गुरू की नगरी में पुरी के सामने स्थानीय कांग्रेसी की चुनौती

By अभिनय आकाश | May 16, 2019

अमृतसर शहर का नाम एक तालाब के नाम पर रखा गया है, जिसका निर्माण गुरू रामदास ने कराया था। पूरा अमृतसर शहर स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ बसा है। अमृतसर अपनी संस्कृति के अलावा लड़ाइयों के लिए भी प्रसिद्ध है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे बड़ा नरसंहार अमृतसर के जलियांवाला बाग में ही हुआ था। स्वर्ण मंदिर के अलावा अमृतसर का पुराना शहर देखने लायक है। इसके चारों तरफ दीवार बनी हुई है, इसमें कुल 12 प्रवेश द्वार हैं, यह 12 द्वार अमृतसर की कहानी बयान करते हैं। ये तो हो गई इतिहास की बात लेकिन राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डालें तो कभी नवजोत सिंह सिद्धू के चलते अमृतसर का किला भारतीय जनता पार्टी के लिए अभेद्य हुआ करता था। 2014 में इबादत बदली गई। भाजपा ने सोचा सेफ सीट और अरुण जेटली को उतार दिया। कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को उतार राह मुश्किल कर दी। कैप्टन अमरिंदर सिंह को 4 लाख 82 हजार 876 वोट मिले, जबकि भाजपा के अरुण जेटली को 3 लाख 80 हजार 106 वोट मिले। तीसरे नंबर पर आम आदमी पार्टी के दलजीत सिंह रहे, जिन्हें 82 हजार 633 वोटों से संतोष करना पड़ा। लेकिन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद 2017 में कांग्रेस के गुरजीत सिंह औजला ने भाजपा के राजिंदर मोहन सिंह छिना को एक लाख 99 हजार 189 वोट के अंतर से हरा दिया। 

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इस दफ़ा यानि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर अपने एक मंत्री पर दांव खेला है। राजनयिक से केंद्रीय मंत्री बने हरदीप सिंह पुरी अमृतसर से भाजपा प्रत्याशी बनाए गए हैं वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने उपचुनाव के विजेता और पार्षद से सांसद बने गुरजीत सिंह औजला पर ही दांव खेला है। आम आदमी पार्टी ने कुलदीप सिंह धालीवाल को उम्मीदवार बनाया है। फतेहगढ़ साहेब के सांसद हरिंदर सिंह खालसा आम आदमी पार्टी को छोड़ने और भाजपा में शामिल होने के बाद हरदीप सिंह पुरी के साथ मजबूती से खड़े हैं लेकिन अमृतसर की जनता उन्हें बाहरी मान रही है। वहीं वर्तमान सांसद और कैप्टन अमरिदंर सिंह के करीबी गुरजीत सिंह औजला पहले पार्षद हुआ करते थे लेकिन उपचुनाव में पहली बार संसद का सफर उन्होंने तय किया। 

 

औजला भी हरदीप पुरी के बाहरी होने का मुद्दा उटाकर उनपर अपनी चुनावी सभा में निशाना साध रहे हैं। बात अगर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी की करें तो लोकसभा चुनाव की डगर आसान नहीं है। बिखरे झाड़ू के सहारे आप ने चुनाव की ताल तो ठोक दी है, पर पार्टी प्रत्याशी कुलदीप सिंह धालीवाल के लिए अपने ही चुनौती बने हुए हैं। अमृतसर में आप के विघटन के बाद खैहरा ग्रुप अलग हो गया था और उसके बाद से ही पार्टी की गतिविधियां शिथिल बनी हुई है। अमृतसर में मुख्य मुकाबला इस बार त्रिकोणीय नहीं बल्कि कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुख्य रुप से नजर आ रहा है।

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लोकसभा चुनाव 2014 में जब पूरे देश में मोदी लहर थी। कई सीटों पर ऐसे चेहरे जीतकर सामने आए, जिसकी इससे पहले कोई पहचान नहीं थी। लेकिन इसी मोदी लहर में भाजपा के बड़े नेताओं में से एक अरुण जेटली चुनाव हार गए, वो भी अमृतसर सीट से। पार्टी ने यहां से 3 बार के सांसद रहे नवजोत सिंह सिद्धू को किनारे कर जेटली को मैदान में उतारा था।

 

हालांकि अमृतसर लोकसभा सीट हमेशा से हाई प्रोफाइल और बड़े उलटफेर के लिए जाना जाता है।

 

अमृतसर लोकसभा के अंदर कुल 9 विधानसभा- मजीठा, अमृतसर सेंट्रल, अमृतसर उत्तर, अमृतसर पश्चिम, अमृतसर दक्षिण, अमृतसर पूर्व, अटारी, अजनाला, जन्डियाला हैं। जिनमें से 8 सीटों कांग्रेस का कब्जा है, जबकि एक सीट पर अकाली दल को जीत मिली है। 2014 के लोकसभा चुनाव के आधार पर अमृतसर में कुल 14 लाख 77 हजार 262 वोटर्स हैं, जिनमें 7 लाख 79 हजार 164 पुरुष और 6 लाख 98 हजार 098 महिला वोटर्स हैं। अमृतसर के मुख्य मुद्दे की बात करें तो राज्य में अनियंत्रित ड्रग्स कारोबार पर रोक,  बेरोजगारी का मुद्दा, पाकिस्तान के साथ मौजूदा तनाव के कारण सीमा व्यापार बंद होने से करीब चालीस हजार लोगों की रोजी-रोटी पर पड़ा असर, सीमावर्ती गावों के किसान सीमा पर बाड़ लगने से खेतों तक उनकी पहुंच मुश्किल हो गई है।

 

- अभिनय आकाश

 

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