By अनन्या मिश्रा | Dec 01, 2025
आज ही के दिन यानी की 01 दिसंबर भारतीय राजनीतिज्ञ रहीं विजयलक्ष्मी पंडित का निधन हो गया था। विजयलक्ष्मी पंडित ने पूरी दुनिया में भारत का डंका बजाया था। वह जवाहरलाल नेहरू की बहन थीं। विजयलक्ष्मी के सामने अमेरिका और रूस जैसी महाशक्तियां नतमस्तक होते थे। वह आजाद भारत की वो आवाज थीं, जिसको सुनने के लिए संयुक्त राष्ट्र में सन्नाटा छा जाता था। विजयलक्ष्मी पंडित ने उस दौर में परमाणु युद्ध जैसे खतरे को टाला था। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर विजयलक्ष्मी पंडित के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
प्रयागराज के इलाहाबाद में 18 अगस्त 1900 को विजयलक्ष्मी पंडित का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम मोतीलाल नेहरू था। उनके बचपन का नाम स्वरूप कुमारी था। वह जवाहर लाल नेहरू की लाडली बहन थीं। विजयलक्ष्मी पंडित ने किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी से डिग्री नहीं ली थी। उनकी शिक्षा घर से पूरी हुई थी और उन्होंने सिर्फ 12वीं तक पढ़ाई की थी। लेकिन उनकी अंग्रेजी, कूटनीति और जनरल नॉलेज कि समझ ऐसी थी कि बड़े से बड़े पीएचडी होल्डर्स भी उनके सामने टिक नहीं पाते थे।
साल 1921 में विजयलक्ष्मी पंडित की शादी रंजीत सीताराम पंडित से हुई। रंजीत एक बैरिस्टर थे और काठियावाड़ के विद्वान परिवार से ताल्लुक रखते थे। इस समय देश में आजादी की लड़ाई चल रही थी। महात्मा गांधी के आह्वान पर विजयलक्ष्मी ने रेशमी कपड़े त्याग दिया और खादी अपना लिया। वह महलों का सुख छोड़कर सड़कों पर उतर आईं। साल 1932 में विजयालक्ष्मी ने सविनय अवज्ञा में हिस्सा लिया और जेल गईं।
देश को आजादी मिलने से पहले ही विजयलक्ष्मी पंडित ने अपनी काबिलियत साबित कर दी थी। जब साल 1937 में ब्रिटिश राज के तहत चुनाव हुए, तो वह संयुक्त प्रांत की विधानसभा के लिए चुनी गईं। उनको इस दौरान स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। विजयलक्ष्मी पंडित भारत की पहली महिला थीं, जोकि कैबिनेट मिनिस्टर बनी थीं। उस दौर में उन्होंने साबित कर दिया कि महिलाएं सिर्फ घर चलाने के लिए नहीं बल्कि सरकार को भी चला सकती हैं।
देश की आजादी के बाद भारत को एक ऐसे चेहरे की जरूरत थी, जो देश का पक्ष वैश्विक मंच पर मजबूती के साथ रख सके। ऐसे में जवाहरलाल नेहरू ने अपनी बहन की काबिलियत पर भरोसा किया और उनको सोवियत संघ में भारत के पहले राजदूत के रूप में नियुक्त किया गया। बता दें कि यह वो दौर था, जब कोल्ड वॉर शुरू हो चुका था। अमेरिका और रूस दोनों एक-दूसरे के खून के प्यासे थे। ऐसे में मास्को जाकर महिला का काम करना आसान नहीं था। लेकिन विजयलक्ष्मी पंडित ने अपनी कूटनीति के जरिए स्टालिन जैसे सख्त नेता को प्रभावित किया।
इसके बाद विजयलक्ष्मी पंडित अमेरिका में भारत की राजदूत बनीं। वाशिंगटन में उनकी वाकपटुता, साड़ी पहनने के अंदाज और सुंदरता ने सबको दीवाना बना दिया था। विजयलक्ष्मी पंडित जहां भी जाती थीं, लोग उनको देखने और सुनने के लिए जमा हो जाते थे। विजयलक्ष्मी ने अमेरिका को भारत की गुटनिरपेक्ष नीति का मतलब समझाया।
साल 1953 भारत के लिए गर्व का साल था। उनको संयुक्त राष्ट्र महासभा का अध्यक्ष चुना गया। वह इस पद पर बैठने वाली दुनिया की पहली महिला थीं। बता दें कि यह एक ऐसा रिकॉर्ड था, जिसने पश्चिमी देशों की सोच को बदलकर रख दिया था। उस समय तक पश्चिम के लोग एशियाई महिलाओं को कमजोर समझते थे। लेकिन विजयलक्ष्मी पंडित ने उस कुर्सी पर बैठकर दुनिया के बड़े-बड़े नेताओं को नियम-कायदे समझा दिए थे।
विजयलक्ष्मी का आखिरी समय बेहद सादगी में गुजरा था। वह राजनीति से संन्यास लेकर देहरादून में रहने लगी थीं। वहीं 01 दिसंबर 1990 को 90 साल की उम्र में विजयलक्ष्मी पंडित का निधन हो गया था।