किसी ने पद छोड़ लड़ा राष्ट्रपति चुनाव, किसी ने हार के बाद दिया इस्तीफा, कार्यकाल पूरा होने से पहले रिजाइन करने वाले धनखड़ पहले नहीं

By अभिनय आकाश | Jul 22, 2025

21 जुलाई 2025 दिन सोमवार संसद के मानसून सत्र की कार्यवाही शुरू हुई और शाम होते होते उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इस इस्तीफे में उन्होंने अपने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि अब वो शायद इस पद को नहीं संभाल सकते हैं। उनका स्वास्थ्य पूरी तरह से ठीक नहीं है। राष्ट्रपति को उन्होंने लेटर लिखा। उन्होंने राष्ट्पति को उनके सहयोग और सौहार्दपूर्ण संबंधों के लिए धन्यवाद भी दिया। इसके अलावा प्रधानमंत्री और मंत्रीपरिषद को भी उनके सहयोग और मार्गदर्शन के लिए आभार व्यक्त किया है। उन्होंने आगे लिखा कि मुझे संसद के सभी माननीय सदस्यों ने जो स्नेह विश्वास और सम्मान दिया वो जीवनभर उनके ह्दय में संचित रहेगा। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि अचानक उन्होंने इस्तीफा क्यों दिया? क्योंकि राज्यसभा की कार्यवाही में उन्होंने सभा का संचालन भी किया और उनके स्वास्थ्य को लेकर कोई वैसी बात नहीं लग रही थी। दूसरा बड़ा सवाल ये है कि अब जगदीप धनखड़ के बाद कौन उनके पद को संभालेगा। फिलहाल तो राज्यसभा के उपसभापति उनके इस पद को संभालेंगे। फिर उपराष्ट्रपति को चुनने की प्रक्रिया होगी। 

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धनखड़ इस्तीफा देने वाले पहले नहीं

आपको बता दें कि अपने कार्यकाल के दौरान इस्तीफा देने वाले जगदीप धनखड़ पहले राजनेता नहीं है। उनके पहले वीवी गिरि ने उपराष्ट्रपति पद पर रहते हुए इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने तीन मई 1969 को तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के निधन के बाद कार्यवाहक राष्ट्रपति का पद संभाला था। गिरि ने दो जुलाई 1969 को उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देकर स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति चुनाव लड़ा। वो अपना कार्यकाल पूरा न कर पाने वाले पहले उपराष्ट्रपति थे। भैरों सिंह शेखावत ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल के खिलाफ राष्ट्रपति चुनाव में हारने के बाद 21 जुलाई 2007 को उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया। उपराष्ट्रपति आर वेंकटरमन, शंकर दयाल शर्मा और केआर नारायणन ने भी अपने पदों से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन राष्ट्रपति चुने जाने के बाद।

कौन होगा अगला उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति जगदीपधनखड़ के इस्तीफा देने के बाद सियासी गलियारों में अगले उपराष्ट्रपति के लिए कयासों का दौर शुरू हो गया। अमूमन पहले राष्ट्रपति का चुनाव होता था और बाद में उपराष्ट्रपति। लेकिन अब उपराष्ट्रपति पद का चुनाव दो साल पहले होगा। ऐसे में सवाल कि अब कौन? सरकार से जुड़े एक सीनियर नेता ने कहा कि धनखड़ के अचानक इस्तीफा देने के बाद अब यह बात तय हैं कि सरकार और पार्टी के स्तर तक इसका बढ़ा प्रभाव देखने को मिलेगा। उन्होंने कहा कि यह तय मान कर चलें कि उपराष्ट्रपति संगठन या सरकार के अंदर से कोई सीनियर व्यक्ति ही बनेगा। साथ ही इस घटनाक्रम के बाद केंद्र सरकार में भी बड़े फेरबदल की सुगबुगाहट तेज हो गयी। सूत्र के अनुसार अगर केंद्र सरकार के मंत्रियों में से ही किसी एक को यह जिम्मेदारी दी जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। हालांकि बीजेपी के पास खुद अपने दम पर संख्याबल नहीं है, ऐसे में नए उपराष्ट्रपति के लिए बीजेपी को खासकर नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू दोनों को एक पिच पर लाना होगा। 

नया उपराष्ट्रपति चुनने के लिए संविधान में कोई समयसीमा तय नहीं

राष्ट्रपति पद के लिए, संविधान के अनुसार रिक्त पद को छह महीने के भीतर भरना आवश्यक है। लेकिन उपराष्ट्रपति पद के लिए ऐसी कोई निश्चित समय-सीमा नहीं है। केवल यह आवश्यक है कि पद रिक्त होने के बाद "यथाशीघ्र" चुनाव कराए जाएँ। चुनाव आयोग कार्यक्रम की घोषणा करेगा। यह चुनाव राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव अधिनियम, 1952 के तहत आयोजित किया जाता है। परंपरा के अनुसार, संसद के किसी भी सदन के महासचिव को बारी-बारी से निर्वाचन अधिकारी नियुक्त किया जाता है। आमतौर पर राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उनका पदभार उपराष्ट्रपति को मिलता है। यदि उपराष्ट्रपति का पद खाली है और राष्ट्रपति भी अनुपस्थित हैं यानी देश से कहीं बाहर हैं तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति का पदभार चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को दिया जाता है। इसकी मिसाल न्यायमूर्ति एम हिदायतुल्लाह हैं। 1969 में जब तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन का निधन हो गया तो उपराष्ट्रपति वीवी गिरी राष्ट्रपति बने, पर राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए जब उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया तो करीब तीन हफ्ते के लिए भारत के मुख्य न्यायधीश एम हिदायतुल्लाह ने राष्ट्रपति का पदभार संभाला। संविधान में उपराष्ट्रपति का पद खाली होने पर कितने दिनों बाद जाना चाहिए, इस बारे में कोई समय-सीमा तय नहीं। सांसद, विधायक या राष्ट्रपति की तरह इस पद के लिए छह महीने की समयसीमा तय नहीं है। संविधान के मुताबिक, पद खाली होने पर शीघ्रातिशीघ्र राष्ट्रपति चुन लिया जाना चाहिए।

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भारत में उपराष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है?

उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों - लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों, जिनमें मनोनीत सदस्य भी शामिल हैं, से बने एक निर्वाचक मंडल द्वारा होता है। राष्ट्रपति चुनाव के विपरीत, इसमें राज्य विधानसभाएँ भाग नहीं लेतीं। नई दिल्ली स्थित संसद भवन में, आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार, एकल संक्रमणीय मत के साथ गुप्त मतदान द्वारा मतदान होता है। प्रत्येक सांसद उम्मीदवारों को वरीयता क्रम में क्रमबद्ध करके वोट डालता है। सभी मतों का मूल्य समान होता है। निर्वाचित घोषित होने के लिए, एक उम्मीदवार को आवश्यक न्यूनतम मतों की संख्या - जिसे कोटा कहा जाता है - प्राप्त करनी होती है। इसकी गणना कुल वैध मतों की संख्या को दो से विभाजित करके और एक जोड़कर की जाती है (यदि कोई भिन्न हो, तो उसे छोड़ दिया जाता है)। यदि पहले चरण में कोई भी उम्मीदवार कोटा पार नहीं करता है, तो सबसे कम प्रथम वरीयता वाले मतों वाले उम्मीदवार को हटा दिया जाता है, और उनके मत द्वितीय वरीयता के आधार पर शेष उम्मीदवारों को हस्तांतरित कर दिए जाते हैं। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक कि एक उम्मीदवार कोटा पार नहीं कर लेता। 

उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के लिए पात्रता मानदंड क्या हैं?

उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति को भारत का नागरिक होना चाहिए, कम से कम 35 वर्ष का होना चाहिए, राज्यसभा के लिए निर्वाचित होने के योग्य होना चाहिए और किसी भी संसदीय क्षेत्र में मतदाता के रूप में पंजीकृत होना चाहिए। उन्हें राष्ट्रपति, राज्यपाल या मंत्री जैसे पदों को छोड़कर, केंद्र या राज्य सरकारों के अधीन किसी भी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए।

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