गोरखपुर। अंबेडकर जनमोर्चा के प्रमुख कार्यकर्ता बृजेश्वर निषाद ने कहा कि उ.प्र. भारत का एक बड़ा राज्य है और इस राज्य में दलितों की आबादी लगभग 22 प्रतिशत से ऊपर है। इस राज्य में रहन-सहन एवं जन समस्याओं में विविधतायें भी हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश की बोली-भाषा अलग है और समस्यायें भी अलग है, इसी प्रकार पश्चिमी उ.प्र. की बोली-भाषा अलग है और समस्यायें कम हैं।
पूर्वी उ. प्र. का दलित बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर के मिशन के प्रति बहुत ही ज्यादा समर्पित है और पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अम्बेडकर मिशन के लिए काम करता है। लेकिन पूर्वी उ. प्र. का दलित काम तो किया पर नेतृत्व हमेशा पश्चिमी उ. प्र. के लोगों के हाथ में दे दिया। पश्चिमी उ. प्र. के लोगों के हाथ में नेतृत्व देना ही दलित आन्दोलन के लिए सबसे बड़ा अभिशाप बन गया। क्योंकि दलित आन्दोलन के प्रति पूर्वांचल के लोग ईमानदारी और इमोशन के साथ काम करते हैं। लेकिन पश्चिमी उ. प्र. के लोग अम्बेडकर मिशन को ईमानदारी से नहीं बल्कि व्यवसायिक और प्रोफेशनल तरीके से उपयोग करने लगे हैं। यह अक्सर देखा गया है कि पूर्वांचल के लोगों की ईमानदारी और भोलापन को मूर्खता का नाम देकर पश्चिमी उ. प्र. के लोगों ने बन्द कमरे में मजाक बनाने का काम भी किया है।
डॉ. अम्बेडकर के मिशन के लिए समर्पित पूर्वांचल का दलित समाज पहले तो इस बात को नहीं समझ रहा था लेकिन अब पूरी तरह से जान चुका है और इस राह पर कदम बढ़ा चुका है कि पूर्वी उ.प्र. में अपना नेतृत्व खुद खड़ा करना है। यह बात भी दलित समाज मान रहा है कि आने वाले दिनों में पूर्वांचल एक नया राज्य बनेगा तो पूर्वांचल का मुख्यमंत्री भी पूर्वांचल का ही युवा व्यक्ति होना चाहिए । ताकि दलित अपने बीच से निकले नेतृत्व से अपनी बात आसानी से कह सकेंगे और पूर्वांचल का नेतृत्व पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोग नहीं करेंगे, पूर्वांचल का नेतृत्व पूर्वांचल का ही व्यक्ति करेगा। तभी पूर्वांचल का दलित-पिछड़ा अपने पैरों पर खड़ा हो पाएगा।
अम्बेडकर जन मोर्चा के संस्थापक मुख्य संयोजक श्रवण कुमार निराला का पूर्वी उ.प्र. के दलितों में काफी मजबूत पकड़ मानी जाती है। निराला की छात्र युवाओं पर पकड़ मजबूत मानी जाती है, निराला के साथ छात्र युवाओं की ताकत तो है ही, बड़े पैमाने पर बुद्धजीवियों की टीम भी मजबूती से काम कर रही है। श्रवण कुमार निराला पिछले लगभग 20-22 साल से लगातार सामाजिक और राजनैतिक गतिविधियों में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। निराला की सामाजिक राजनैतिक विश्वसनीयता बड़ी है। इसके साथ सूझबूझ वाला संगठनात्मक अनुभव में भी निराला पारंगत है।
पूर्वांचल की दलित एवं पिछड़ी और अल्पसंख्यक जातियों की राजनीति करने वाले नेता एवं छोटे दल भी अम्बेडकर जन मोर्चा की सामाजिक चेतना और राजनैतिक गतिविधियों को गंभीरता से लेने लगे हैं। दलित और पिछड़े वर्ग के कुछ बुद्धिजीवी अम्बेडकर जन मोर्चा के सामाजिक क्षेत्र के कार्यों पर चर्चा करते हुए कहते हैं कि अभी सबसे ज्यादा जरूरत दलित और पिछड़े वर्ग में सामाजिक चेतना को जगाने का है, उससे ही सामाजिक जागृति आयेगी और तभी राजनैतिक रूप से यह समाज परिपक्व होगा। पूर्वी उत्तर प्रदेश का दलित पूर्वांचल में अपना नेतृत्व खड़ा करने का मन बना लिया है।