रिमझिम फुहारें (कविता)

By प्रतिभा तिवारी | Jan 08, 2019

कवयित्री प्रतिभा तिवारी द्वारा रचित कविता 'रिमझिम फुहारें' में बदलते मौसम के परिदृश्य का उल्लेख किया गया है। कविता में जीवन के हल पल को रोमांच के साथ जीने का आह्वान भी किया गया है।

 

रिमझिम फुहारों के साथ 

दस्तक दे रही सर्द हवाएं 

हमने भी स्वागत के लिए 

फैला दी हैं बाहें 

इस खुशनुमा मौसम में 

लोगों का टहलना 

जगह, जगह अलाव का जलना 

दिन का यूं पलक झपकते ढलना

दिन, दोपहर भी 

कोहरे से झांकती बत्तियां 

हर थोड़ी देर में चाय की चुश्कियां 

धूप और कोहरे की लुकाछिपी 

हर जगह चहचहाते पक्षी 

मौसम में एक अलग ताजगी 

हो रहा एहसास कागजी 

सुबह सुबह

रजाई से बाहर ना आने का

एक नया बहाना 

धड़कनें थम जाती है 

जब पड़ता है नहाना

पर हमारे ख्वाबों से परे 

खानाबदोश जीवन जी रहे लोग 

जिनके लिए हर मौसम एक चुनौती है  

जिनका जीवन सिर्फ 

दो वक्त की रोटी है 

ना करते किसी मौसम का इंतजार

सर्दी, गर्मी, बसंत हो या बहार

बस फिकर होती है 

कैसे बचेंगे 

जब पड़ेगी मौसम की मार

पर ना जाने क्यों वो ज्यादा 

खुश नजर आते हैं

शायद वो खुशियां जताते नहीं 

बस खुश हो जाते हैं

हम सभी के लिए

हर एक एहसास का 

हर एक पल का 

एक अलग रोमांच है 

सर्दी का मौसम 

ताजगी भरी आंच है।            

 

-प्रतिभा तिवारी

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