By अनन्या मिश्रा | Oct 18, 2024
हम सभी महाभारत की कहानी के बारे में जानते हैं। महाभारत काल में कौरवों और पांडवों के बीच चौसर का खेल हुआ था। जिसमें पांडवों को हार का सामना करना पड़ा था। खेल में हारने के बाद पांडवों को 12 साल का वनवास और एक साल का अज्ञातवास मिला था। वनवास का समय काटने के लिए पांडव राजस्थान के डूंगरपुर जिले के छापी गांव गए थे।
बताया जाता है कि इस दौरान कौरवों को हराने के लिए और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने महायज्ञ किया था। जिसको पांडव की धुनी के नाम से जाना जाता है। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको पांडवों की धुनी के बारे में बताने जा रहे हैं।
शिव जी को प्रसन्न करने के लिए किया यज्ञ
जब पांडव वनवास काट रहे थे, तब युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव कुछ समय के लिए छापी गांव में रहे थे। उस दौरान कौरवों से युद्ध में जीत हासिल करने के लिए और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने यज्ञ किया था और अपने हाथों से शिवलिंग, नंदी और हवन कुंड बनाए थे। जिसके अवशेष यहां पर आज भी देखने को मिलते हैं। इसको पांडवों की धुनी के नाम से जानते हैं।
हजारों साल पुराने अवशेष
पांडवों की धुनी अभी भी प्रज्वल्लित है। बताया जाता है कि यहां पर यज्ञ करने के बाद ही पांडवों ने कौरवों पर जीत हासिल की थी। यज्ञ के लिए दो शिवलिंग, हवन कुंड, एक नंदी और मूर्तियों के अवशेष बरगद के पेड़ के नीचे हैं। यह अवशेष देखने पर हजारों साल पुराने लग रहे हैं।
वैसी ही है धुनी
बता दें कि यह पर रहने वाले स्थानीय लोग पांडवों की इस धुनी का रख-रखाव करते हैं। गांव के लोगों की मानें, तो आज भी पांडवों की धूनी वैसी ही है, जैसे उस समय हुआ करती थी। हालांकि समय के कारण खंडित हुई धुनी के भागों को ठीक किया गया है।