अम्मा सा लाड़, बाबा का प्यार

By सोनाली कौशिक | Mar 24, 2018

काव्य संगम मंच की ओर से प्रेषित यह नई कविता 'अम्मा सा लाड़, बाबा का प्यार' में कवयित्री सोनाली कौशिक ने अपने मन की भावनाओं को उभार दिया है।

छोड़ चली गुड़िया आँगन में लगा वो अनार,

पराई थी वो अमानत अब तक,

आँसुओं से कंधे भिगो रही थी,

आई थी कुछ दिन को हँसाने,

जाते-जाते मैना रो रही थी, 

अब तेरा यही संसार होगा,

जो भी हो वही तेरा घर-द्वार होगा,

कुछ बिलखते कुछ समझते,

अपने मन से कह रही थी,

यही होती है एक स्त्री की नियति, 

क्यों अबतक आवेग में बह रही थी,

बदलता स्वरूप तेरा काम है बस एक,

देना, देना बस देना लेने का नहीं है फ़ेर,

बेटी, बहू, माँ है तू बस,

अस्तित्व में कहाँ है तू अब,

बेटी थी जो अब तक अम्मा की बहू बन चल पड़ी थी,

मन में कुछ आशायें कुछ उलझनें बन पड़ी थी,

आँचल रखे सर पर सुर्ख ,चुनरी अब छोड़ चली थी,

बाबा की प्यारी बिटिया फ़िर रो पड़ी थी.. 

अम्मा की लाडली गुड़िया विदा अब हो रही थी..

भाई की आफ़त की पुड़िया जुदा अब हो रही थी.. 

आजी की सोनचिरैया अब उड़ चली थी..

दादू की कपूर की डिबिया फ़िर खाली पड़ी थी.. 

 

-सोनाली कौशिक

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