आजादी सिर्फ महात्मा गांधी की बदौलत नहीं मिली, लाखों लोगों ने इसके लिए बलिदान दिया था

By अशोक मधुप | Aug 15, 2021

आजादी की जंग पर एक प्रसिद्ध गीत है- दे दी हमें आजादी बिना खड़ग, बिना ढाल। साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल। इस गाने को सुनकर ऐसा लगता है कि जैसे कि भारत की आजादी में सिर्फ और सिर्फ महात्मा गांधी का योगदान हो। ऐसा नहीं है कि महात्मा गांधी का योगदान नहीं है। महात्मा गांधी का बहुत बड़ा योगदान है। उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। नकारा नहीं जा सकता। इसके बावजूद उनके योगदान और त्याग का विस्मरण नहीं किया जा सकता, जिन्होंने इस जंग में थोड़ा बहुत भी योगदान किया। लाखों लोगों ने इस आजादी की जंग में आहुति दी। अपना योगदान किया। जेल गए। कोड़े खाए। पुलिस के जुल्म सहे पर शांत नहीं बैठे। हजारों लोग हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए। अनगिनत क्रांतिकारी ऐसे भी हैं, जिनकी पहचान का भी पता नहीं चली। उन्होंने अपना परिचय भी बताना गंवारा नहीं किया। किसी ने उनके बारे में जानना भी नहीं चाहा। वे गुमनामी में मर गए।

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हम आजादी मिलने का पूरा श्रेय महात्मा गांधी को देकर आजादी के संग्राम में थोड़ी बहुत आहुति देने वालों को नजरअंदाज नहीं कर सकते। उन्हें भूला नहीं जा सकता। 1947 में जो आजादी मिली उसके संघर्ष की शुरुआत तो महात्मा गांधी से बहुत पहले हो गई थी। हम अट्ठारह सौ सत्तावन की देश की पहली आजादी की जंग का जिक्र करते हैं लेकिन इसकी शुरुआत 1857 से 51 साल पहले 1806 में हो गई थी। वेल्लोर में शुरुआत की गई। क्रांतिकारियों ने वेल्लोर के किले पर कब्जा करके दो सौ अंग्रेजों को मार दिया था। काफी सारे घायल भी हुए थे।


1806 के इस विद्रोह का कारण ड्रेस कोड था। अंग्रेजों ने भारतीय सिपाहियों पर ड्रेस कोड लागू किया। इसमें हिंदू जवानों को तिलक लगाने और मुस्लिमों जवानों के दाढ़ी रखने पर रोक लगा दी गई। इसे लेकर सेना के अंदर नाराजगी फैल गई और वेल्लोर में एक ही दिन क्रांतिकारियों ने इतिहास रच दिया। किले पर कब्जा करके 200 अंग्रेजों को मारा डाला या बुरी तरह घायल किया। इस क्रांति के 100  से ज्यादा दीवानों को फांसी दी गई।

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आजादी की अपनी अलग कहानी है। प्रत्येक क्रांतिकारी के बलिदान ओर त्याग के अपने अलग किस्से हैं। आजादी का प्रत्येक क्रांतिकारी अपने में महानायक है। प्रत्येक आजादी का सिपाही आजादी की जंग का बड़ा योद्धा है। उन सबके योगदान को नकारा नहीं जा सकता। सबको प्रणाम ही किया जा सकता है। उन्हें सम्मान दिया जा सकता है। शहीद स्थलों पर श्रद्धांजलि दी जानी चाहिए। आजादी पर्व पर उनका स्मरण किया जाना चाहिए। 


-अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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