By डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ | Dec 16, 2020
सपने और कमाई का वही संबंध है जो खरगोश और कछुए का है। सपने खरगोश की भांति तेज होते हैं, जबकि कमाई कछुए की तरह एकदम मंद। बस अंतर केवल इतना है कि सोता हुआ खरगोश निरंतर चलने वाले कछुए से एक बार के लिए हार सकता है, लेकिन सोते हुए देखे गए सपने हकीकत की कमाई से कभी नहीं हारते। हमारे अध्यापक ने कभी पढ़ाया था कि कमाई शब्द ‘काम’ और ‘आई’ से बना है। मुझे लगता है या तो अध्यापक जी व्याकरण के बड़े पक्के थे या फिर उसूलों के कच्चे। महंगाई के दौर में कमाई शब्द का व्याकरण भी बदल गया है। आज कमाई ‘काम’ से ज्यादा ‘कम’ को दर्शाता है। जबकि ‘आई’ जुबान की रगड़ से ‘आय’ बनकर रह गया है।
मैं आपको यह सब इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि दस साल पहले मैंने अपनी पत्नी से एक वादा किया था। न जाने वह कौन-सी घड़ी थी कि जब मैं खुशी के उड़न खटोले पर चढ़कर पत्नी के लिए सोने की चैन बनाने का वादा कर दिया था। काश कितना अच्छा होता कि मैं सत्ता पक्ष का नेता होता और झूठे वायदों के मेनिफेस्टो में सोने की चैन भी डाल देता। मेनिफेस्टो में इसलिए कि आज के खाने और दिखाने के हाथी वाले दांत इसी में कहीं छिपकर रह गए हैं। पत्नी आए दिन हर बात के आगे पीछे तकिया कलाम की तरह सोने की चैन कह-कहकर हमें बेचैन कर देती है।
आपको कैसे बताऊँ कि मेरी कमाई और सोने के भाव में वामन अवतार का अंतर है। दस साल पहले मेरी कमाई पाँच हजार थी और सोने का भाव सत्रह हजार प्रति तोला। आज जबकि पंद्रह हजार कमाता हूँ तो वहीं सोने का भाव वामन अवतार की तरह तिगुना बढ़कर इक्यावन हजार हो गया है। एक बार के लिए मैं नौ मन तेल की व्यवस्था कर पड़ोस के घर काम पर करने वाली राधा को तो नचा सकता हूँ, लेकिन पत्नी की ख्वाहिश के कवर में लिपटे डिमांड को पूरा नहीं कर सकता। इन सबसे बचने के लिए जब-जब भी पत्नी को सच्ची तारीफों के पुलिंदों से बांधने की कोशिश की, तब-तब पड़ोसी की पत्नी के प्रति की गयी तिगुना झूठी तारीफें मेरा बेड़ा गर्क कर देते। अब पत्नी भी निर्मला सीतारमण से कम नहीं हैं। आये दिन कहती हैं- पिछले दस सालों में आपकी कही प्यारी-प्यारी चुपड़ी-चुपड़ी बातें सोने के हार के ब्याज के रूप में कट गए। अब असली वाली सोने की चैन चाहिए। मेरी हालत गर्त में गिरे जीडीपी की तरह है जो इतना नीचे गिर चुका है कि उसे वहीं चैन से सोने में मज़ा आ रहा है।
- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’