By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jul 12, 2019
नयी दिल्ली। कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में आरोप लगाया कि बागी विधायकों के इस्तीफे के मामले में शीर्ष अदालत ने विधान सभा अध्यक्ष को नोटिस दिये बगैर ही आदेश पारित किया था। कुमारस्वामी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि इन बागी विधायकों की याचिका पर न्यायालय को विचार नहीं करना चाहिए था। उन्होंने कहा कि इन विधायकों ने राज्य सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये हैं लेकिन इसके बावजूद उनका पक्ष सुने बगैर ही आदेश पारित किया गया।धवन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की पीठ के समक्ष बागी विधायकों और विधान सभा अध्यक्ष की याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान मुख्यमंत्री की ओर से पक्ष रख रहे थे। धवन ने कहा कि बागी विधायकों में से एक विधायक पर पोंजी योजना में संलिप्त होने का आरोप है और इसके लिये ‘‘हमारे ऊपर आरोप लगाया जा रहा है’’।
इसे भी पढ़ें: कर्नाटक, गोवा के घटनाक्रम से भारतीय अर्थव्यवस्था पर नुकसानदेह प्रभाव पड़ेगा: चिदंबरम
उन्होंने कहा कि अध्यक्ष को स्वंय को इस तथ्य के बारे में संतुष्ट करना होगा कि इन विधायकों ने स्वेच्छा से इस्तीफे दिये हैं।उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने जब दूसरे पक्ष को सुने बगैर ही आदेश पारित कर दिया तो ऐसी स्थिति में अध्यक्ष क्या कर सकता है।विधान सभा अध्यक्ष के आर रमेश कुमार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि उनके मुवक्किल को याचिका की प्रति नहीं दी गयी।उन्होंने कहा कि आठ बागी विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही के लिये याचिका दायर की गयी है और ‘‘अध्यक्ष पहले विधायकों की अयोग्यता के मामले में निर्णय लेने के लिये बाध्य है।’’ इससे पहले, सुनवाई के दौरान पीठ ने अध्यक्ष से सवाल किया कि क्या उन्हें शीर्ष अदालत के आदेश को चुनौती देने का अधिकार है।बागी विधायकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि इस्तीफों पर फैसला लेने के लिये अध्यक्ष को एक या दो दिन का समय दिया जा सकता है और यदि वह इस अवधि में निर्णय नहीं लेते हैं तो उनके खिलाफ अवमानना की नोटिस दिया जा सकता है। रोहतगी ने कहा कि अध्यक्ष ने शीर्ष अदालत पहुंचने के लिये बागी विधायकों की मंशा पर सवाल किये हैं और मीडिया की मौजूदगी में उनसे कहा, ‘‘गो टु हेल।’