संघर्षों से भरा रहा है द्रौपदी मुर्मू का निजी जीवन, राजनीति से लेना चाहती थी संन्यान, जानें कैसा रहा सियासी सफर

By रेनू तिवारी | Jul 25, 2022

आजाद भारत के 75 साल के इतिहास में पिछले डेढ़ दशक को महिलाओं के लिए खास तौर से विशिष्ट माना जा सकता है। जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने वाली महिलाएं इस दौरान देश के शीर्ष संवैधानिक पद तक पहुंचने में कामयाब रहीं और 2007 में प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनने का गौरव हासिल करने के बाद अब द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना देश की लोकतांत्रिक परंपरा की एक सुंदर मिसाल है। क्या कभी किसी ने सोचा था कि दिल्ली से दो हजार किलोमीटर के फासले पर स्थित ओडिशा के मयूरभंज जिले की कुसुमी तहसील के छोटे से गांव उपरबेड़ा के एक बेहद साधारण स्कूल से शिक्षा ग्रहण करने वाली द्रौपदी मुर्मू एक दिन असाधारण उपलब्धि हासिल करके देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर विराजमान होंगी और देश ही नहीं दुनिया की बेहतरीन इमारतों में शुमार किया जाने वाला राष्ट्रपति भवन उनका सरकारी आवास होगा। 


राष्ट्रपति-निर्वाचित द्रौपदी मुर्मू की सादगी उनकी सफलता की कुंजी है: मुर्मू के शिक्षक

राष्ट्रपति-निर्वाचित द्रौपदी मुर्मू सादगी में विश्वास करती हैं और वह हमेशा दूसरों की सहायता करती रहीं हैं। मुर्मू की शिक्षक और उनके मित्रों ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि मुर्मू बदले में कुछ मांगे बिना जरूरतमंदों की मदद करती हैं। बचपन से ही उनसे जुड़े लोगों का मानना ​​​​है कि सादगी उनकी सफलता की कुंजी है। रायरंगपुर अधिसूचित क्षेत्र परिषद के एक पार्षद से विधायक, मंत्री और राज्यपाल तक का सफर तय करने वालीं मुर्मू सोमवार को देश के राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेंगी। उपरबेड़ा गांव में मुर्मू के उच्च प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक बासुदेव बेहरा ने कहा कि भौतिकवादी आधिपत्य छोड़ना उनका एक अंतर्निहित गुण रहा। बेहरा ने एक घटना को याद करते हुए कहा, ‘‘द्रौपदी के पिता बिरंच टुडू उपरबेड़ा गांव के प्रधान थे और परिवार गरीबी से जूझ रहा था। वह एक फ्रॉक में स्कूल आती थीं और उनके पास ज्योमेट्री बॉक्स नहीं होता था। स्कूल ने उन्हें ज्योमेट्री बॉक्स प्रदान किया था।’’ उन्होंने कहा कि स्कूल में एक छोटा ‘पुस्तक बैंक’ था, जहां से ऐसे छात्र किताबें ले सकते थे जो इन्हें खरीदने का खर्च नहीं उठा सकते थे। बेहरा ने कहा, ‘‘द्रौपदी ने पुस्तक बैंक से किताबें ली थीं। हालांकि, जब उन्होंने हमारे उच्च प्राथमिक विद्यालय में सातवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की, तो उन्होंने न केवल वे किताबें लौटा दीं, बल्कि दूसरों की मदद के लिए अपनी किताबें और नोट्स भी प्रदान किये।’’ इसके अलावा, स्कूल में ब्लैकबोर्ड की सफाई के लिए ‘डस्टर’ भी नहीं थे। मुर्मू के मददगार स्वभाव को याद करते हुए शिक्षक ने कहा, ‘‘द्रौपदी अक्सर सभी कक्षाओं के लिए हाथ से बने डस्टर उपलब्ध कराती थीं। 


दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की पहली आदिवासी राष्ट्रपति

यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति होंगी। महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने के साथ साथ वह देश की कुल आबादी के साढ़े आठ फीसदी से कुछ ज्यादा आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व करती हैं, लेकिन जनजाति की बात करें तो वह संथाल जनजाति से ताल्लुक रखती हैं। भील और गोंड के बाद संथाल जनजाति की आबादी आदिवासियों में सबसे ज़्यादा है। पारिवारिक जीवन की बात करें तो द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में एक संथाल परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम बिरंचि नारायण टुडु है। उनके दादा और उनके पिता दोनों ही उनके गाँव के प्रधान रहे। 


मुर्मू मयूरभंज जिले की कुसुमी तहसील के गांव उपरबेड़ा में स्थित एक स्कूल से पढ़ी हैं। यह गांव दिल्ली से लगभग 2000 किमी और ओडिशा के भुवनेश्वर से 313 किमी दूर है। उन्होंने श्याम चरण मुर्मू से विवाह किया था। अपने पति और दो बेटों के निधन के बाद द्रौपदी मुर्मू ने अपने घर में ही स्कूल खोल दिया, जहां वह बच्चों को पढ़ाती थीं। उस बोर्डिंग स्कूल में आज भी बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं। उनकी एकमात्र जीवित संतान उनकी पुत्री विवाहिता हैं और भुवनेश्वर में रहती हैं। द्रौपदी मुर्मू ने एक अध्यापिका के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन शुरू किया और उसके बाद धीरे-धीरे सक्रिय राजनीति में कदम रखा। साल 1997 में उन्होंने रायरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद चुनाव में जीत दर्ज कर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। 


उनके राष्ट्रपति बनने पर दुनियाभर के नेताओं ने इसे भारतीय लोकतंत्र की जीत करार दिया है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने संदेश में कहा कि एक आदिवासी महिला का राष्ट्रपति जैसे पद पर पहुंचना भारतीय लोकतंत्र की मजबूती का प्रमाण है। उन्होंने कहा कि मुर्मू का निर्वाचन इस बात का प्रमाण है कि जन्म नहीं, व्यक्ति के प्रयास उसकी नियति तय करते हैं। वहीं, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा कि द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्र प्रमुख पद पर पहुंचना उनकी ऊंची शख्सियत का ही परिणाम है।


फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने मुर्मू को राष्ट्रपति बनने पर बधाई दी। वहीं, हाल ही में श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव हारने वाले डलास अल्फापेरुमा ने कहा कि आजादी के बाद जन्म लेने वाली एवं जातीय और सांस्कृतिक रूप से दुनिया के सबसे अनोखे देश की राष्ट्रपति को बधाई। नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर वह द्रौपदी मुर्मू को बधाई देते हैं। द्रौपदी मुर्मू के भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनने के भले कितने भी राजनीतिक अर्थ लगाए जाएं लेकिन इस बात में दो राय नहीं कि यह जातीय और सांस्कृतिक रूप से दुनिया के सबसे अनोखे देश के लोकतांत्रिक सफर में एक खूबसूरत पड़ाव है।

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