नक्सलवाद के खिलाफ बड़ी जीत की ओर अग्रसर भारत- लेकिन अब जिम्मेदारी और बढ़ गई है

By संतोष कुमार पाठक | Oct 18, 2025

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भारत की जनता से यह वादा किया है कि देश 31 मार्च 2026 तक पूरी तरह से नक्सलियों से मुक्त हो जाएगा। हमारे सुरक्षा बलों के अथक प्रयासों के बाद भारत तेजी से उस लक्ष्य को हासिल करने की तरफ बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक निजी टीवी चैनल के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यह दावा किया कि सिर्फ 75 घंटे के दौरान 303 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया है। सरेंडर करने वाले इन नक्सलियों में किसी पर 1 करोड़ का इनाम था,किसी पर 15 लाख का इनाम था तो किसी पर 5 लाख का इनाम था। इन नक्सलियों से बहुत बड़ी मात्रा में हथियार भी पकड़े गए हैं।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी कार्यक्रम में बोलते हुए आगे यह भी दावा किया कि 11 वर्ष पहले तक देश के 125 से ज्यादा जिले, माओवादी आतंक से प्रभावित थे लेकिन आज देश में ऐसे जिलों की संख्या घटकर सिर्फ 11 रह गई है। यानी मोदी सरकार का यह दावा है कि वर्तमान में देश में सिर्फ 11 जिलों में नक्सलियों का प्रभाव बचा हुआ है और आने वाले कुछ महीनों में ( मार्च 2026) तक यह भी पूरी तरह से खत्म हो जाएगा।

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी सरकार को लगातार मिल रही कामयाबी का जिक्र करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यह दावा किया कि, छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ और उत्तरी बस्तर, जो कभी आतंकवादियों के गढ़ थे, आज नक्सली आतंक से मुक्त घोषित किए गए हैं। अब दक्षिणी बस्तर में नक्सलवाद का नामोनिशान बचा है, जिसे हमारे सुरक्षा बल जल्द ही मिटा देंगे।


शाह ने नक्सलवाद के खिलाफ जारी लड़ाई में मिल रही कामयाबी का जिक्र करते हुए यह भी कहा कि, जनवरी 2024 में छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार बनने के बाद से अब तक 2100 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है, 1785 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया है और 477 नक्सली मारे गए हैं और ये आंकड़े इस बात का प्रमाण हैं कि सरकार 31 मार्च 2026 तक देश से नक्सलवाद को पूरी तरह खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है। 


सरकारी आंकड़ों की माने तो, वर्ष 2025 में अभी तक सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में 312 नक्सली मारे जा चुके हैं जबकि 836 नक्सलियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। सिर्फ 75 घंटे के दौरान 303 नक्सलियों ने डर कर आत्मसमर्पण कर दिया। इसमें से 258 आत्मसमर्पण तो सिर्फ दो दिनों के दौरान ही हो गया। दरअसल, सुरक्षाबलों द्वारा माओवादी नेता नरसिम्हा उर्फ नम्बाला केशव राव सहित उनके पोलित ब्यूरो में शामिल कई बड़े नेताओं को मौत के घाट उतारने के बाद से ही नक्सल आंदोलन की पूरी कमर ही टूट गई है। एक तरफ जहां नक्सली संगठन नेतृत्वविहीन होते चले गए हैं वहीं दूसरी तरफ सुरक्षाबलों ने लगातार अभियान चला कर उन्हें पूरी तरह से घेर दिया था। सरकार की सख्त नीतियों के कारण भी नक्सलियों पर चौतरफा दबाव बढ़ता ही जा रहा था और यही वजह है कि जान बचाने के लिए नक्सली लगातार हथियार डाल कर सरेंडर कर रहे हैं।


यह बात सही है कि नक्सली आंदोलन के कारण देश के 100 से ज्यादा जिलों में विकास के कार्य प्रभावित हुए हैं। नक्सलियों के कारण इस देश की बड़ी आबादी खासकर आदिवासियों को पिछले कई दशकों से भयावह पीड़ा का सामना करना पड़ा है। ऐसे में नक्सलवाद का खात्मा निश्चित तौर पर उनके लिए राहत भरी खबर है। लेकिन सही मायनों में कहा जाए तो नक्सलवाद के खात्मे के साथ ही इस देश में लोकतंत्र की एक बड़ी लड़ाई की शुरुआत भी हो जाती है। सरेंडर करने वाले नक्सलियों में से कई निश्चित तौर पर आगे जाकर चुनावी राजनीति का हिस्सा बनेंगे। लेकिन सत्ता में बैठे लोगों को अब इस बात का ध्यान रखना होगा कि , छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और झारखंड सहित उन तमाम राज्यों में जहां-जहां नक्सलियों ने अब तक कहर ढाया है, वहां-वहां सही मायनों में विकास पहुंचे। इन राज्यों में रहने वाले आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन पर उनके बुनियादी हकों से कोई छेड़छाड़ ना की जाए। विकास के किसी भी मॉडल के तहत इनके इलाकों के लिए योजना बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाए कि इनसे कुछ भी जबरदस्ती ना छीना जाए। सरकार और प्रशासन में बैठे हर व्यक्ति को हर कीमत पर यह सुनिश्चित करना होगा कि इनके इलाके में तेजी से विकास के कार्य तो हो लेकिन इसके साथ ही जल-जीवन और जंगल पर इनके बुनियादी अधिकारों की रक्षा को भी सुनिश्चित किया जाए। देश के 100 से ज्यादा जिलों में स्थायी शांति बनाए रखने के लिए यह बहुत ही जरूरी है।


- संतोष कुमार पाठक

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।

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