में रूस ने अपने हंटर को ऐसा अपग्रेड किया कि ये दुनिया के सबसे घातक फाइटर्स में गिना जाता है। एसयू 57 को नाटो पैलन नाम देता है। अब अपने नाम के मुताबिक ये सच में दुश्मनों का सबसे बड़ा डर बन चुका है। रूस ने भारत को 84 Su-57 स्टील्थ फाइटर जेट्स की पेशकश की है और सूत्रों के मुताबिक इस डील पर बातचीत लगभग फाइनल स्टेज में पहुंच चुकी है। इन विमानों की पहली दो स्क्वाड्रन रूस से सीधे भारत को मिलेंगी, जबकि बाकी तीन से पांच स्क्वाड्रन का निर्माण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा भारत में किया जाएगा।
एफ-35 की बात करें तो, अमेरिका का अपना स्टील्थ लड़ाकू विमान भी पूरी तरह से समस्यामुक्त नहीं रहा है। लॉकहीड मार्टिन के लाइटनिंग II को लागत में बढ़ोतरी, तकनीकी समस्याओं और परिचालन संबंधी सीमाओं का सामना करना पड़ा है। इस कार्यक्रम की विकास लागत बढ़कर इतिहास की सबसे महंगी सैन्य परियोजनाओं में से एक बन गई। शुरुआती F-35 विमानों में व्यापक सुधार की आवश्यकता थी, जेट में ऑक्सीजन प्रणाली की समस्याएँ थीं, और इसकी बंदूक की सटीकता संबंधी समस्याओं को हल करने में वर्षों लग गए। मुद्दा यह नहीं है कि Su-57 क्षमता में F-35 के बराबर है, अधिकांश विश्लेषक इस बात से सहमत नहीं हैं, बल्कि यह है कि उन्नत स्टील्थ लड़ाकू विमान विकसित करना संयुक्त राज्य अमेरिका सहित सभी के लिए बेहद कठिन है।
भारत के लिए, चुनाव केवल एक दोषपूर्ण रूसी विकल्प और एक आदर्श अमेरिकी विकल्प के बीच नहीं है। एफ-35 के साथ कुछ शर्तें जुड़ी हैं, जिनमें संशोधनों और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर प्रतिबंध शामिल हैं, जिनका भारत आमतौर पर विरोध करता है। एसयू-57, अपनी सीमाओं के बावजूद, अनुकूलन और स्थानीय निर्माण के लिए अधिक लचीलापन प्रदान करता है। कोई भी विकल्प आदर्श नहीं है, यही कारण है कि भारत कार्यक्रम की धीमी प्रगति के बावजूद एएमसीए का विकास जारी रखे हुए है।