Vanakkam Poorvottar: असम में चल रहे खतरनाक 'पैटर्न' का खुलासा, CM Himanta बोले- वो पहले घर किराये पर लेते हैं, फिर गाय काटते हैं फिर मस्जिद खोलते हैं

By नीरज कुमार दुबे | Aug 07, 2025

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने दावा किया है कि उन्होंने "अवैध मुस्लिम घुसपैठियों" द्वारा अतिक्रमण का एक "पैटर्न" पहचाना है। उन्होंने कहा है कि ये मुस्लिम घुसपैठिए पहले किराये पर मकान लेते हैं, फिर उस परिसर में गाय की बलि देते हैं। मुख्यमंत्री ने मकान मालिकों को चेतावनी देते हुए कहा, "उनकी संस्कृति हमारी संस्कृति से मेल नहीं खाती। अगर वे परिसर में गाय काट देते हैं, यह कहते हुए कि ‘हम बीफ खा सकते हैं’, तो पास के मंदिर को हटना पड़ेगा।'' उन्होंने कहा कि असम में असली समस्या किराये के मकान हैं।


उन्होंने कहा, "पहले वे (अवैध मुस्लिम घुसपैठिए) मकान किराये पर लेते हैं, फिर गाय काटते हैं, फिर वहाँ मस्जिद बनती है। इससे सतरा (असम के वैष्णव मठ) को क्षेत्र छोड़ना पड़ता है। यह असम में एक स्थापित पैटर्न बन चुका है।" उन्होंने छात्र संगठनों और एनजीओ को ऐसे "पैटर्न" की पहचान करने के लिए कहा।" हालाँकि उन्होंने कहा कि किसी अन्य को कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। उन्हें घरों पर नहीं जाना चाहिए। यह सरकार का काम है। लोग केवल मकान मालिकों से पूछ सकते हैं कि उन्होंने मुसलमानों को किराये पर मकान क्यों दिया। इससे हमारे क्षेत्र की पवित्रता नष्ट होती है। उन्होंने कहा कि ऐसा अनुरोध करने में कोई बुराई नहीं है।

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हम आपको बता दें कि एक वायरल वीडियो में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने मुस्लिम पत्रकारों की एक कथित बैठक (जून में जमात-ए-इस्लामी हिंद द्वारा आयोजित) की ओर इशारा करते हुए कहा: "क्या आपने कभी हिंदू पत्रकारों की कोई बैठक देखी है? लेकिन उन्होंने (मुस्लिमों ने) एक बैठक की। यह सच है। हमारा समुदाय लगातार दबाव में है। कुछ लोग हार मान चुके हैं और कुछ अब भी संघर्ष कर रहे हैं। जो संघर्ष कर रहे हैं, उन्हें डिबेट शो में बुलाकर अपमानित किया जाता है ताकि वे हतोत्साहित हो जाएं।" उन्होंने चेतावनी दी: "आख़िरकार, आपको अपनी बहनों की शादी इन लोगों से करनी पड़ेगी।"


हम आपको यह भी बता दें कि असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा द्वारा बार-बार बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर दी जा रही चेतावनियाँ राज्य की राजनीति और समाज में एक खास विमर्श को जन्म देती हैं। उनका यह कहना कि ये घुसपैठिए राज्य का "जनसांख्यिकी संतुलन" बिगाड़ रहे हैं, एक गंभीर आरोप है, जिसे केवल भावनात्मक या राजनीतिक लहजे में नहीं, बल्कि ऐतिहासिक, सामाजिक और कानूनी संदर्भों में समझना आवश्यक है।


देखा जाये तो असम में अवैध घुसपैठ का मुद्दा नया नहीं है। 1979 से 1985 तक चला असम आंदोलन और 1985 में हुआ असम समझौता इस चिंता की पुष्टि करते हैं कि सीमावर्ती क्षेत्रों में विदेशियों की घुसपैठ ने स्थानीय नागरिकों की पहचान, संसाधनों और रोजगार पर असर डाला है। असम की संस्कृति, भाषा और सामाजिक ताने-बाने को लेकर लोगों में जो डर है, वह पूरी तरह निराधार नहीं कहा जा सकता। इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार को अवैध घुसपैठ पर सख्त कार्रवाई करनी ही चाहिए। असम की सीमाएं सुरक्षित हों, नागरिकता की पहचान स्पष्ट हो और राज्य की सामाजिक संरचना संतुलित रहे, यह एक वैध प्रशासनिक चिंता है।


बहरहाल, हम आपको यह भी बता दें कि असम के मुख्यमंत्री सिर्फ बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ आक्रामक नहीं हैं बल्कि मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों के प्रति भी जागरूक करते रहते हैं। अपने हालिया बयान में उन्होंने कहा है कि एक ही असम में दो समाज बसते हैं। एक वह, जहां 22 साल की बेटियां विश्वविद्यालय जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करती हैं और दूसरा वह है जहां 14 साल की बच्चियों पर शादी कर उन पर माँ बनने का दबाव डाला जाता है। उन्होंने कहा कि हम इसी सामाजिक विषमता को मिटाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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