By अनन्या मिश्रा | Sep 12, 2025
कांग्रेस के पूर्व सांसद और इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी का 12 सितंबर को जन्म हुआ था। फिरोज गांधी एक राजनेता होने के साथ पत्रकार भी थे। लेकिन उनकी पहचान सिर्फ इतनी नहीं थी। फिरोज गांधी आजाद भारत के पहले सांसद रहे, जिन्होंने संसद और उसके बाहर अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ जमकर मुखालफत की थी। उस समय इसके मुखिया फिरोज गांधी के ससुर यानी की पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर फिरोज गांधी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
बता दें कि 12 सितंबर 1912 को फिरोज गांधी का जन्म हुआ था। इनका असली नाम फिरोज घांदी था। फिरोज गांधी के पिता का नाम जहांगीर घांदी था। वहीं अपने पिता की मृत्यु के बाद फिरोज अपनी मां रत्तीमई फरदून के साथ पहले मुंबई और फिर साल 1915 में इलाहाबाद आकर रहने लगे। यहां पर वह अपनी मौसी डॉ शीरीन कमिसएरिएट के साथ रहते थे।
इलाहाबाद आने के बाद फिरोज गांधी ने विद्या मंदिर हाईस्कूल में एडमिशन लिया। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने इविंग क्रिश्चियन कालेज से अपना ग्रेजुएशन पूरा किया। पढ़ाई के साथ ही फिरोज आजादी के आंदोलन में भाग लेने लगे। साल 1930 में उन्होंने कई आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी की। इसी दौरान उनकी मुलाकात इंदिरा गांधी उर्फ इंदिरा प्रियदर्शनी से हुई। एक बार आंदोलन करते हुए इंदिरा की मां कमला नेहरू बेहोश हो गई थीं। तब फिरोज गांधी ने उनकी देखभाल की थी। यहां से ही फिरोज गांधी का आनंद भवन आना-जाना हो गया।
कुछ समय बाद जब कमला नेहरू को इंदिरा और फिरोज के प्रेम प्रसंग के बारे में जानकारी हुई, तो वह काफी नाराज हुईं। दोनों के धर्म अलग-अलग होने की वजह से जवाहरलाल नेहरू को भारतीय राजनीति में खलबली मचने का डर सताने लगा। जवाहर लाल नेहरू इंदिरा और फिरोज के रिश्ते के खिलाफ थे। लेकिन महात्मा गांधी ने फिरोज को गांधी सरनेम की उपाधि दी और साल 1942 में हिंदू रीति-रिवाजों से दोनों की शादी हुई।
अगस्त 1942 में 'भारत छोड़ो आंदोलन' में फिरोज गांधी कुछ समय तक भूमिगत रहे। लेकिन उसके बाद गिरफ्तार कर लिए गए। जेल से छूटने के बाद फिरोज एक बार फिर आंदोलन में जुट गए। वहीं इसी बीच साल 1944 में इंदिरा गांधी ने राजीव और फिर साल 1946 में संजय गांधी को जन्म दिया। साल 1946 में फिरोज गांधी लखनऊ के दैनिक पत्रकार 'नेशनल हेराल्ड' के प्रबंध निर्देशक का पद संभालने लगे। फिर साल 1952 के प्रथम आम चुनाव में फिरोज गांधी रायबरेली सीट से लोकसभा के सदस्य चुने गए।
इसके बाद फिरोज गांधी ने लखनऊ छोड़ दिया और कुछ साल वह और इंदिरा गांधी नेहरू जी के साथ रहे। इंदिरा गांधी का अधिकतर समय अपने पिता पंडित जवाहर लाल नेहरू की देखरेख में बीतता था। वहीं साल 1956 में फिरोज गांधी ने पीएम निवास में रहना छोड़ दिया और वह सांसद के साधारण मकान में अकेले रहने लगे।
साल 1952 में रायबरेली से पहले निर्वाचित सांसद चुने जाने के साथ ही जवाहर लाल नेहरू और फिरोज गांधी के रिश्तों में खटास आनी शुरू हो गई। फिरोज गांधी राजनीति में ईमानदारी और सक्रियता से काम करते थे। इस कारण वह सरकार की आलोचना भी करते थे। जिस कारण उनके ससुर और देश के पीएम पंडित नेहरू असहज हो जाते थे। फिरोज और नेहरू के बीच कई बार संबंध तल्ख भी रहे। लेकिन इसके बाद भी फिरोज का सरकार के प्रति उनका रवैया आलोचनात्मक बना रहा।
बताया जाता है कि नेहरू सरकार की आर्थिक नीतियों और बड़े उद्योगपतियों के प्रति झुकाव को लेकर फिरोज गांधी नाराज रहते थे। आजाद भारत में सरकार का पहला घोटाला लाने का श्रेय भी फिरोज को जाता है। साल 1955 में एक बैंक और इंश्योरेंश कंपनी के फ्रॉड को उजागर किया। इस कारण से इंदिरा गांधी से भी उनकी दूरियां बढ़ती चली गईं। इसके बाद साल 1958 में फिरोज गांधी ने संसद में हरिदास मूंदडा के एलआईसी में किए गए घोटाले को उजागर किया। इसके अलावा फिरोज गांधी ने रकार की आर्थिक अनियिमितताओं को भी सामने लाना शुरू किया। उनके इस विरोध के कारण जवाहर लाल नेहरू की पाक साफ छवि को काफी नुकसान पहुंचाया था।
वहीं एक समय ऐसा भी आया जब इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी अलग-अलग रहने लगे। बताया जाता है कि सरकार में हस्तक्षेप और लगातार आलोचनाओं की वजह से पंडित नेहरू ने फिरोज गांधी से बोलना तक बंद कर दिया था। वहीं जिंदगी के आखिरी पलों में फिरोज गांधी बिल्कुल अकेले रह गए थे।
जिंदगी के अकेलेपन के बीच साल 1958 में फिरोज गांधी को पहला हार्टअटैक पड़ा। इसके बाद उन्होंने खुद को राजनीति से अलग कर लिया था। वहीं दो साल बाद 1960 में दूसरा हार्टअटैक पहने के कारण फिरोज गांधी को विलिंगडन हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया। वहीं 08 सितंबर 1960 को 47 साल की उम्र में फिरोज गांधी का निधन हो गया था।