By अभिनय आकाश | Mar 29, 2022
1990 के दशक में 60 हजार से ज्यादा हिंदू परिवारों ने अपनी जिंदगी और बहन-बेटियों की आबरू बचाने के लिए अपने पुश्तैनी मकान को छोड़ने पर मजबूर हो गए थे। जहां कि उनका बचपन बीता था। उनकी घर वापसी की मुकम्मल कोशिशिें पिछले तीन दशकों में कभी भी नहीं हुई और सबसे गंभीर बात ये है कि इसकी चर्चा भी करना किसी ने जरूरी नहीं समझा। वर्तमान में वो किस हाल में हैं। इनमें से कई ऐसे भी हैं जिनके घरों को जबरन हड़प लिया गया और सारी संपत्ति छीन ली गई। इसके साथ ही कहा गया कि जमीन के सारे कागजात नकली है। इन्हीं में से कुछ लोगों से मीडिया समूह इंडिया टुडे ने बात की और इस आधार पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें विस्थापित कश्मीरी पंडितों के दर्द को बयां किया गया है।
सरकार ने लॉन्च किया पोर्टल
एक खास वेब पोर्टल www.jkmigrantrelief.nic.in भी बनाया गया है। इस पोर्टल के माध्मम से कब्जाई जमीनों को वापस पुाने के लिए आवेदन दिया जा सकता है। 1990 के दशक में इनकी जमीनों और मकानों पर या तो जबरन कब्जा कर लिया गया याफिर उन्हें इसे औने-पौने दाम में बेचकर कश्मीर से भागना पड़ा था।
राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से रिकॉर्ड में गड़बड़ी
इस रिपोर्ट में वो बता रहे हैं कि इसमें भी एक पेंच है। दरअसल, संपत्ति पर मालिकाना हक साबित करने की जिम्मेदारी उस पर नहीं है, जिसने कब्जा किया है। उन्हें सारे कागजात समेत सारी कवायदें पूरी करनी होगी जो ये साबित करे की वो ही इस जमीन के मालिक हैं। इसके साथ ही इसमें कई राजस्व अधिकारियों द्वारा रिकॉर्ड में गड़बड़ी किए जाने के आरोप लगाए गए हैं। कई विस्थापितों ने राजस्व अधिकारियों की मिली भगत के माध्यम से 1990 में जमीन पर कब्जा करने के साथ ही दस्तावेजों से छेड़छाड़ जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं।