Gyan Ganga: वामन भगवान ने आखिर राजा बलि की परीक्षा कैसे ली थी?

By आरएन तिवारी | Jun 24, 2022

सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !

तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयंनुम:॥ 


प्रभासाक्षी के श्रद्धेय पाठकों! आइए, भागवत-कथा ज्ञान-गंगा में गोता लगाकर इस मानव जीवन को सफल बनाएँ। 


पिछले अंक में हमने पढ़ा था कि, असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि को बहुत समझाया कि इस ब्राह्मण बटुक को साधारण मत समझो। यह साक्षात विष्णु का अवतार हैं। ये तुमसे सब कुछ छल करके ले लेंगे और देवराज इन्द्र को दे देंगे। अपने तीन पग से ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड को माप लेंगे और तुम देखते ही रह जाओगे इसलिए ऐसी मूर्खता मत करो। लेकिन राजा बलि ने अपने गुरु की बात नहीं मानी। शुक्राचार्य ने राजा बलि को शाप दे दिया।

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: माता अदिति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें क्या वरदान दिया

आइए ! आगे की कथा में चलते हैं। 

एवं शप्त: स्व गुरुणा सत्यात् न चलितो महान 

वामनाय ददौ एनाम् अर्चित्वोदक पूर्वकम॥  

विंध्यावलि तदागत्य पत्नी जालकमालिनी 

आनिन्ये कलशम् हैमम् वने जन्यपां भृतम ॥ 


अपने गुरु शुक्राचार्य के लाख समझाने पर भी राजा बलि नहीं माने। वह अपने गुरु के शाप की परवाह किए बिना अपनी बात पर अडिग रहे। राजा बलि ने वामन भगवान की विधिवत पूजा-अर्चना की और हाथ में जल-अक्षत-पुष्प लेकर तीन पग भूमि देने का संकल्प कर दिया। बलि की पत्नी विंध्यावली और बलि दोनों ने वामन भगवान के छोटे-छोटे सुंदर-सुंदर युगल चरणों को पखारा और धोवन का वह चरणामृत पान किया और सिर पर चढ़ाया। कितने भाग्यशाली हैं राजा बलि। त्रेतायुग में रामावतार के समय निषादराज केवट को भी यह सौभाग्य प्राप्त हुआ था। बलि की तरह ही वनवास के दौरान पंचवटी में सीता के सामने भी ऐसा ही धर्म संकट आया था जब संन्यासी वेषधारी रावण ने उनसे भिक्षा-याचना की थी। उन्होंने भी धर्म का ही पालन किया था। 


राधेश्याम रामायण में सीताजी कहती हैं---


देवर की आन रहे न रहे रखूँगी धर्म गृहस्थी का 

लक्ष्मण रेखा का ध्यान छोड़ करती हूँ कर्म गृहस्थी का॥

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: दैत्यों को जब होश आया तो उन्होंने अमृतपान करने वाले देवताओं के बारे में क्या कहा

इस प्रकार जनक नंदिनी जानकी ने भी लक्ष्मण की चेतावनी को किनारे कर अतिथि का सत्कार कर अपने धर्म का पालन किया था।


जिस समय राजा बलि भगवान वामन के अलौकिक चरण युगल पखार रहे थे, उस समय आकाश में स्थित देवता, गंधर्व, सिद्ध, चारण सभी ने राजा बलि के इस अलौकिक कार्य की प्रशंसा की। स्वर्ग के देवता प्रसन्न होकर राजा बलि पर पुष्प वृष्टि करने लगे। महर्षि वेदव्यास भागवत में लिखते हैं--


तदा सुरेन्द्रम दिवि देवता गणा:  

गंधर्वविद्याधर सिद्ध चारणा;

तत्कर्मसर्वेSपि गृणन्त आर्जवम 

प्रसूनवर्षे;ववृषु; मुदान्विता; ॥        


शुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित ! जैसे ही संकल्प-कार्य पूरा हुआ, इसी बीच एक अद्भुत घटना घटी। वामन भगवान का वह तेजस्वी शरीर अचानक बढ़ने लगा। उस छोटे से ब्राह्मण बटुक का पैर इतना बड़ा हो गया कि उन्होंने एक ही डेग में सारी धरती नाप ली दूसरे पग से सम्पूर्ण स्वर्ग नाप लिया। अब तीसरा पैर कहाँ रखें। अब तो कुछ बचा ही नहीं। भगवान बोले- बलि तुम्हें धन का बड़ा घमंड था मैंने दो पग में ही सब नाप लिया। अब बोलो, यह तीसरा कदम कहाँ रखूँ। अपना संकल्प पूरा करो नहीं तो झूठे संकल्प का फल भोगना पड़ेगा।


पदानि त्रीणि दत्तानि भूमेर्मह्यं त्वयासूर

द्वाभ्यां क्रान्ता मही सर्वा तृतीयमुपकल्पय॥ ..


राजा बलि ने बड़ी ही विनम्रता से कहा—


यद्युत्तम श्लोक भवान् ममेरितं वचो व्यलीकं सुरवर्य मन्यते।  

करोम्यृतं तन्न भवेत् प्रलंभनम् पदं तृतीयं कुरू शीर्ष्णि मे निजम्।।


हे प्रभो! आप मुझे असत्य न समझें। कृपा करके अपना तीसरा पैर मेरे सिर पर रख दीजिए। हे प्रभो ! मेरे पितामह प्रह्लाद जी की कीर्ति सम्पूर्ण जगत में प्रसिद्ध है। वे आपके श्रेष्ठ भक्त भी हैं। मैं उन्हीं के वंश का हूँ। मेरा सब कुछ छिन जाए मुझे मंजूर है, बस मैं अपकीर्ति से बचा रहूँ। शुकदेव जी कहते हैं-- परीक्षित ! राजा बलि इस प्रकार कह ही रह थे, कि उदय होते हुए चंद्रमा के समान भगवान के प्रेम-पात्र प्रह्लाद जी महाराज वहाँ पहुंचे। राजा बलि ने अपने पितामह प्रह्लाद जी की यथोचित पूजा अर्चना की। प्रह्लाद जी ने भगवान से कहा— प्रभो ! आपने ही बलि को यह ऐश्वर्य और इन्द्र पद दिया था। आज आपने ही उससे सब छीन लिया। आपका देना जितना सुंदर है उतना ही सुंदर लेना भी है। आपका स्वभाव कल्पवृक्ष के समान है। आप अपने भक्तों से अत्यंत प्रेम करते हैं। कभी-कभी भक्तों के प्रति आपकी निर्दयता भी देखी जाती है किन्तु वो भी भक्तों की भलाई के लिए ही होती है।


चित्रम तवेहितमहोमितयोगमाया लीलाविसृष्टभुवनस्य विशारदस्य 

सर्वात्मन; समदृशो विषम;स्वभावो भक्तप्रियो यदसि कल्पतरु स्वभाव; ॥   


प्रसन्न होकर भगवान ने बलि को सुतल लोक का राजा बनाया। बलि ने भगवान के नित्य–प्रति दर्शन की इच्छा प्रकट की।

बाभन बनि के छल कइल छोडब नहि जान आरे सुनि ली वामन जी 

आके देबे के पड़ी दर्शन हमके रोज वामन जी॥ -------

      

भगवान ने कहा ठीक है, तुम मुझे रोज गदा हाथ में लिए खड़ा देखोगे। मेरे दर्शन के परमानंद में मग्न रहने के कारण तुम्हारे सभी बंधन नष्ट हो जाएँगे। 

बोलिए ! वामन भगवान की जय ..........................................

जय श्री कृष्ण -----                                              

क्रमश: अगले अंक में --------------

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । 


- आरएन तिवारी

प्रमुख खबरें

इंडिगो की उड़ानें बाधित होने पर DGCA का कड़ा रुख, अकाउंटेबल मैनेजर को कारण बताओ नोटिस

Holiday Destination Under 5000: न्यू ईयर सेलिब्रेशन के लिए कम बजट में घूम आएं दिल्ली के पास इन जगहों पर, ट्रिप रहेगी यादगार

आस्था सही, पर राम पर टिप्पणी बर्दाश्त नहीं, बाबरी मस्जिद की नींव पर Dhirendra Shastri का बयान

Parliament Winter Session । संसद में वंदे मातरम और चुनावी सुधारों पर होगी चर्चा, जोरदार बहस के आसार