शोकेस डिप्लोमेसी में नहीं फंसते मोदी, सबसे मित्रता, किसी पर निर्भरता नहीं के सिद्धांत से भारत हुआ मजबूत

By नीरज कुमार दुबे | Aug 12, 2025

रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच, भारत की विदेश नीति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीतिक सूझबूझ एक बार फिर वैश्विक सुर्खियों में है। दरअसल गत सप्ताह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से तथा इस सोमवार को यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदमीर जेलेंस्की से अलग-अलग वार्ताएं कीं और यह सब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पुतिन की अलास्का में होने वाली बैठक से ठीक पहले हुआ। मोदी-पुतिन बातचीत ऐसे समय में हुई जब अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक तनाव चरम पर था। ट्रंप ने भारतीय उत्पादों पर 25% और फिर 50% तक टैरिफ बढ़ाने की घोषणा की थी, साथ ही भारत-रूस ऊर्जा और रक्षा सौदों की वह खुली आलोचना कर रहे थे।


पुतिन से फोन पर बातचीत में मोदी ने न केवल यूक्रेन युद्ध पर नवीनतम स्थिति जानी, बल्कि दोनों देशों के "विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी" को और गहरा करने की प्रतिबद्धता दोहराई। इसमें व्यापार, निवेश, रक्षा-तकनीकी सहयोग, नागरिक विमानन और रासायनिक उद्योग तक पर चर्चा हुई। इस वार्ता के जरिये भारत ने अमेरिका को साफ संदेश दिया कि ऊर्जा स्रोतों का चयन बाज़ार और वैश्विक परिस्थितियों के आधार पर होता है और रक्षा सौदे राष्ट्रीय सुरक्षा की आवश्यकताओं से तय होते हैं। यह मोदी की उस कूटनीति का उदाहरण है जिसमें वे अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद सामरिक स्वतंत्रता बनाए रखते हैं।

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वहीं जेलेंस्की से वार्ता में मोदी ने भारत के "स्थिर और निरंतर" रुख को दोहराया कि युद्ध का समाधान केवल राजनीतिक और कूटनीतिक मार्ग से ही संभव है। दूसरी ओर, जेलेंस्की ने रूस के ऊर्जा निर्यात, खासकर तेल को सीमित करने की आवश्यकता पर बल दिया ताकि युद्ध के लिए उसकी वित्तीय क्षमता घटे। यूक्रेन की ओर से यह भी संकेत दिया गया कि मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) सत्र के दौरान न्यूयॉर्क में जेलेंस्की से व्यक्तिगत मुलाकात कर सकते हैं। हालांकि भारत ने अभी इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की है।


हम आपको बता दें कि भारत, चीन की तरह, अब तक रूस की आलोचना से बचा है और मानता है कि किसी भी शांति पहल में दोनों पक्षों को शामिल करना ज़रूरी है। यह संतुलन बनाए रखना, मोदी की कूटनीति की खासियत है। मोदी की कूटनीति है- न तो रूस से रिश्ते कमजोर करना, न ही यूक्रेन को पूरी तरह नज़रअंदाज़ करना। यह स्थिति निश्चित रूप से यह संकेत देती है कि रूस और यूक्रेन, दोनों ही भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ऐसे नेता के रूप में देखते हैं जिनके पास संवाद और मध्यस्थता की क्षमता है, भले ही भारत औपचारिक रूप से “मध्यस्थ” की भूमिका में न हो।


हम आपको बता दें कि भारत ने शुरू से ही रूस-यूक्रेन युद्ध पर एक संतुलित रुख अपनाया है, न तो रूस की निंदा की है और न ही युद्ध को वैध ठहराया है। इस कारण, नई दिल्ली दोनों पक्षों के साथ विश्वास का रिश्ता बनाए रखने में सफल रही है। पुतिन और जेलेंस्की का मोदी से अलग-अलग फोन पर बात करना यह दर्शाता है कि वह अपनी-अपनी स्थिति भारत के सामने स्पष्ट करना चाहते हैं, ताकि अलास्का में ट्रंप-पुतिन मुलाकात से पहले भारत का दृष्टिकोण और समर्थन उन्हें मिले।


मोदी की कूटनीति की खासियत है कि वे “सभी से मित्रता, किसी पर निर्भरता नहीं” के सिद्धांत पर चलते हैं। भारत की ऊर्जा ज़रूरतें रूस से जुड़ी हैं, जबकि पश्चिमी देशों और अमेरिका के साथ भी भारत के रणनीतिक और आर्थिक हित हैं। ऐसे में, भारत किसी भी एक खेमे में जाने की बजाय “विश्वसनीय संवादकर्ता” की भूमिका निभा सकता है। देखा जाये तो अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अक्सर ऐसे “विश्वसनीय, तटस्थ और सम्मानित” नेताओं की ज़रूरत होती है जो विवादित पक्षों से बिना पूर्वाग्रह के बात कर सकें। पुतिन और जेलेंस्की का मोदी से संपर्क यही दर्शाता है कि भारत को वह ऐसे ही नेता के रूप में देखते हैं। देखा जाये तो भले ही भारत सार्वजनिक रूप से मध्यस्थता का दावा न करे, लेकिन यह स्पष्ट है कि वैश्विक स्तर पर विशेषकर रूस-यूक्रेन संकट में भारत की “शांत कूटनीति” को गंभीरता से लिया जा रहा है। यह मोदी की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा और भारत की बढ़ती कूटनीतिक ताकत का प्रमाण है।


दूसरी ओर, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप हाल के महीनों में खुद को "वैश्विक शांति निर्माता" के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं— चाहे आर्मेनिया-अज़रबैजान समझौता हो या पुतिन-जेलेंस्की की संभावित मुलाकात। जून महीने में ट्रंप ने मोदी से भी अनुरोध किया था कि वह कनाडा से लौटते समय अमेरिका में ठहरें। यह निमंत्रण पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर की व्हाइट हाउस यात्रा के एक दिन पहले दिया गया था। भारतीय कूटनीतिक हलकों को आशंका थी कि ट्रंप, मोदी और मुनीर को एक ही फ्रेम में लाने की कोशिश करेंगे, जिससे भारत-पाकिस्तान को एक साथ जोड़ने का गलत संदेश जाएगा। इसलिए मोदी ने ट्रंप के निमंत्रण को विनम्रता से ठुकरा दिया था।


बहरहाल, पुतिन और जेलेंस्की से मोदी की वार्ताएं और ट्रंप के अमेरिका आने के प्रस्ताव को अस्वीकार करने का निर्णय, दर्शाते हैं कि भारत आज बहुपक्षीय कूटनीति का कुशल खिलाड़ी है। मोदी की शैली न तो तात्कालिक दबाव में झुकती है और न ही अवसरवादी ‘शोकेस डिप्लोमेसी’ में फंसती है। इसकी बजाय, वह भारत को एक ऐसे जिम्मेदार और संतुलित शक्ति केंद्र के रूप में प्रस्तुत करते हैं जो युद्ध और शांति, दोनों में अपनी स्वतंत्र और प्रभावशाली भूमिका निभा सकता है।

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