पर्यावरण बारे उच्च विचार (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Aug 02, 2023

पर्यावरण जैसे महा महत्त्वपूर्ण विषय पर, पिछली बैठक में मज़ा नहीं आया। पार्किंग सही नहीं मिली, दूसरे तेज़ बारिश ने कार की ताज़ा पालिश खराब कर दी। हर बैठक में समोसे और गुलाब जामुन मंगाना अब बहुत ज़्यादा मिडल क्लास लगने लगा है। राष्ट्रवाद के चमकते युग में भी लोग मोमो, चाऊमिन, पित्ज़ा से आगे निकलकर जापानी, वियतनामी, कोरियन और इटैलियन खा रहे हैं, तो हम पित्ज़ा तो खा ही सकते हैं।


विदेशी खाने से क्या होता है, विचार स्वदेशी होने चाहिएं। गरमी का मौसम है, ठंडा, चाय न मंगाकर, कोल्ड काफी या कोल्ड टी मंगानी चाहिए तब कहीं ग्लोबल वार्मिंग, बढ़ती जनसंख्या, महंगाई, वनों का कटान, बढ़ते वायु प्रदूषण, ग्लेशियर पिघलने बारे जम कर बात करने का माहौल बनेगा। नदियों का पानी पीने के लिए प्रयोग हो रहा, बर्फ धीरे धीरे कम हो रही इस बारे बात करना फ़िज़ूल है। यह सब तो कुदरत ने करना ही है। हमें पर्यावरण पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव कम करने पर गहरी संजीदा बात करनी है।

इसे भी पढ़ें: बयानों में संस्कारों का सुप्रवेश (व्यंग्य)

हम निम्न स्तर के लोग सिर्फ बात कर सकते हैं। हरियाली को बढ़ावा देना व्यावहारिक रूप से मुश्किल है। कार्बन डाइऑक्साइड कम करने के लिए वनों की कटाई रोकने बारे सोचना हमारे बस में नहीं। वृक्षारोपण समारोह में फोटो खिंचवाने वाले ज़्यादा और काम करने वाले बंदे कम होते हैं। राजनेता को बुला लो तो उनके अनोखे नखरे सहने पड़ते हैं। वृक्षारोपण के दिन बारिश हो तो फ़ोटोज़ अच्छी नहीं आती क्यूंकि लोग साफ़ सुथरे कपडे पहनकर नहीं आते। वह विशेष पौधा भी खुश नहीं होता जिसे ख़ास हाथ ने गड्ढे में, सिर्फ रखना है। पौधे ज़मीन में फिट कर दो तो उनका वृक्ष के रूप में विकसित करना टेढ़ी खीर नहीं, टेढा काम होता है।


वाहन का उपयोग कोई कम नहीं करता क्यूंकि इससे बड़ी बड़ी कम्पनियां बंद होने का खतरा रहता है। अक्षय ऊर्जा बारे ज़्यादा लोगों को पता नहीं, अक्षय कुमार बारे ज़्यादा पता है। सौर उर्जा, पवन ऊर्जा पर भी वही ध्यान देता है जो फंस जाता है। पूरी दुनिया में पर्यावरण क्या, वातावरण भी गर्म है। प्रदूषण के लिए गंभीर होकर देख लिया, इस बार ज़्यादा गंभीर होने बारे प्रस्ताव पास करके देखते हैं। ज़्यादा लंबा जुलूस निकालेंगे। संकल्प लेने का अर्थ, सिर्फ मुंह से चुने हुए कुछ शब्द बोलना है। हिंदी का, हमारा उच्चारण वैसे भी खराब है। अंग्रेज़ी भी कहां बेहतर है। शब्दों का उच्चारण दिल से और ठीक से न किया जाए तो असर कहां रहता है। रहना तो नहीं चाहिए, रहता भी नहीं होगा।  


इस बार, ‘वृक्ष प्रत्यारोपण योजना’ अपनाने  का सीमेंट जैसा इरादा है। जहां निर्माण कार्य होना हो, वहां के पेड़ उखाड़ कर दूसरी जगह लगा दिए जाएं। एक विशेषज्ञ समिति बनाकर अनुमोदित करा लेंगे कि वृक्ष दूसरी जगह पनप जाएंगे। नहीं पनपे तो दोष नालायक जड़, हर लम्हा बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग, रोजाना बदलते वातावरण, शातिर मौसम, असामयिक बारिश व विपक्ष को दे देंगे। वृक्ष प्रत्यारोपण योजना लोकतान्त्रिक  हो जाए तो नए व्यवसाय जान पकड़ेंगे। प्रकृति प्रेमी ठेकेदार भी उगेंगे। थोड़ी बहुत दिक्कतें तो नए काम में आती ही हैं फिर राजनीति माता कब काम आएगी।  


इन उच्च विचारों से साबित हुआ कि पर्यावरण विकास में अभी भी अनेक संभावनाएं हैं।  


- संतोष उत्सुक

प्रमुख खबरें

Vishwakhabram: Modi Putin ने मिलकर बनाई नई रणनीति, पूरी दुनिया पर पड़ेगा बड़ा प्रभाव, Trump समेत कई नेताओं की उड़ी नींद

Home Loan, Car Loan, Personal Loan, Business Loan होंगे सस्ते, RBI ने देशवासियों को दी बड़ी सौगात

सोनिया गांधी पर मतदाता सूची मामले में नई याचिका, 9 दिसंबर को सुनवाई

कब से सामान्य होगी इंडिगो की उड़ानें? CEO का आया बयान, कल भी हो सकती है परेशानी