कोरोना के समय में लोगों का फाइनेंशियल सिस्टम पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो चुका है।
लोग बाग़ यह नहीं समझ पा रहे हैं कि वह इस महामारी के दौर में किस प्रकार से आगे बढें, किस प्रकार से अपने खर्चे मेंटेन करें, वहीं कइयों के लिए कमाई की तो खैर बात ही अलग हो चुकी है। मिडिल क्लास इन सब चीजों से खासा परेशान है, क्योंकि कई तरह की ईएमआई में वह पहले से उलझा हुआ है, तो बच्चों की फीस से लेकर, घर के खर्चे और कई लोग तो मेडिकल खर्चों इत्यादि से भी फाइनेंसियल दबाव में आ जाते हैं।
ऐसे में कई बार ऐसी सिचुएशन आती है कि उन्हें पैसे की भारी किल्लत महसूस होने लगती है। लोन भी इतनी आसानी से उन्हें सुलभ नहीं हो पाता है तो ऐसी स्थिति में आज हम आपको एक उपाय बताने वाले हैं...
देश में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा, जिसने लाइफ इंश्योरेंस जैसी सुविधा नहीं ले रखी हो!
चाहे कम पैसे का, चाहे अधिक पैसे का, लोग लाइफ इंश्योरेंस अवश्य ही कराते हैं। ऐसी स्थिति में आप जान लीजिए कि आपको इंश्योरेंस पॉलिसी पर भी लोन मिल सकता है, और सबसे बड़ी बात यह है कि इस पर लगने वाला ब्याज, पर्सनल लोन के कंपैरिजन में काफी कम होता है।
अगर आपके पास जीवन बीमा की पॉलिसी है, तो आप आसानी से उस पर लोन ले सकते हैं। आप किसी बैंक द्वारा या फिर नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी, यानी एनबीएफसी (NBFC) द्वारा भी लोन ले सकते हैं।
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठेगा कि लोन की वैल्यू क्या होगी, और इसका प्रोसेस क्या होगा?
ऐसी स्थिति में आप यह जान लीजिए कि लोन पर मिलने वाला अमाउंट आपकी पॉलिसी के ऊपर निर्भर करता है, साथ ही उसकी सेरेंडर वैल्यू पर भी काफी कुछ निर्भर करता है। अगर एक सामान्य आंकड़ा बताया जाए तो क़र्ज़ की राशि, पॉलिसी की सेरेंडर वैल्यू का अस्सी से नब्बे परसेंट तक कैलकुलेट हो सकती है। मतलब अगर आप तत्काल पॉलिसी बंद करना चाहें, तो उसकी सरेंडर वैल्यू, यानी आखिर में मिलने वाली रकम के अस्सी से नब्बे परसेंट तक की वैल्यू आपको मिल सकती है। लेकिन ध्यान रहे, यह लोन आपको तब मिलेगा, जब आपके पास मनी बैक या एंडोमेंट पॉलिसी हो।
सरेंडर वैल्यू को अगर और स्पष्ट ढंग से समझा जाए, तो आप यह जान लीजिए कि जो भी प्रीमियम आप लाइफ इंश्योरेंस के लिए भरते हैं, उसका कुछ हिस्सा आपको वापस मिल जाता है, जबकि कुछ हिस्सा चार्ज के तौर पर काट लिए जाते हैं। मिलने वाला हिस्सा ही आपकी सरेंडर वैल्यू कहलाती है।
हालांकि सेरेंडर वैल्यू की वापसी सिर्फ उन्हीं पॉलिसीज में होती है, जिनमें इंश्योरेंस के साथ इन्वेस्टमेंट भी होता है। मतलब अगर आपने ऐसी पॉलिसी ली है, जिसमें आपके बीमा के साथ-साथ आपका निवेश भी शामिल है, तभी आप को इसका लाभ मिलेगा। मतलब जिससे एंडोवमेंट मनी बैक और यूलिप जैसे ट्रेडिशनल पालिसी में सरेंडर वैल्यू मौजूद होती है, जबकि अगर केवल टर्म प्लान आप लेते हैं, तो उसमें कोई सरेंडर वैल्यू नहीं मिलती है। इसके अलावा आप यह भी ध्यान रखिए कि आपको अपने इन्वेस्टेड मनी का एक हिस्सा तभी मिलेगा, जब कम से कम 2 साल के लिए लाइफ इंश्योरेंस का प्रीमियम आपने भुगतान किया हो।
हालांकि कुछ कंपनियां 3 साल की भी समय सीमा रखती है।
इसी कड़ी में आपको बता दें कि अगर आप लोन के रीपेमेंट में डिफॉल्ट कर जाते हैं, या फिर प्रीमियम का भुगतान करने में आपसे देरी हो जाती है, तो आपकी इंश्योरेंस पॉलिसी लैप्स हो जाती है। ऐसे में जो भी पॉलिसी होल्डर है, उसको लोन पर ब्याज के अलावा प्रीमियम का बिल भुगतान करना पड़ता है। बीमा कंपनी पॉलिसी की सरेंडर वैल्यू से मूल और ब्याज की राशि वसूलने का अधिकार रखती है। एक और प्रश्न उठता है कि इस तरह से लोन लेने में कितना ब्याज लगता है?
आपको बता दें कि ऐसे में प्रीमियम की संख्या जितनी अधिक होती है, उसके अनुपात में ब्याज कम लगता है। लाइफ इंश्योरेंस पर सामान्यतः लोन की ब्याज दर 10 से 12% के बीच में होती है।
अगर डॉक्यूमेंट की बात की जाए, तो जीवन बीमा पॉलिसी के तमाम ओरिजिनल डाक्यूमेंट्स आपको जमा करने होते हैं, जबकि लोन की राशि प्राप्त करने के लिए आपको अपने बैंक का एक कैंसिल चेक लगाना पड़ता है, और जरूरी एग्रीमेंट साइन करना होता है।
जीवन अनिश्चितताओं का खेल होता है, और कोई नहीं जानता कि कब कौन सी सिचुएशन आपके सामने आ जाएगी।
अब कोरोना वायरस को ही ले लीजिए, देश भर में ऐसे बहुत कम लोग हैं, जो इसके बुरे प्रभाव से बच पाए हैं। हर कोई, किसी ना किसी रूप में, इस महामारी से प्रभावित हो रहा है। ऐसी स्थिति में अगर आपके पास पहले से लाइफ इंश्योरेंस के प्लान हैं, और आप किसी मुसीबत में नजर आते हैं, तो आप आसानी से अपनी जीवन बीमा पॉलिसी पर लोन ले सकते हैं, और इसे आप एक इमरजेंसी टूल के तौर पर ही इस्तेमाल करें, तो बेहतर रहेगा।
- मिथिलेश कुमार सिंह