अंग्रेजी में कहते हैं देखकर पार्टनर के प्रति सच्चा प्यार उमड़ेगा

By प्रीटी | May 21, 2018

इस सप्ताह प्रदर्शित फिल्म 'अंग्रेजी में कहते हैं' जीवनयापन के ही काम में लगे मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी है। फिल्म में निर्देशक ने दिखाया है किस तरह आज भी हमारे समाज में मर्दवादी सोच की बहुलता है। स्त्री को घर के काम के लिए ही उपयुक्त समझा जाता है और मर्द जो चाहे वो करे ऐसा आज भी भारत के ज्यादातर हिस्सों में होता है। निर्देशक हरीश व्यास ने एक सशक्त कहानी के खूबसूरत चित्रण के जरिये समाज को आइना दिखाने का काम किया है।

फिल्म की कहानी वाराणसी में रहने वाले यशवंत बत्रा (संजय मिश्रा) और उनकी पत्नी किरण (एकवली खन्ना) के जीवन के इर्दगिर्द घूमती है। इन दोनों की एक लड़की है। जीवन की आपाधापी में कभी यशवंत को अपनी पत्नी को आई लव यू कहने या उसे प्यार जताने का मौका ही नहीं मिला। उसे तो बस यही लगता था कि शादी हो गयी है तो प्यार तो है ही। यशवंत सरकारी नौकरी करता है और चाहता है कि उसकी बेटी प्रीती (शिवानी रघुवंशी) शादी करके अपने ससुराल में घर का कामकाज करे। लेकिन प्रीती की सोच अपने पिता के विपरीत है। वह पड़ोस के लड़के जुगनू (अंशुमान झा) से प्यार करती है। पिता की मर्जी के खिलाफ वह जुगनू से छिप कर मंदिर में शादी कर लेती है। इससे यशवंत अपनी पत्नी से नाराज रहने लगता है और एक दिन वह उसे यह कह देता है कि जिस तरह प्रीती चली गयी उसी तरह तुम भी मुझे छोड़ कर जा सकती हो। यह बात सुन कर किरण घर छोड़ कर चली जाती है। कुछ दिनों बाद यशवंत की मुलाकात फिरोज (पंकज त्रिपाठी) और सुमन (इप्शिता चक्रवर्ती) से होती है। दोनों अलग-अलग धर्मों के हैं लेकिन इसके बावजूद दोनों ने शादी की और सुमन जानलेवा बीमारी के कष्ट से जूझ रही है। ऐसे में फिरोज उसका पूरा साथ दे रहा है। इन दोनों के इस निश्छल प्यार को देख कर यशवंत को अपने पर पछतावा होने लगता है और वह सोचता है कि उसने कभी अपनी पत्नी को प्यार नहीं किया। वह परेशान हो जाता है और अपनी पत्नी को वापस लाने का निर्णय लेता है। लेकिन क्या किरण वापस आती है यह तो आपको फिल्म देखकर ही पता चलेगा।

 

अभिनय के मामले में संजय मिश्रा प्रभावी रहे। उन्होंने गजब का काम किया है। पंकज त्रिपाठी का काम भी दर्शकों को पसंद आयेगा। एकवली खन्ना, शिवानी रघुवंशी, इप्शिता चक्रवर्ती और बृजेंद्र काला अपनी अपनी भूमिकाओं में प्रभावी रहे। फिल्म के संवाद अच्छे बन पड़े हैं। फिल्म का दूसरा भाग कुछ ज्यादा ही नाटकीय लगा है। गीत-संगीत सामान्य है। निर्देशक हरीश व्यास जरा क्लाइमैक्स पर और मेहनत करते तो यह और अच्छी फिल्म बन सकती थी।

 

कलाकार- संजय मिश्रा, पंकज त्रिपाठी, अंशुमान झा, शिवानी रघुवंशी, इप्शिता चक्रवर्ती, बृजेंद्र काला और निर्देशक- हरीश व्यास।

 

प्रीटी

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