By अभिनय आकाश | Dec 18, 2025
भारत और यूरोप की दोस्ती की बड़ी खबर सामने आ रही है। उसकी बड़ी वजह है भारत का वो ऐतिहासिक फैसला जो सिर्फ दिल्ली नहीं जो वाशिंगटन नहीं मॉस्को नहीं बीजिंग नहीं पूरे यूरोप में गूंज रहा। 26 जनवरी 2026 भारत का गणतंत्र दिवस पर ना ट्रंप होंगे, ना पुतिन होंगे, ना मेलोनी होंगे, ना फ्रांस के राष्ट्रपति होंगे, ना जर्मनी के चांसलर होंगे और ना ही इंग्लैंड के पीएम होंगे। इस बार यह सिर्फ परेड नहीं होगी। इस बार सिर्फ झांकी नहीं होगी। यह सिर्फ सम्मान नहीं होगा। यह भारत के वैश्विक पहचान का प्रदर्शन होगा। दरअसल सबसे पहले बात करते हैं उन नामों की जो नहीं आ रहे। अमेरिका आज भी सुपर पावर है लेकिन उसकी नीतियां बदलती रहती है। एक राष्ट्रपति आता है। सब कुछ उलट देता है। रूस भारत का पुराना मित्र है। लेकिन आज वह युद्ध और प्रतिबंधों से जूझ रहा है। उलझा हुआ है।
फ्रांस भारत का पक्का दोस्त है। लेकिन भरोसेमंद नहीं कहा जा सकता। भारत जानता है कि 21वीं सदी एक देश की नहीं ब्लॉक की सदी है और इसीलिए भारत ने किसी एक चेहरे को नहीं पूरे यूरोपीय संघ को चुन लिया है क्योंकि भारत ने तय किया है कि 2026 के गणतंत्र दिवस पर वो दुनिया की किसी एक सुपर पावर को नहीं बल्कि पूरे यूरोप के नेतृत्व को बुलाएगा और यही वो फैसला है जिसने दुनिया को चौंका दिया। दरअसल 26 जनवरी 2026 के मुख्य अतिथि हैं यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष यानी ईयू की सरकार की प्रमुख उर्सला वन डेथ लेन और एंटोनियो कोस्टा जो यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष यानी 27 देशों के नेताओं के प्रतिनिधि हैं। यह पहली बार होगा जब भारत गणतंत्र दिवस पर किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन के दो शीर्ष नेताओं को एक साथ बुला रहा। यह अपने आप में इतिहास है। गणतंत्र दिवस का मुख्य अतिथि केवल सम्मान नहीं होता।
यह संकेत होता है। यह संकेत होता है कि भारत आने वाले सालों में किसके साथ किस दिशा में आगे चलने वाला है। जब भारत एशियन देशों को बुलाता है तो वो दक्षिण पूर्व एशिया को प्राथमिकता देता है। जब भारत अमेरिका को बुलाता है तो वो इंडोपेसिफिक को संदेश देता है और जब भारत ईओ को बुला लेता है तो वह कहता है कि हम एक से नहीं एक महाद्वीप से साझेदारी करना चाहते हैं। उम्मीद है कि 26 जनवरी ही वो तारीख है या उसके अगले दिन जब भारत और यूरोप के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट साइन हो जाएगा और लागू भी हो सकता है। ऐसे में अगर यह समझौता हो जाता है तो भारत को यूरोप के बाजारों में आसानी से एंट्री मिल जाएगी। एक्सपोर्ट में जबरदस्त बढ़ोतरी आ जाएगी। निवेश का बाढ़ जैसा प्रवाह हो जाएगा। इतना ही नहीं। दूसरी तरफ ईओ को चीन का विकल्प मिल जाएगा।