'ऑपरेशन सिंदूर' पर संसद में उठे सुलगते सवालों के मिले अस्पष्ट जवाबों के गम्भीर वैश्विक मायने को ऐसे समझिए

By कमलेश पांडे | Jul 30, 2025

पहलगाम आतंकी हमले के बाद हुए ऑपरेशन सिंदूर से जुड़े सुलगते हुए सवालों पर भारत की संसद के दोनों सदनों यानी राज्यसभा और लोकसभा में लगभग 32 घण्टे तक पक्ष और विपक्ष के बीच जोरदार बहस चली, लेकिन नेता प्रतिपक्ष के दहकते हुए कुछ सवालों का सटीक जवाब प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री और गृहमंत्री आदि नहीं दे पाए! इसके पीछे मौलिक वजह यह बताई जाती है कि विपक्ष के कुछ मूर्खतापूर्ण सवालों का जवाब चतुर सत्तापक्ष ने रणनीतिक पूर्वक गोलमोल तरीके से दिया है। तभी तो यह सवाल उठने लगे कि पीएम मोदी के भाषण द्वारा मिले जवाब में कुछेक विपक्षी सवालों का सीधा और माकूल जवाब नहीं मिल पाया है?


इस बाबत राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पीएम मोदी भले ही संसद में अपनी बात रख चुके हों, लेकिन अभी तक उनके मार्फ़त कई सवालों के जवाब नहीं मिले हैं। कहा जा रहा है कि पीएम मोदी की स्पीच में बहुत सारे सवालों के जवाब तो मिले लेकिन ढेर सारे सवालों के जवाब, जवाब के तौर पर नहीं बल्कि सवाल के रूप में मिले। उदाहरण के तौर पर, सरकार ने इस बात का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया कि आखिरकार सीज़फ़ायर क्यों किया गया? इसकी जानकारी घोषणा होने से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप तक कैसे पहुंच गई, जिन्होंने इस मसले पर सबसे पहले ट्वीट किया था? वहीं, पहलगाम से पुलवामा तक सुरक्षा मामलों में हुई चूक को लेकर किसी की तरफ़ से स्पष्ट जवाब नहीं मिला- चाहे वो रक्षा मंत्री हों, गृह मंत्री हों या प्रधानमंत्री!

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उल्लेखनीय है कि भारत और पाकिस्तान के बीच हुए 'संघर्ष विराम' की पहली जानकारी यदि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दी थी, तो आखिर कैसे, यह देशवासी जानना चाहते हैं। क्योंकि ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम की घोषणा करते हुए दावा किया था कि 'रात भर चली बातचीत' में अमेरिका ने मध्यस्थता की। ट्रेड की शर्तों पर युद्ध विराम करवाया। वहीं, तब से अब तक राष्ट्रपति ट्रंप दो दर्जन से अधिक बार भारत-पाकिस्तान के बीच सीज़फ़ायर करवाने का दावा कर चुके हैं, जिससे भारत सरकार की कूटनीतिक सफलता पर सवाल उठना लाजिमी है।


दरअसल, गत सोमवार को भी स्कॉटलैंड में ब्रिटिश प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर के साथ हुई बातचीत से पहले मीडिया को संबोधित करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान सहित दुनिया भर में चल रहे छह बड़े युद्ध को रोकने में अपनी भूमिका की बात कही थी। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय शांति का नोबल पुरस्कार पाने के लिए वह लालायित हैं। वहीं भारतीय विपक्ष ने निरंतर यह सवाल उठाया कि मोदी सरकार ने इस पर चुप्पी क्यों साधी है? क्या यह दावा सच है या झूठ? मोदी ने अपने संसदीय बयान में भी ट्रंफ का ज़िक्र क्यों नहीं किया?


इसका सीधा जवाब यही होगा कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी स्पीच में न तो अमेरिका का नाम लिया और न ही डोनाल्ड ट्रंप का ज़िक्र किया। क्योंकि वैश्विक कूटनीति में ऐसा नहीं होता कि किसी नेता का नाम लेकर सरकार बयान दे। जहां तक अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की बात है तो वह दुनिया के सबसे ताक़तवर देश के राष्ट्रपति हैं। वहीं, इस पूरी बहस में सरकार ने चीन का नाम भी नहीं लिया है, जिसने पाकिस्तान की तरफ़ से पूरा युद्ध लड़ा है। इसलिए पूरक सवाल है कि जब चीन पर नहीं बोल रहे, तो ट्रंप पर कैसे बोलेंगे?


हां, इतना जरूर है कि तीसरे देश के हस्तक्षेप पर बोलते हुए पीएम मोदी ने दो कहा है कि, "दुनिया के किसी भी नेता ने भारत को ऑपरेशन रोकने के लिए नहीं कहा। 9 तारीख (मई) की रात को अमेरिका के उपराष्ट्रपति जी ने मुझसे बात करने का प्रयास किया। वे घंटे भर कोशिश कर रहे थे, लेकिन उस समय सेना के साथ मेरी मीटिंग चल रही थी। मैं उनका फ़ोन उठा नहीं पाया और बाद में जब उन्हें कॉल बैक किया। तो उन्होंने मुझसे कहा कि पाकिस्तान बहुत बड़ा हमला करने वाला है। इस पर मेरा उन्हें जवाब था कि अगर पाकिस्तान का ये इरादा है, तो उसे बहुत महंगा पड़ेगा।"


इसलिए सवाल दर सवाल उठ रहे हैं कि आख़िर केंद्र की मोदी सरकार डोनाल्ड ट्रंप का नाम लेने से क्यों बच रही है? तो इसका स्पष्ट जवाब यही होगा कि मौजूदा दौर में तेजी से आगे बढ़ रहा भारत अंतरराष्ट्रीय मोर्चा (इंटरनेशनल फ्रंट) पर विभिन्न प्रकार की कई चुनौतियों से जूझ रहा है। चूंकि  बहुत सारी चीज़ें बातचीत की मेज़ पर हैं, इसलिए ट्रंप जैसे व्यक्ति का नाम लेकर भारत अपना पक्ष कमज़ोर नहीं करना चाहता है। लेकिन इसका मतलब यह भी कतई नहीं है कि सरकार ट्रंप को सही ठहरा रही है। बस भारत अनावश्यक रूप से और अधिक समस्याएं खड़ा नहीं करना चाहता है। इसलिए भारत अपनी रणनीति में सफल है, जबकि विदेशी एजेंडे पर सियासी गोले बरसा रहा विपक्ष बेचैन!


भारत का विपक्ष एक और सवाल जानना चाहता है कि ऑपरेशन सिंदूर में भारत के कितने फ़ाइटर जेट गिरे? हालांकि, उसे यह भी पूछना चाहिए था कि पाकिस्तान के कितने फाइटर जेट मार गिराए गए। इसका दो टूक जवाब यह होगा कि सर्वप्रथम भारतीय सेना ने रफ़ाल लड़ाकू विमान गिराने के दावे को खारिज किया था। लेकिन उसके ही एक वरिष्ठ अधिकारी ने विदेश में यह बात कबूल ली की ऐसा कुछ हुआ है। यह विरोधाभाषी स्थिति ही मोदी सरकार के गले की हड्डी बन चुकी है। इससे उत्साहित अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसी महीने दावा किया था कि मई में भारत-पाकिस्तान के बीच चले संघर्ष के दौरान 'पांच लड़ाकू विमान मार गिराए गए थे। हालांकि, ट्रंप ने यह स्पष्ट नहीं किया कि किस देश के कितने विमान गिराए गए। इससे पहले पाकिस्तान भी भारत के 'पांच लड़ाकू विमान मार गिराने' का दावा कर चुका है, जिसे भारत ने हमेशा ख़ारिज किया है। 


उल्लेखनीय है कि कांग्रेस इससे पहले भी केंद्र सरकार से यह स्पष्ट करने की मांग कर चुकी है कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के कितने जेट गिरे थे। हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी और केंद्र सरकार ने अब तक इस सवाल का कोई सीधा जवाब नहीं दिया है। जबकि लोकसभा में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस विषय पर जवाब देते हुए सेना की सराहना की और कहा, "कुछ विपक्षी सदस्य पूछ रहे हैं कि कितने एयरक्राफ़्ट गिराए गए। मुझे लगता है कि यह सवाल हमारी राष्ट्रीय भावना के अनुरूप नहीं है। क्योंकि इन्होंने यह नहीं पूछा कि दुश्मनों के कितने एयरक्राफ़्ट गिराए गए।"


भारतीय प्रतिपक्ष सरकार से यह भी जानना चाहता है कि भारत की तुलना में पाकिस्तान के साथ ज़्यादा देश क्यों हैं? क्योंकि भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान तुर्की, अज़रबैजान और चीन ने खुले तौर पर पाकिस्तान का समर्थन किया था। जबकि भारत के पक्ष में केवल इसराइल स्पष्ट रूप से खड़ा नजर आया। यहां तक कि रूस ने भी भारत का खुलकर समर्थन नहीं किया था। इस मुद्दे पर बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि, "दुनिया में किसी भी देश ने भारत को अपनी सुरक्षा में कार्रवाई करने से रोका नहीं है। संयुक्त राष्ट्र में 193 देश हैं और सिर्फ तीन देशों ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के समर्थन में बयान दिया था। क्वाड, ब्रिक्स, फ़्रांस, रूस और जर्मनी...कोई भी देश का नाम ले लीजिए, दुनिया भर से भारत को समर्थन मिला।" इस बारे में मेरी स्पष्ट राय यह है कि जब भारत यूक्रेन के खिलाफ रूस का खुला साथ नहीं देगा तो क्यों रूस से यह उम्मीद की जाए कि वह पाकिस्तान के खिलाफ भारत का साथ पहले की तरह खुलकर देगा! कुछ यही बातें अन्य देशों पर भी लागू होती हैं। इस मामले में इजरायल अपवाद है, क्योंकि वह भी भारत की तरह ही इस्लामिक कट्टरता से जूझ रहा है। इसलिए भारत का उसने बिना किसी शर्त के साथ सहयोग किया है।


वहीं, इससे जुड़ा सवाल कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गत सोमवार को संसद में उठाया और कहा कि, "विदेश मंत्री ने अपने भाषण में कहा था कि सभी देशों ने आतंकवाद की निंदा की है, यह बिल्कुल सही है। लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि पहलगाम हमले के बाद किसी एक भी देश ने पाकिस्तान की निंदा नहीं की। इसका मतलब क्या है? इसका मतलब यही है कि दुनिया हमें पाकिस्तान के साथ रख रही है।" उन्होंने जोर देते हुए आगे कहा कि, "जब यूपीए सरकार थी, तब दुनिया के अलग-अलग देश पाकिस्तान की आतंकवाद के लिए आलोचना करते थे। जो व्यक्ति पहलगाम हमले के पीछे था- जनरल मुनीर, वह राष्ट्रपति ट्रंप के साथ लंच कर रहा है। हमारे प्रधानमंत्री वहां नहीं जा सकते, लेकिन जनरल मुनीर लंच कर रहा है।"


इस बारे में सिर्फ इतना ही कहना समीचीन होगा कि हर देश अपने हितों को ध्यान में रखते हुए ही भारत का समर्थन करेगा, क्योंकि उन्हें भी वर्ल्ड ऑर्डर के बारे में सोचना है। कई देशों ने भारत की निंदा नहीं की है। इसे भारत के समर्थन के रूप में ही देखना चाहिए. यह बहुत बड़ी बात है।


सवाल है कि आखिर पाकिस्तान के साथ भारत क्रिकेट क्यों खेल रहा है? क्या यह उचित है? जवाब होगा- बिल्कुल नहीं। इसे अविलंब रोक देना चाहिए। बता दें कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने ऑपरेशन सिंदूर' पर संसद में विशेष चर्चा के दौरान सवाल उठाया कि जब पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सख़्त रुख अपनाया था, तो अब 14 सितंबर को क्रिकेट के एशिया कप में भारत की टीम पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कैसे खेलेगी?


ओवैसी ने कहा, "पाकिस्तान से ट्रेड बंद है। वहां के प्लेन यहां नहीं आ सकते। जल क्षेत्र में जहाज़ नहीं आ सकता है। आपका ज़मीर ज़िंदा क्यों नहीं है? किस सूरत से आप पाकिस्तान से क्रिकेट खेलेंगे?" बता दें कि भारत-पाकिस्तान संबंधों में तनाव के बीच एशियन क्रिकेट काउंसिल (एसीसी) ने हाल ही में एशिया कप 2025 का शेड्यूल जारी किया है, जिसमें भारत और पाकिस्तान को एक ही ग्रुप में रखा गया है। दोनों टीमों के बीच पहला मुक़ाबला 14 सितंबर को तय है। अगर दोनों टीमें फ़ाइनल तक पहुंचती हैं, तो दो और मैच भी हो सकते हैं।


ऐसे में सुलगता हुआ सवाल है कि जब हमने राजनयिक रिश्ते सस्पेंड कर दिए हैं, तो हम क्रिकेट मैच क्यों खेल रहे हैं? जब भारत कहता है कि ट्रेड और टेरर साथ नहीं चलेंगे, ट्रेड और टॉक साथ नहीं चलेगी, खून और पानी साथ नहीं चलेगा, तो फिर खेल और ख़ून कैसे साथ साथ चलेंगे? सरकार को इसे स्पष्ट करना चाहिए। जबकि आरोप है कि सरकार की तरफ़ से इसका कोई ठोस जवाब क्यों नहीं दिया गया?


स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान सीज़फ़ायर को लेकर ‘मध्यस्थता' वाले दावे को सिरे से ख़ारिज कर दिया है। उन्होंने संसद में 'ऑपरेशन सिंदूर' पर चल रही बहस के दौरान दिए गए भाषण में कहा कि भारत ने कभी किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की और न अब करेगा। जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कई बार दोहरा चुके हैं कि उन्होंने 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम में भूमिका निभाई थी। 


उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार पहले भी ट्रंप के दावों को ख़ारिज कर चुकी है और अब पीएम मोदी ने संसद में ट्रंप का नाम लिए बिना इन दावों को निराधार बताया। पीएम मोदी ने लोकसभा में लगभग दो घंटे का भाषण दिया। इस  दौरान विपक्षी सांसद बीच-बीच में उनसे सवाल उठा रहे थे। पीएम मोदी ने नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के ट्रंप की 'मध्यस्थता' वाले दावे पर भी जवाब दिया और बताया कि, "दुनिया के किसी भी नेता ने भारत को ऑपरेशन रोकने के लिए नहीं कहा है।"


इससे पहले, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने ट्रंप के सीज़फ़ायर के दावों को लेकर मोदी सरकार को घेरा था और संसद में इस पर बयान देने की चुनौती दी थी। ट्रंप के इस दावे के बाद विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल किए। कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने कहा, "अमेरिका के राष्ट्रपति 26 बार कह चुके हैं कि उन्होंने जंग रुकवाई। राष्ट्रपति ट्रंप यह कह चुके हैं कि पांच-छह जेट गिरे हैं। आप बताइए कि कितने जेट गिरे?


भारत की विपक्षी पार्टियों को यह समझना चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और आंतरिक प्रशासन की कुछ अपनी पेंचीदगियां यानी विवशताएं होती हैं जिसके चलते दो टूक बातें करने से कोई अनुभवी राजनेता व उनके अधिकारी परहेज करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम भी यही कर रही है। लेकिन मोदी प्रशासन में नेताओं और अधिकारियों के जो कुछ भी परस्पर विरोधाभाषी बयान सामने आए और विपक्षी नेताओं ने जिस प्रकार से उसकी खिल्ली उड़ाई, उससे यह समझना कठिन नहीं है कि समकालीन सियासत राष्ट्रवादी है या राष्ट्रविरोधी, या फिर दोनों! 


सवाल है कि जब हमारा सत्तापक्ष अमेरिका-चीन जैसे प्रबल विरोधियों की भक्ति का आभाष देने लगे और प्रतिपक्ष शत्रु राष्ट्र पाकिस्तान-चीन के एजेंडे पर सरकार को घेरने लगे तो इस वैचारिक उहापोह की स्थिति में नौकरशाही-न्यायपालिका-मीडिया की भूमिका बढ़ जाती है। उसे बखूबी अपनी निष्पक्ष और दूरदर्शी भूमिका निभानी चाहिए।


ऐसा इसलिए कि नेता और सियासी सरकार तो 5 साल बाद बदलती रहेगी, लेकिन देश और उसकी प्रतिरक्षा नीति, विदेश नीति, व्यापार नीति राष्ट्र हित के मुताबिक ही चलाई जाएंगी, न कि राजनीतिक दलों के वोट बैंक के हिसाब से। जैसा कि हाल-फिलहाल की राजनीति में महसूस किया जा रहा है। 


- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

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