Arbudadevi Temple: अरावली की गोद में छिपा मां अर्बुदादेवी का दिव्य धाम, 51 शक्तिपीठों में एक

By अनन्या मिश्रा | Nov 13, 2025

आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको सिरोही जिले के माउंटआबू स्थित अतिप्राचीन अर्बुदादेवी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। अर्बुदादेवी मां दुर्गा के छठे रूप कात्यायनी के रूप में पहाड़ों के ऊपर गुफा में विराजमान हैं। यह मंदिर देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है। वैसे तो इस मंदिर में साल भर श्रद्धालुओं की आवाजाही लगी रहती है, लेकिन जब नवरात्रि आती है, तो यहां पर दिन भर मेले सा माहौल बना रहता है।


माउंटआबू प्रदेश का न सिर्फ हिल स्टेशन बल्कि यह जगह धार्मिक रूप से भी काफी महत्वपूर्ण है। यहां विभिन्न क्षेत्रों में एक से बढ़कर एक पौराणिक धरोहरें भी हैं। इनमें से एक यहां पर स्थित अर्बुदादेवी मंदिर है। यह मंदिर देलवाड़ा मार्ग पर अरावली पर्वतमाला की ऊंची चोटी पर प्राकृतिक गुफा स्थित मां दुर्गा के छठे रूप मां कात्यायनी के रूप में विराजमान हैं। मां अर्बुदादेवी के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को 365 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। वहीं नवरात्रि के पावन मौके पर भक्तों को लंबी लाइनों में खड़े रहकर दर्शन का इंतजार करना पड़ता है।

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पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब भगवान शिव अपनी पत्नी सती के मृत शरीर को लेकर तांडव नृत्य कर रहे थे। तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को खंडित कर दिया था। इस दौरान माता सती के होंठ माउंटआबू में गिरे थे। जिस वजह से इस स्थान को शक्तिपीठ के रूप में मान्यता मिली। वहीं इस मंदिर का नाम अधरदेवी पड़ा था। ऋषि वशिष्ठ ने माउंटआबू के शिखर पर यज्ञ किया था। जिससे कि पृथ्वी पर धर्म की रक्षा के लिए देवताओं की मदद प्राप्त की जा सके।


परमार राजवंश, जिन्होंने 9वीं से 14वीं शताब्दी तक पश्चिम-मध्य भारत के मालवा और आसपास के क्षेत्रों पर शासन किया। इस जगह का अर्बुदादेवी मंदिर से गहरा संबंध है। कुछ इतिहासकारों की मानें, तो परमार शासकों की उत्पत्ति माउंटआबू के 'अग्निकुंड' से हुई थी। उनकी कुलदेवी के रूप में अर्बुदा देवी की पूजा की जाती थी। अग्निकुंड की कथा, जो माउंट आबू से जो परमारों की उत्पत्ति को जोड़ती है, अर्बुदा देवी के प्रति परमार राजवंश के प्रति गहरी भक्ति का एक मजबूत पौराणिक आधार प्रदान करती है।

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