By अभिनय आकाश | Dec 08, 2025
जम्मू कश्मीर में जब से उमर अब्दुल्ला की सरकार आई है। तब से उनके तेवर केंद्र-बीजेपी के लिए बदले बदले हैं। जो मुद्दे कभी सत्ता में आने से पहले उनके हुआ करते थे, नेशनल कॉन्फ्रेंस के हुआ करते थे, इंडिया गठबंधन के हुआ करते थे, उन सारे मुद्दों से बैकफुट पर आते हुए उमर अब्दुल्ला नजर आ रही है। लेकिन इन सबसे इत मुद्दों को छोड़कर भी कुछ बहुत बड़ा नुकसान नहीं कर रहे हैं वो। इनफैक्ट जम्मू कश्मीर की जनता के लिए जम्मू कश्मीर के विकास के लिए जितने कदम उमर अब्दुल्ला केंद्र की मदद से उठा रहे हैं वह बेहद सराहनीय है। आपको जानकर बड़ा ताज्जुब होगा कि कई ऐसे मुद्दे भी सामने आ जाते हैं। पत्रकार उनसे सवाल पूछ लेते हैं जो इंडिया गठबंधन के सबसे अग्रेसिव मुद्दे हैं बीजेपी को घेरने के लिए। और दिलचस्प बात यह है कि उमर अब्दुल्ला उन सारे मुद्दों को दरकिनार कर दे रहे हैं। हद तो तब हो गई जब उन्होंने इस बार अपने पिता से भी असहमति जता दी। उन्होंने कहा मेरे लिए घर पर भी कई बार स्थिति बहुत असहज हो जाती है क्योंकि मैं अपने पिता की बातों से असहमत हूं।
मतलब फारूक अब्दुल्लाह जो भी बयान देते हैं बीजेपी को लेकर या कह लीजिए ईवीएम को लेकर उमर अब्दुल्ला उससे इत्तेफाक नहीं रखते। उमर अब्दुल्ला का सीधे-सीधे तौर पर कहना है कि ईवीएम कैसे हैक हो सकती है? मैं इस बात को नहीं मानता। मैं इस थ्योरी पर विश्वास नहीं करता। मेरे पिता भी यह बात कहते हैं और मैं उनसे असहमत हूं। और इसीलिए घर पर भी मेरे लिए ये स्थिति असहज हो जाती है। इसके अलावा उमर अब्दुल्ला ने डायरेक्टली और इनडायरेक्टली अपने ही गठबंधन को घेरना शुरू कर दिया।
इससे पहले उमर अब्दुल्ला ने इंडिया ब्लॉक को लेकर भी अपनी चिंताएँ ज़ाहिर कीं। उन्होंने कहा कि हमें या तो साथ रहना होगा या फिर राज्यवार चुनाव लड़ना होगा, हर राज्य में अलग-अलग गठबंधन बनाकर। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय दल केंद्रीय स्तर पर गठबंधन के लिए चाहे जितनी भी कोशिश कर लें, हमें कांग्रेस को साथ लेकर चलना होगा। कांग्रेस के इर्द-गिर्द एक गठबंधन बनेगा क्योंकि भाजपा के अलावा कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसका पूरे देश में प्रभाव है। भाजपा की चुनावी रणनीति की तारीफ़ करते हुए उमर ने कहा कि उनके नेता हर चुनाव पूरी ताकत से लड़ते हैं। वे ऐसे लड़ते हैं जैसे उनकी ज़िंदगी उसी पर निर्भर हो। बिहार चुनाव के बाद, वे उन अगले राज्यों की ओर बढ़ गए जहाँ चुनाव होने वाले थे, लेकिन हम वहाँ चुनाव से सिर्फ़ दो महीने पहले पहुँचते हैं। इसका असर चुनाव नतीजों पर पड़ता है।