By नीरज कुमार दुबे | Dec 22, 2025
पाकिस्तान के रक्षा प्रमुख और सेना अध्यक्ष फील्ड मार्शल असीम मुनीर के अंदर का मौलाना सामने आ गया है। हम आपको बता दें कि मुनीर ने भारत के साथ मई महीने में हुए सैन्य टकराव को लेकर एक चौंकाने वाला बयान दिया है। इस्लामाबाद में आयोजित नेशनल उलेमा कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए उन्होंने दावा किया कि भारत द्वारा किए गए सैन्य हमलों के बाद पाकिस्तान को अल्लाह की विशेष मदद मिली और पाकिस्तानी सेना ने उसे महसूस किया। उनके अनुसार यह मदद चार दिनों तक चले संघर्ष के दौरान स्पष्ट रूप से नजर आई।
अपने भाषण में असीम मुनीर ने भारत के साथ संघर्ष को केवल सैन्य घटना के रूप में नहीं बल्कि धार्मिक संदर्भ में प्रस्तुत किया। उन्होंने कुरान की आयतें पढ़ीं और कहा कि पाकिस्तानी सेना को संघर्ष के दौरान ईश्वरीय हस्तक्षेप का अनुभव हुआ। उनके इस बयान को पाकिस्तान के भीतर सेना की छवि मजबूत करने और धार्मिक भावनाओं को उभारने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। इसी भाषण में असीम मुनीर ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को कड़ी चेतावनी भी दी। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में होने वाली आतंकवादी घुसपैठ में बड़ी संख्या अफगान नागरिकों की है और तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान के लड़ाकों में लगभग सत्तर प्रतिशत अफगान हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या अफगानिस्तान पाकिस्तान के बच्चों का खून बहाने की जिम्मेदारी नहीं लेगा।
पाकिस्तानी सेना प्रमुख ने तालिबान सरकार से साफ शब्दों में कहा कि उसे पाकिस्तान और टीटीपी में से किसी एक को चुनना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि किसी इस्लामी राष्ट्र में जिहाद का एलान करने का अधिकार केवल देश को होता है, किसी व्यक्ति या संगठन को नहीं। बिना देश की अनुमति के जिहाद की बात करना अवैध और अवांछनीय है। असीम मुनीर ने पाकिस्तान की स्थापना की तुलना पैगंबर द्वारा स्थापित प्रारंभिक इस्लामी राज्य से भी की और कहा कि दुनिया के सत्तावन इस्लामी देशों में पाकिस्तान को हरमैन शरीफैन की रक्षा का सम्मान मिला है। हम आपको बता दें कि मुनीर के इस पूरे भाषण में धार्मिक प्रतीकों और सैन्य शक्ति को एक साथ जोड़ने की स्पष्ट कोशिश दिखाई दी।
देखा जाये तो असीम मुनीर का बयान पाकिस्तान की वर्तमान रणनीतिक उलझनों और आंतरिक असुरक्षाओं का आईना है। जब कोई सैन्य प्रमुख आधुनिक युद्ध में हार या दबाव को ईश्वरीय हस्तक्षेप की भाषा में समझाने लगे, तो यह उसकी कमजोरी का संकेत होता है। भारत द्वारा किए गए सटीक हमलों ने यह साफ कर दिया कि आतंकवाद के ढांचे अब सुरक्षित नहीं हैं और पारंपरिक बयानबाजी से जमीनी हकीकत नहीं बदली जा सकती।
सामरिक दृष्टि से आपरेशन सिंदूर ने दक्षिण एशिया की सुरक्षा तस्वीर को नया मोड़ दिया है। भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वह आतंकी हमलों का जवाब सीमा के उस पार जाकर देने में संकोच नहीं करेगा। इससे पाकिस्तान की वह रणनीति कमजोर पड़ी है जिसमें वह परमाणु धमकी और अंतरराष्ट्रीय सहानुभूति के भरोसे आतंकवाद को ढाल की तरह इस्तेमाल करता रहा है। पाकिस्तानी सेना प्रमुख का अफगानिस्तान को दिया गया अल्टीमेटम भी उतना ही खोखला दिखता है। अफगान तालिबान और पाकिस्तान के रिश्ते पहले ही अविश्वास से भरे हैं। तालिबान के सत्ता में आने के बाद टीटीपी को खुली छूट मिली है, जो पाकिस्तान के लिए गंभीर सिरदर्द बन चुका है। सीमा पार से होने वाले हमले पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा को लगातार खोखला कर रहे हैं, लेकिन इस सच्चाई को स्वीकार करने की बजाय सारा दोष काबुल पर डाल देना आसान रास्ता है।
अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति भी किसी से छिपी नहीं है। वहां की सरकार अंतरराष्ट्रीय मान्यता के लिए संघर्ष कर रही है और आर्थिक संकट से जूझ रही है। ऐसे में पाकिस्तान की धमकी भरी भाषा हालात को सुधारने की बजाय और बिगाड़ सकती है। यदि पाकिस्तान सच में सीमा पार आतंकवाद रोकना चाहता है तो उसे दोहरे खेल से बाहर आना होगा, जिसमें वह कुछ संगठनों को अच्छा और कुछ को बुरा बताता है।
असीम मुनीर का यह कहना कि जिहाद का अधिकार केवल देश को है, अपने आप में एक विरोधाभास है। दशकों तक पाकिस्तान की धरती से पनपे आतंकी संगठनों को सरकार का मौन समर्थन मिलता रहा है। अब जब वही संगठन सरकार के लिए खतरा बन गए हैं, तो धार्मिक व्याख्याओं की आड़ में खुद को पाक साफ दिखाने की कोशिश हो रही है।
भारत के लिए यह घटनाक्रम एक स्पष्ट संदेश देता है कि पड़ोसी देश की नीति अभी भी भ्रम और अंतर्विरोध से भरी है। सामरिक स्तर पर भारत को अपनी सतर्कता और जवाबी क्षमता बनाए रखनी होगी। साथ ही अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह बात मजबूती से रखनी होगी कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई केवल शब्दों से नहीं, ठोस कार्रवाई से लड़ी जाती है।
कुल मिलाकर असीम मुनीर का भाषण आस्था, डर और दबाव का मिला जुला दस्तावेज है। इसमें आत्मविश्वास कम और असमंजस ज्यादा झलकता है। जब सेना प्रमुख ईश्वरीय मदद की बात करने लगें, तो समझ लेना चाहिए कि जमीन पर हालात उतने मजबूत नहीं हैं जितना दिखाने की कोशिश की जा रही है।