प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा करते हुए कहा था कि इसके पीछे मुख्य मकसद कालाधन और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना है साथ ही कश्मीर में आतंकवाद की कमर तोड़नी है। जनता ने प्रधानमंत्री का पूरा साथ दिया और लगभग महीने भर बैंकों की लाइनों में रातें जागकर गुजारीं ताकि खर्चे लायक नकदी मिल सके। नवंबर में नोटबंदी लागू हुई थी और उस समय देश में शादियों का सीजन भी होता है तो आप उनसे जाकर पूछिये जिनकी शादी नवंबर, दिसंबर 2016 में हुई थी। मां-बाप बेहद अरमानों के बावजूद अपने बच्चों की शादी बड़ी मुश्किल से कर पाये थे क्योंकि देश में नगदी संकट व्याप्त था। कई लोगों की तो कथित तौर पर बैंकों की लाइन में खड़े-खड़े ही मृत्यु भी हो गयी थी, लोगों के रोजगार छिन गये थे, छोटे उद्योगों को सर्वाधिक नुकसान झेलना पड़ा था, लेकिन इस देश ने सब कुछ सहा और देश से कालाधन और भ्रष्टाचार खत्म करने के सरकार के उद्देश्य का साथ दिया।
परन्तु यह क्या? नोटबंदी तो विफल हो गयी। मोदी सरकार का एक बड़ा कदम विफल साबित हुआ है क्योंकि नोटबंदी में चलन से हटाये गये 500 और 1,000 रुपये के लगभग सभी पुराने नोट बैंकिंग प्रणाली में लौट आये हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि चलन से हटाये गये 99.3 प्रतिशत नोट बैंकों में वापस में आ गये। इस रिपोर्ट में इस खुलासे के बाद विपक्ष ने सरकार पर हमला बोल दिया। विपक्ष ने सरकार से सवाल किया है कि कालाधन समाप्त करने में नोटबंदी कितनी प्रभावी रही ? यही नहीं नोटबंदी से जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को करारी चोट पहुँचने की बात कही गयी थी लेकिन आज वहां 2016 के मुकाबले आतंकवाद ज्यादा बढ़ गया है। डिजिटल इंडिया की बात कहते हुए सरकार ने कहा था कि लोग नगदी का कम इस्तेमाल करें लेकिन नगदी का प्रचलन पहले की ही तरह हो रहा है। डिजिटल लेन-देन पर तमाम तरह की छूटों के बावजूद नगदी का उपयोग ही ज्यादा हो रहा है।
आरबीआई की विफलता
सवाल उठता है कि सरकार ने क्या आधी-अधूरी तैयारी के साथ नोटबंदी लागू कर दी थी ? या फिर लोगों ने सरकार के कदम को विफल करा दिया ? यहाँ यह भी सवाल खड़ा होता है कि जब बैंकों ने लोगों से नोट गिन कर लिये थे और गिन कर आरबीआई के पास जमा कराये थे तो उसका कुल योग निकालने में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को लगभग दो वर्ष का समय क्यों लग गया ? रिजर्व बैंक ने कहा है कि नोटबंदी के समय आठ नवंबर, 2016 को मूल्य के हिसाब से 500 और 1,000 रुपये के 15.41 लाख करोड़ रुपये के नोट चलन में थे और इनमें से 15.31 लाख करोड़ रुपये के नोट बैंकों में वापस आ चुके हैं। इसका मतलब है कि बंद नोटों में सिर्फ 10,720 करोड़ रुपये मूल्य के नोट ही बैंकों के पास वापस नहीं आए हैं। हालांकि, पहले यह अनुमान लगाया गया था कि तीन लाख करोड़ रुपये प्रणाली में वापस नहीं लौटेंगे, क्योंकि इन्हें कर बचाने के लिए देश से बाहर जमा किया हुआ है।
देश को फायदा क्या हुआ?
आरबीआई के आंकड़ों से एक बात साफ है कि नोटबंदी से 10,720 करोड़ रुपए वापस नहीं आये लेकिन दूसरी तरफ आरबीआई ने बंद किये गये 500 और 1000 रुपए के नोटों की जगह 500 और 2,000 रुपये के नए नोट तथा अन्य मूल्य के नोटों की छपाई पर 7,965 करोड़ रुपये खर्च कर दिये। अब अगर 10720 करोड़ रुपए में से नये नोटों पर हुई छपाई की लागत को घटाएं तो पाएंगे कि नोटबंदी से देश को महज 2755 करोड़ रुपए का ही लाभ हुआ। यही नहीं नए करेंसी नोटों की छपाई से रिजर्व बैंक का मुनाफा घटा है और सालाना लाभांश में कमी आई है। 30 जून, 2018 को समाप्त साल में केंद्रीय बैंक ने सरकार को 50,000 करोड़ रुपये स्थानांतरित किए हैं, जबकि इससे पिछले 12 माह के दौरान रिजर्व बैंक ने 30,659 करोड़ रुपये स्थानांतरित किए थे। उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक का वित्त वर्ष जुलाई से जून तक होता है।
विपक्ष हुआ हमलावर
रिजर्व बैंक के आंकड़े आने के बाद पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा है कि सरकार ने कहा था कि तीन लाख करोड़ रुपये वापस नहीं आएंगे। लेकिन हुआ क्या ? चिदंबरम ने कहा कि उन्हें संदेह है कि जो नोट प्रणाली में वापस नहीं आए हैं उनमें से ज्यादातर भूटान और नेपाल में हैं, जहां भारतीय मुद्रा स्वीकार की जाती है। चिदंबरम का आरोप है कि देश को नोटबंदी की भारी कीमत चुकानी पड़ी है। उनका आकलन है कि नोटबंदी से भारतीय अर्थव्यवस्था को डेढ़ प्रतिशत जीडीपी का नुकसान हुआ। यह एक साल में अकेले 2.25 लाख करोड़ रुपये बैठता है।
सरकार का पक्ष
दूसरी तरफ सरकार ने कहा है कि नोटबंदी से जो लक्ष्य तय किये गये थे वह हासिल कर लिये गये हैं। सरकार ने कहा है कि नवंबर 2016 में उच्च मूल्य वर्ग के नोटों को चलन से हटाये जाने का लक्ष्य काफी हद तक हासिल हुआ है। आर्थिक मामलों के सचिव एससी गर्ग के मुताबिक नोटबंदी से कालाधन पर अंकुश, आतंकवादियों को वित्त पोषण, डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देना तथा नकली नोट को समाप्त जैसे मकसद पूरे हुए हैं।
बहरहाल, यह तय है कि जिस तरह कांग्रेस इस मुद्दे पर आक्रामक हुई है उससे आगामी चुनावों के दौरान सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं क्योंकि विपक्षी नेताओं का सरकार से यह पूछने का सिलसिला शुरू हो गया है कि कहां है काला धन? यही नहीं सरकार की सहयोगी शिवसेना ने भी कहा है कि नोटबंदी एक अपराध था और सरकार को इस पर जवाब देना होगा। अब देखना होगा कि आगामी दिनों में प्रधानमंत्री या वित्त मंत्री की ओर से इस मुद्दे पर क्या कहा जाता है। 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा और उसके कुछ दिनों बाद यानि 31 दिसंबर को देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने देश को जो आश्वासन दिये थे और भविष्य के जो सपने दिखाये थे अब उन पर जवाब देने का समय आ गया है।
-नीरज कुमार दुबे