किताबों में पर्यावरण (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Feb 20, 2025

सुनी सुनाई बात पर यक़ीन करने का ज़माना नहीं रहा। पिछले दिनों पढ़ने को मिला कि पर्यावरण जागरूकता बारे सख्ती होने जा रही है। जिन ख़ास डिग्री कार्यक्रमों में पर्यावरण विषय पढ़ाया नहीं जा रहा था, अब पढ़ाया जाएगा। दरअसल, जागरुक विशेषज्ञों ने लोगों को पर्यावरण बारे जगाने के लिए काफी प्रयास किए लेकिन बात बनी नहीं। इन प्रयासों में राजनीति, मुख्य कार्यान्वन अधिकारी थी। हमारे यहां बात जब न्याय के आंगन में पहुंच जाए तभी अनुशासन की बात होती है तभी तो पर्यावरण पढ़ाने और पढ़ने का हुक्म हुआ। पर्यावरण को पढ़ने और पढ़ाने से ज्यादा सुधार होगा जी।  


पर्यावरण जैसे अमहत्त्वपूर्ण होते जा रहे विषय को अब इंजीनियरिंग, मेडिकल, आर्किटेक्चर, फार्मेसी और प्रबंधन डिग्री के पाठ्यक्रमों में पढ़ना लाज़मी किया जा रहा है। लगता है अब बुरे पर्यावरण के अच्छे दिन आने वाले हैं। यह तो कोई ज्योतिषी ही बता सकता है कि यह निर्णय वास्तव में कितना बदलाव लाएगा। कुछ नासमझ लोग इसे व्यावहारिक गलती से लिया गया किताबी स्तर का अकादमिक निर्णय बता रहे हैं।  वैसे यह अनूठा मिलन होगा जब इंजीनियरिंग के विद्यार्थी, जिनका काम ही विकास योजनाओं का तकनीकी पक्ष संभालना है, पर्यावरण बचाने, बदलने, संरक्षित करने बारे भी पढेंगे। लोहा, सीमेंट, प्लास्टिक, शीशा के साथ हरियाली बारे समझेंगे। जिनका कर्तव्य ही पर्यावरण बचाना, पालना, पोसना है वे परवाह नहीं करते, अब शायद नए लोग नई तकनीक गढ़ेंगे।

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हमारे भावी चिकित्सकों को पर्यावरण पढ़ने की बात पुरानी या नई लगेगी। यहां तो डाक्टरों का निर्माण करने वाले संस्थानों का प्रशासनिक पर्यावरण बेहद दूषित है। सुना नहीं, पढ़ा है कि स्वास्थ्य की रक्षा करने वाले ही परेशान हैं। अब उन्हें पर्यावरण भी पढ़ना होगा तो क्या इलाज करते करते मरीज को पर्यावरण बचाने का नया नुस्खा भी लिखेंगे। वास्तुकला और प्रबंधन डिग्री वालों को भी अपने क्षेत्र से अलग पढ़ाई करनी होगी। पढ़ा गया है कि पर्यावरण विषय पढ़ना ही होगा और फील्ड में जाकर केस स्टडी भी करनी होगी। काम कुछ अमैचिंग से हैं लेकिन ज़माना मिसमैच का है।

  

दुनिया के ताक़तवर लोग पर्यावरण जैसे परेशान करूं विषय को विकास का विष समझकर, दस्ताने पहनकर छूते हैं। यह दिलचस्प बात पढ़ने में आई है कि पर्यावरण शिक्षा को सबसे ज़रूरी माना गया है। लेकिन मानने से क्या होता है, कभी हुआ तो नहीं, हां भविष्य में कुछ भी हो सकता है। पढ़ने में यह भी आया कि पढ़ने से सम्बंधित छात्र, पर्यावरण के संरक्षण और सतत विकास के प्रति जागरूक एवं संवेदनशील होंगे।  इन छात्रों पर पहले ही अभिभावकों का भावनात्मक दबाव, कोर्स की किताबों का वज़न और वातावर्णीय प्रभाव रहता है। अगर तकनीक, स्वास्थ्य, वास्तुकला और प्रबंधन पढ़ने वालों को जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, अपशिष्ट प्रबंधन, स्वच्छता, जैविक संसाधनों का संरक्षण और विकास, वन और वन्यजीवन संरक्षण बारे पढ़ाया जाएगा तो पर्यावरण के महान प्रेमी, विशेषज्ञ और कार्यकारी क्या करेंगे।  

- संतोष उत्सुक

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