उत्तर प्रदेश में बंदरों की समस्या को लेकर सरकार से जवाब तलब

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Sep 24, 2025

बंदरों के उत्पात की समस्या को गंभीरता से लेते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रदेश के प्रमुख सचिव (शहरी विकास) को एक हलफनामा दाखिल कर यह बताने को कहा है कि इस समस्या से निपटने क्या कदम उठाए गए हैं या कदम प्रस्तावित हैं।

मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की पीठ ने कहा कि मानव और बंदर के बीच टकराव रोकने के लिए हर विभाग अपनी जिम्मेदारी दूसरे विभाग पर डाल रहा है।

अदालत ने गाजियाबाद के जिला मजिस्ट्रेट के 20 अगस्त, 2025 के पत्र के जवाब में बंदरों की समस्या नियंत्रित करने के लिए कार्य योजना बनाने में राज्य सरकार की तरफ से निष्क्रियता देखी।

सामाजिक कार्यकर्ता विनीत शर्मा द्वारा दायर जनहित याचिका पर 19 सितंबर को सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि चूंकि सभी नगर निगम शहरी विकास विभाग के अधीन आते हैं, इसलिए इस विभाग को पक्षकार बनाना उचित होगा। इस मामले की अगली सुनवाई की तिथि 31 अक्टूबर तय करते हुए अदालत ने अपने आदेश में कहा, “अगली तिथि से पूर्व जरूरी चीजें की जाएंगी।”

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि जहां एक ओर लोग कष्ट उठा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर, खाने की कमी की वजह से बंदर भुखमरी का शिकार हो रहे हैं और यह स्थिति प्रदेश के लगभग सभी जिलों में है।

अदालत को कौशांबी, प्रयागराज, सीतापुर, बरेली और आगरा में हिंसक बंदरों के हमलों के समाचार की कवरेज भी दिखाई गई और बताया गया कि यह मुद्दा एक या दो जिलों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे राज्य में मौजूद है।

उन्होंने कहा कि बंदरों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची से बाहर किए जाने जाने के बाद अब ये नगर निगम अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत आते हैं और बंदरों का उपद्रव कम करने और लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का दायित्व नगर निगमों का है।

याचिका में बंदरों की बढ़ती आबादी, मानव के साथ बंदरों के बढ़ते टकराव, बंदरों को भोजन की कमी, उनकी भुखमरी समेत अन्य मुद्दे भी उठाए गए हैं। याचिका में तत्काल कार्ययोजना तैयार करने, बंदरों की पर्याप्त देखभाल एवं परिवहन, उन्हें जंगल में भेजने की व्यवस्था करने और शिकायत हेल्पलाइन पोर्टल स्थापित करने का निर्देश जारी करने की भी मांग की गई है।

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