युवा कवयित्री प्रतिभा तिवारी की ओर से प्रेषित कविता 'मिट्टी की खुशबू' पढ़कर आपको अपने इलाके की मिट्टी की सौंधी-सौंधी खुशबू आयेगी।
मिट्टी की खुशबू की
बात ही कुछ निराली है
कहीं चिकनी, कहीं रेतीली
कहीं सख्त, कहीं काली है।
हमारा बचपन क्या खूब था
जब हम
मिट्टी
के घरौंदे बनाते थे
जिसे हम फूल पत्तों और
मिट्टी के दीयों से ही सजाते थे
ना आज जैसी शहरी रौनक
ना बिजली कि चकाचौंध थी
फिर भी हम सब
बहुत खुश हो जाते थे।
कभी मिट्टी से पहाड़ बनाते
तो कभी
मिट्टी में पौधे लगाते थे
मिट्टी में खेल
हम असली खुशी पाते हैं
और आज..........….
कहीं मिट्टी ना लग जाए पैरों में
ये सोचकर पैर उठाते हैं।
-प्रतिभा तिवारी