चीता ने दूसरी बार मौत को दिया चकमा, गोली लगने के बावजूद आतंकियों का कर चुके हैं खात्मा

By अनुराग गुप्ता | Jun 25, 2021

जम्मू-कश्मीर के बांदीपुरा में 9 गोलियां खाने के बाद भी मौत को चकमा देने वाले केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के अधिकारी चेतन चीता ने एक बार फिर से जंग जीत ली है। इस बार भी उन्होंने मौत को चकमा दे दिया है। कुशल रणनीति और हौसले के दम पर उन्होंने आतंकवादियों को नाको चने चबाने में मजबूर किया था और इस बार कोरोना वायरस संक्रमण से मुकाबला कर वापस घर लौटे हैं। 

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चेतन चीता को कोरोना वायरस संक्रमण ने जकड़ लिया था। जिसकी वजह से उनकी स्थिति काफी नाजुक बताई जा रही थी और उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था। बता दें कि चेतन चीता का उपचार हरियाणा के झज्जर में स्थित एम्स अस्पताल में हुआ। जहां दो महीने तक उन्होंने कोरोना के खिलाफ जंग लड़ी और अब वह स्वस्थ होकर घर वापस आ गए हैं।

कीर्ति चक्र से सम्मानित चेतन चीता के बारे में एक डॉक्टर ने जानकारी दी कि अस्पताल के सभी कर्मचारियों ने उनकी अच्छी देखभाल की है। उन्होंने बताया कि चेतन चीता ने सीआरपीएफ के अधिकारी के तौर पर कई सारे लोगों की जान बचाई है और अब उन्हें बचाने की हरसंभव कोशिश करने की बारी थी। अंग्रेजी समाचार वेबसाइट 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' की रिपोर्ट के मुताबिक डॉक्टर सुषमा भटनागर ने बताया कि चेतन चीता की स्थिति इतनी ज्यादा खराब थी कि उन्हें दो बार वेंटिलेटर पर शिफ्ट करना पड़ा था। पहली बार 30 मई को तो दूसरी बार 10 जून को उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया। 

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ऑक्सीजन सपोर्ट की होगी जरूरत

उन्होंने बताया कि चेतन चीता को घर पर न्यूनतम ऑक्सीजन सपोर्ट की आवश्यकता होगी। उनके परिवार को तेजी से ठीक होने के लिए फिजियोथेरेपी जारी रखने की सलाह दी गई है।

9 गोलियां खाने के बाद भी नहीं टूटा था हौसला

जम्मू-कश्मीर के बांदीपुरा में 14 फरवरी, 2017 को आतंकवादियों के छिपे होने की जानकारी प्राप्त हुई थी। जिसके बाद सेना, पुलिस और सुरक्षाकर्मियों ने मिलकर ज्वाइंट ऑपरेशन किया था। इस दौरान घात लगाकर बैठे आतंकवादियों ने ताबड़तोड़ गोलीबारी की। इस मुठभेड़ में सीआरपीएफ के चेतन चीता को 9 गोलियां लगी। जिसमें से एक गोली उनकी आंख में भी लगी थी। इसके बावजूद उन्होंने 3 आतंकवादियों को ढेर कर दिया।

9 गोलियां खाने वाले चेतन चीता एक महीने तक कोमा में रहे और फिर ठीक होने के बाद वापस ड्यूटी ज्वाइन कर ली थी। उनके इस अदम्य साहस के लिए उन्हें कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था।

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