By नीरज कुमार दुबे | Dec 06, 2025
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा ने ऊर्जा, रक्षा, परमाणु सहयोग, आतंकवाद-रोधी रणनीति और आर्थिक साझेदारी जैसे अनेक क्षेत्रों में नई दिशा दी है। यह यात्रा उस समय हुई जब अमेरिका ने रूस की तेल कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकऑइल पर कड़े प्रतिबंध लगाए थे और भारत पर रूसी तेल आयात कम करने का दबाव बढ़ा रहा था। इस पृष्ठभूमि में पुतिन का संदेश स्पष्ट था कि रूस भारत के लिए ऊर्जा का “विश्वसनीय स्रोत” बना हुआ है और बना रहेगा।
हम आपको बता दें कि PM मोदी और पुतिन की संयुक्त प्रेस वार्ता में रूसी राष्ट्रपति ने कहा कि रूस भारत की तीव्र गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था को आवश्यक तेल, गैस और कोयले की निरंतर आपूर्ति के लिए प्रतिबद्ध है। उल्लेखनीय है कि रूस दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक और गैस भंडार वाला देश है और पुतिन ने यह भी संकेत दिया कि पारंपरिक ऊर्जा से आगे बढ़कर दोनों देश परमाणु ऊर्जा में भी सहयोग बढ़ाएँगे जिसमें छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर, फ्लोटिंग न्यूक्लियर प्लांट तथा चिकित्सा एवं कृषि क्षेत्र में परमाणु तकनीकों का उपयोग शामिल है। इसके अलावा, भारत और रूस ने कुडनकुलम परमाणु परियोजना की प्रगति की समीक्षा की और भारत में एक दूसरे परमाणु संयंत्र स्थल पर चर्चा आगे बढ़ाई। यह भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा में निर्णायक योगदान देगा।
इसके अलावा, इस यात्रा की सबसे रणनीतिक उपलब्धि रक्षा क्षेत्र में संयुक्त निर्माण को बढ़ावा देना रही। रूस ने भारत में ही अपने हथियारों और सैन्य प्लेटफॉर्म्स के स्पेयर पार्ट्स और उपकरणों का उत्पादन करने पर सहमति दी। दोनों पक्षों ने उन्नत रक्षा प्रणाली के संयुक्त सह-विकास और सह-उत्पादन को पुनर्जीवित करने का निर्णय भी लिया। भारतीय सेनाओं की जरूरतों को देखते हुए संयुक्त उद्यमों से तीसरे देशों को निर्यात की संभावना भी टटोली गई। हम आपको बता दें कि यह पहली बार है जब रूस ने स्पष्ट रूप से Make in India के तहत अपने रक्षा परिवेश को भारत में शिफ्ट करने की दिशा में ठोस प्रतिबद्धता जताई है। उल्लेखनीय है कि सशस्त्र बलों की यह लंबे समय से शिकायत रही है कि रूस से महत्वपूर्ण पुर्जों और उपकरणों की आपूर्ति में काफी समय लगता है, जिससे देश से खरीदी गई सैन्य प्रणालियों का रखरखाव प्रभावित होता है। इस संबंध में भारत और रूस द्वारा जारी संयुक्त वक्तव्य में कहा गया, ‘‘दोनों पक्ष प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से ‘मेक-इन-इंडिया’ कार्यक्रम के तहत रूसी हथियारों और रक्षा उपकरणों के रखरखाव के लिए पुर्जों, घटकों और अन्य उत्पादों के भारत में संयुक्त विनिर्माण को प्रोत्साहित करने पर सहमत हुए।’’ संयुक्त वक्तव्य के अनुसार, दोनों पक्ष भारतीय सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संयुक्त उद्यम स्थापित करने तथा पारस्परिक रूप से मित्रवत तीसरे देशों को निर्यात करने पर भी सहमत हुए। संयुक्त वक्तव्य में कहा गया है कि भारत-रूस रक्षा साझेदारी को उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकी और प्रणालियों के संयुक्त सह-विकास और सह-उत्पादन के लिए पुनः शुरू किया जा रहा है। हम आपको यह भी बता दें कि दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों की बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उनके रूसी समकक्ष आंद्रे बेलौसोव ने द्विपक्षीय रक्षा सहयोग बढ़ाने का संकल्प लिया। बैठक में भारतीय पक्ष ने अपनी युद्धक क्षमता को बढ़ाने के लिए रूस से एस-400 मिसाइल प्रणालियों की अतिरिक्त खेपों की खरीद में गहरी रुचि दिखाई।
इसके अलावा, भारत–रूस व्यापार में भारी असंतुलन (रूस से ऊर्जा आयात अधिक) को देखते हुए रूस ने भारतीय वस्तुओं को अधिक बाज़ार पहुँच देने पर सहमति जताई है। दोनों देशों का लक्ष्य है कि 2030 तक व्यापार 100 अरब डॉलर तक पहुँचाया जाए। साथ ही INSTC कॉरिडोर जैसे वैकल्पिक व्यापार मार्गों पर भी प्रगति का संकेत मिला।
साथ ही दोनों देशों ने पहलगाम और मॉस्को के क्रोकस सिटी हॉल में हुए हमलों का संदर्भ लेते हुए आईएसआईएस, आईएसकेपी और अन्य वैश्विक आतंकी नेटवर्क पर सख्त कार्रवाई की मांग की। ‘‘ज़ीरो टॉलरेंस’’ नीति और ‘‘दोहरे मानदंडों को अस्वीकार’’ करने पर जोर दिया गया।
इसके अलावा, पुतिन ने भारत–रूस मैत्री को ‘‘साथ चलेंगे, साथ बढ़ेंगे’’ जैसे भारतीय कथन से अभिव्यक्ति दी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से दिये गये राजकीय भोज में भारतीय–रूसी संगीत और विविध व्यंजनों ने सांस्कृतिक जुड़ाव को भी प्रकट किया। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दी गई कश्मीरी केसर, असम की चाय और गीता जैसी भेंटें इस साझेदारी की भावनात्मक गहराई को दर्शाती हैं।
देखा जाये तो रूसी राष्ट्रपति की यह यात्रा दर्शाती है कि भारत अब केवल हथियार खरीदने वाला नहीं बल्कि सह-निर्माण और सह-विकास करने वाला रणनीतिक साझेदार बन चुका है। इसके तीन प्रमुख पहलू विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। पहला है रक्षा सहयोग का बदलता स्वरूप। हम आपको याद दिला दें कि शीतयुद्ध से लेकर 2010 तक भारत–रूस रक्षा संबंध मुख्यतः उपकरण खरीद तक सीमित थे। इससे दो समस्याएँ जन्म लेती थीं। पहली थी स्पेयर पार्ट्स की देर से आपूर्ति और दूसरी थी तकनीकी निर्भरता। इस यात्रा के दौरान पुतिन का यह कहना कि रूस का यह मानना है कि महत्वपूर्ण पुर्जों का उत्पादन भारत में ही होना चाहिए, दोनों देशों के संबंधों में संरचनात्मक बदलाव की घोषणा है। इस बदलाव का अर्थ है लॉजिस्टिक स्वतंत्रता, ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लक्ष्य की वास्तविक प्रगति और भारत का रक्षा निर्यातक बनने की दिशा में नया कदम।
देखा जाये तो रूस का यह झुकाव केवल राजनीतिक सद्भाव का परिणाम नहीं, बल्कि बदलती वैश्विक भू-राजनीति की जरूरत भी है। रूस को पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच भरोसेमंद बाजार चाहिए, वहीं भारत को ऐसी महाशक्ति सहयोगी चाहिए जिसकी तकनीक और रणनीतिक लचीलेपन से उसकी सामरिक क्षमता में वृद्धि हो।
इसके अलावा, भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी रक्षा। अमेरिका के दबाव के बीच रूस द्वारा निरंतर आपूर्ति का आश्वासन देने का संदेश स्पष्ट है कि भारत अपनी ऊर्जा नीति में रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखेगा। परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में SMR (Small Modular Reactors) और फ्लोटिंग प्लांट जैसी भविष्य की तकनीकों पर बातचीत दर्शाती है कि दोनों देश परंपरागत साझेदारी को हाई-टेक सहयोग में बदल रहे हैं। INSTC जैसे वैकल्पिक व्यापार मार्ग वैश्विक शक्ति-प्रतिस्पर्धा के युग में भारत को एक स्थलीय–समुद्री संतुलन प्रदान करेंगे।
पुतिन की भारत यात्रा के वैश्विक प्रभावों को देखें तो सामने आता है कि यह केवल दो देशों की साझेदारी का कार्यक्रम नहीं, बल्कि विश्व राजनीति का संकेत भी है। जब अमेरिका रूस पर प्रतिबंध बढ़ा रहा है और चीन आक्रामक उभार पर है, तब भारत–रूस समीकरण एक स्थिर धुरी की तरह उभर रहा है। BRICS में 2026 में भारत की अध्यक्षता के साथ यह साझेदारी वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक मंचों पर नए संतुलन बना सकती है।
साथ ही यह भी स्पष्ट हो गया है कि भारत अब वह देश नहीं रहा जो केवल SO-30, MiG, या टैंक आयात करे, अब वह निर्माण, सह-विकास और निर्यात की दिशा में बढ़ रहा है। रूस द्वारा पहली बार तीसरे देशों को संयुक्त निर्यात का प्रस्ताव इस परिवर्तन की पुष्टि करता है। इससे भारत के रक्षा उद्योग का विस्तार होगा, रोजगार और तकनीकी क्षमता बढ़ेगी और भारत एक ‘टेक्नोलॉजी टेकर’ से ‘टेक्नोलॉजी पार्टनर’ बनेगा।
बहरहाल, पुतिन की यह यात्रा भारत–रूस रिश्तों के तीसरे युग की शुरुआत है, जहाँ रक्षा, ऊर्जा, परमाणु, आतंकवाद-रोधी सहयोग और व्यापार, सब एक संयुक्त उत्पादन–निर्माण मॉडल में बंध रहे हैं। वैश्विक शक्ति संतुलन के दौर में यह साझेदारी भारत को रणनीतिक स्वायत्तता, तकनीकी उन्नयन और बहुध्रुवीय विश्व में प्रभाव बढ़ाने में सक्षम बनाती है।
-नीरज कुमार दुबे