By भारत भूषण अड़जरिया | Nov 21, 2025
हर साल नवंबर का महीना आते ही देश की राजधानी दिल्ली एक 'गैस चैंबर' में तब्दील हो जाती है। नवंबर 2025 में एक बार फिर दिल्लीवासियों का सांस लेना दूभर हो गया है। सुबह की शुरुआत ताजी हवा से नहीं, बल्कि धुंध की एक मोटी चादर और आंखों में जलन के साथ हो रही है। लगातार गिरती वायु गुणवत्ता को देखते हुए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के विशेषज्ञों ने इसे ‘मेडिकल इमरजेंसी’ करार दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली का प्रदूषण अब केवल पर्यावरणीय समस्या नहीं, बल्कि लोक स्वास्थ्य का बड़ा खतरा बन गया है।
वर्तमान स्थिति के ताजा आंकड़ों के अनुसार, नवंबर 2025 के मध्य में दिल्ली के कई इलाकों (जैसे बवाना, वजीरपुर, और जहांगीरपुरी) में AQI 'गंभीर' (Severe) श्रेणी में दर्ज किया गया है। कुछ स्थानों पर यह 500 के खतरनाक स्तर को भी छू रहा है। स्थिति को देखते हुए 'ग्रैप' (GRAP- Graded Response Action Plan) के कड़े चरण लागू किए गए हैं, जिसमें निर्माण कार्यों पर रोक और BS-III पेट्रोल व BS-IV डीजल गाड़ियों पर प्रतिबंध शामिल हैं।परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के दीर्घकालिक समाधान का समर्थन करते हुए, ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) के तहत प्रतिबंधित सभी गतिविधियों पर साल भर प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने पंजाब और हरियाणा सरकारों को दोनों राज्यों में पराली जलाने के मुद्दे पर वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) के निर्देशों का सख्ती से पालन करने को कहा।
AQI बताता है कि हवा कितनी साफ या प्रदूषित है। जब AQI 0 से 50 के बीच होता है, तब हवा अच्छी मानी जाती है और सेहत पर कोई असर नहीं होता। 51 से 100 के बीच हवा संतोषजनक होती है, जिससे बहुत संवेदनशील लोगों को थोड़ा सांस लेने में परेशानी हो सकती है। 101 से 200 के बीच हवा मध्यम होती है, जो फेफड़ों, अस्थमा या हृदय की बीमारी वाले लोगों को दिक्कत दे सकती है। 201 से 300 तक की हवा खराब होती है और लंबे समय तक इसमें रहने से अधिकतर लोगों को सांस लेने में परेशानी होती है।301 से 400 के बीच हवा बहुत खराब होती है, जिससे लोगों को सांस की बीमारियां हो सकती हैं। जब AQI का लेवल 400 के पार पहुँच जाता है, जैसा कि इन दिनों हो रहा है। तो इसका मतलब है कि हवा में मौजूद PM 2.5 के सूक्ष्म कणों की मात्रा इतनी ज्यादा है कि ये फेफड़ों को गंभीर नुकसान पहुँचा रही है। एक्सपर्ट का साफ अनुमान है कि ऐसे गंभीर प्रदूषण में बिना मास्क के बाहर निकलना या साँस लेना, एक दिन में 20 से 25 सिगरेट पीने के बराबर हो सकता है।जो स्वस्थ लोगों को भी नुकसान पहुंचाती है और बीमार लोगों की हालत और बिगाड़ सकती है।
एम्स के विशेषज्ञों के अनुसार प्रदूषण अब केवल अस्थमा, सांस फूलना और COPD तक सीमित नहीं है। हवा में मौजूद महीन कण रक्तप्रवाह में शामिल होकर हार्ट अटैक और स्ट्रोक का जोखिम भी बढ़ा रहे हैं।बढ़ते प्रदूषण की वजह से रोजाना 20 से 30 मरीज सांस और अन्य प्रदूषणजनित बीमारियों के साथ अस्पताल पहुंच रहे हैं। हवा में मौजूद अल्ट्रा-फाइन कण गर्भवती महिलाओं के शरीर के माध्यम से गर्भस्थ शिशु तक पहुंच रहे हैं। इससे न केवल भ्रूण की वृद्धि प्रभावित होती है बल्कि कम वजन वाले बच्चों के जन्म और आगे चलकर फेफड़ों के कमजोर होने की आशंका भी बढ़ जाती है।
हाल ही में, एक प्रतिष्ठित भारतीय आर्थिक सेवा (IES) अधिकारी ने दिल्ली में वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति और अपने छोटे बेटे के स्वास्थ्य को देखते हुए अपनी ग्रुप 'ए' सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। बढ़ते प्रदूषण के संदर्भ में भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह अनुच्छेद केवल 'जीवन जीने' की बात नहीं करता, बल्कि एक गरिमापूर्ण और स्वस्थ जीवन की गारंटी देता है।सुप्रीम कोर्ट ने कई ऐतिहासिक फैसलों में स्पष्ट किया है कि "जीवन का अधिकार" केवल जानवरों की तरह अस्तित्व में बने रहना नहीं है। बल्कि इसमें स्वच्छ हवा में सांस लेना,प्रदूषण मुक्त जल,स्वच्छ पर्यावरण में रहने जैसे अधिकार शामिल है। यदि प्रदूषण इतना बढ़ जाए कि वह स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाने लगे, तो यह सीधे तौर पर अनुच्छेद 21 का उल्लंघन माना जाता है। बढ़ते प्रदूषण को लेकर हाल ही में जंतर मंतर पर LetUsBreathe नामक एक विरोध प्रदर्शन किया गया। जिसमें LetUsBreathe केवल एक राजनीतिक नारा नहीं था, बल्कि यह लोगों के स्वास्थ्य को लेकर चिंता को भी दर्शा रहा था। लोग इस बात से नाराज हैं कि हर साल उन्हें इसी जानलेवा स्थिति का सामना क्यों करना पड़ता है, जबकि इस समस्या का समाधान हो सकता है। ये गुस्सा इस मांग पर केंद्रित है कि स्वच्छ हवा को स्वास्थ्य के अधिकार के रूप में देखा जाए।
दिल्ली का प्रदूषण अब एक मौसमी समस्या नहीं, बल्कि एक साल भर रहने वाला संकट बन रहा है जो सर्दियों में जानलेवा हो जाता है। हमें यह समझना होगा कि साफ हवा हमारा अधिकार ही नहीं, बल्कि जीवन की बुनियादी जरूरत है। यदि आज हमने कड़े कदम नहीं उठाए, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए दिल्ली रहने लायक शहर नहीं बचेगा। यह समय 'चिंता' करने का नहीं, बल्कि 'चिंतन' और 'कार्रवाई' का है। आज की जहरीली हवा, कल की गंभीर बीमारी है।
"मुस्कुराइये कि आप दिल्ली में हैं, पर जरा ध्यान रखिये, ये कोहरा नहीं, आपके फेफड़ों का इम्तिहान है।"
- भारत भूषण अड़जरिया
शोधार्थी: दिल्ली विश्वविद्यालय
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ, मीडियाध्यक्ष