हाथी दादा की कूद (कविता)

By अमृता गोस्वामी | Feb 28, 2017

चले जा रहे थे हाथी दादा, चलते चाल अपनी मतवाली।
हंसा जोर से बंदर चाल पर, दिखाई कूद अपनी उछलक।

देख चाल हाथी की मतवाली, भालू राम भी मंद मुस्काये।

अपनी चाल दिखा हाथी को, वो भी कूदे झूमे-गाये।

 

कंगारू जी भला क्यों चुप रहते, अपनी मस्ती से वो भी चहके।

ठहाके लगाकर चाल पर हाथी की, उचक-उचक कर वो भी कूदे। 

 

देख कंगारू, बंदर, भालू को, हाथी दादा को भी जोश आया।

खुद को कम न ठहराने की कोशिश में, कूदने को पूरा जोर लगाया।

 

गिरे धड़ाम से दादा धूल पर, पछताए बहुत वो अपनी भूल पर।

 

नोट - हाथी ही एक ऐसा जानवर है जो कूद नहीं सकता।

 

-अमृता गोस्वामी

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