भारत को हल्के में नहीं ले चीन, अब बेहद शक्तिशाली है भारतीय सेना

By योगेश कुमार गोयल | Jul 06, 2020

15 जून को गलवान में चीन ने धूर्तता से परिपूर्ण जो खूनी खेल खेला, उससे पूरी दुनिया परिचित है। हालांकि भारतीय जांबाजों ने उसका मुंहतोड़ जवाब दिया और उसके बाद चले बातचीत के दौर में दोनों देश सीमा से अपनी-अपनी सेनाएं पीछे हटाने को सहमत भी हो गए लेकिन मक्कारी तो चीन में कूट-कूटकर भरी है। इसीलिए तमाम वादों के बावजूद उसने गलवान से सेना को पीछे कर दूसरे हिस्सों में जमावड़ा शुरू कर दिया। इसी कारण सीमा पर तनाव की स्थिति बरकरार है। भारत-चीन के बीच 3488 किलोमीटर लंबी एलएसी कई दशकों से तनाव का विषय बनी है। दो साल पहले डोकलाम विवाद के चलते दोनों देशों के संबंधों में पैदा हुई कड़वाहट गलवान में चीन की धूर्तता के बाद काफी बढ़ गई है। दोनों एशिया की ऐसी महाशक्तियां हैं, जो अगर आपस में उलझीं तो समूचे एशिया महाद्वीप में अस्थिरता फैलना तय है। वैसे तो भारत-चीन के बीच युद्ध की संभावनाएं बेहद कम हैं क्योंकि चीन आज भारत की सामरिक शक्ति को बखूबी जानता है। इसके अलावा भारत उसके लिए बहुत बड़ा बाजार है, जहां से वह अरबों डॉलर सालाना कमाता है, इसीलिए माना जा रहा है कि ऐसा करके वह पहले से चरमरायी अपनी अर्थव्यवस्था को संकट में नहीं डालेगा। वैसे चीन बेहद शातिर है, इसलिए वह कब क्या कदम उठाएगा, इसके बारे में कोई दावे से कुछ कहना सही नहीं होगा। फिलहाल एलएसी के पास दोनों देशों की सेनाएं तैनात हैं। दोनों के बीच लद्दाख में 14270 फुट की ऊंचाई पर स्थित 134 किलोमीटर लंबी पैंगोग सो झील सबसे बड़ा मुद्दा है। दरअसल वहां चीन द्वारा यथास्थिति को बदलने की साजिशें रची जा रही हैं।


चीन ने 1962 में जब धोखे से भारत पर हमला किया था, उस समय भारतीय सेना ऊंचाई वाले इस इलाके में युद्ध के लिए तैयार नहीं थी लेकिन अब परिस्थितियां बिल्कुल बदल चुकी हैं। अमेरिकी न्यूज वेबसाइट सीएनएन ने भी अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि भारत की ताकत पहले के मुकाबले बहुत ज्यादा बढ़ गई है और अगर युद्ध हुआ तो भारत का पलड़ा भारी रह सकता है। बोस्टन में हार्वर्ड केनेडी स्कूल के बेलफर सेंटर फॉर साइंस एंड इंटरनेशनल अफेयर्स तथा वाशिंगटन के एक अमेरिकी सुरक्षा केन्द्र के अध्ययन में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि भारतीय सेना उच्च ऊंचाई वाले इलाकों में लड़ाई के मामले में माहिर है और चीनी सेना इसके आसपास भी नहीं फटकती। चीन ने जहां 1979 में वियतनाम युद्ध के बाद से युद्ध की क्रूरता का अनुभव नहीं किया है, वहीं भारतीय सेना को सीमित और कम तीव्रता वाले संघर्षों में महारत हासिल है। कश्मीर में भारतीय सेना आतंकवाद और पाकिस्तान से लंबे अरसे से अघोषित युद्ध में संघर्षरत है। वैसे वियतनाम युद्ध में भी चीन को महीने भर के युद्ध के बाद मुंह की खानी पड़ी थी।

 

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रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत-चीन सीमा की भौगोलिक स्थिति भी भारत के पक्ष में है। दरअसल अगर युद्ध होता है तो चीन के जे-10 और जे-11 लड़ाकू विमान तिब्बत के ऊंचे पठार से उड़ान भरेंगे, जिससे न तो ऐसे विमानों में ज्यादा ईंधन भरा जा सकता है और न ज्यादा विस्फोटक लादे जा सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक चीनी वायुसेना हवा में ही अपने विमानों में ईंधन भरने में भी उतनी सक्षम नहीं है, जितनी भारतीय वायुसेना। एक अध्ययन के अनुसार तिब्बत तथा शिनजियांग में चीनी हवाई ठिकानों की अधिक ऊंचाई तथा कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण चीनी लड़ाकू विमान अपने आधे पेलोड और ईंधन के साथ ही उड़ान भर सकते हैं जबकि भारतीय लड़ाकू विमान पूरी क्षमता के साथ हमला कर सकते हैं। हालांकि चीन के पास भारत से ज्यादा लड़ाकू विमान हैं लेकिन भारतीय लड़ाकू विमान सुखोई 30एमआई का उसके पास कोई तोड़ नहीं है, जो एक साथ 30 निशाने साध सकता है। चीन के पास सुखोई 30 एमकेएम है लेकिन वह एक साथ केवल दो ही निशाने साध सकता है। भारत एशिया तथा प्रशांत सागर को जोड़ने वाले व्यापारिक मार्ग को जोड़ता है और भारत ने इस क्षेत्र में भी अपनी स्थिति मजबूत कर ली है।


चीन ‘स्ट्रिंग्स ऑफ पर्ल्स प्रोजेक्ट’ के तहत भी भारत को चारों ओर से उसी की सीमा के भीतर घेरने की कोशिश कर रहा है। पेंटागन की एक रिपोर्ट के अनुसार में ‘स्ट्रिंग्स ऑफ पर्ल्स’ समुद्र में पाए जाने वाले मोती नहीं हैं बल्कि दक्षिण चीन सागर से लेकर मलक्का संधि, बंगाल की खाड़ी और अरब की खाड़ी तक अर्थात् पूरे हिन्द महासागर में बंदरगाह, हवाई पट्टी, निगरानी-तंत्र इत्यादि सामरिक ठिकाने तैयार करना है। हालांकि रिपोर्ट के अनुसार कहने को चीन ये ठिकाने अपने ऊर्जा-स्रोत और तेल से भरे जहाजों के समुद्र में आवागमन की सुरक्षा के लिए तैयार कर रहा है लेकिन वास्तव में उसकी मंशा यही है कि जरूरत पड़ने पर इन सामरिक ठिकानों को सैन्य जरूरतों के लिए इस्तेमाल किया जा सके। उपरोक्त खाड़ियों के अलावा इस चीनी प्रोजेक्ट के तहत पाकिस्तान में ग्वादर और कराची बंदरगाह में मिलिट्री बेस, श्रीलंका में कोलंबो तथा नए पोर्ट हम्बनटोटा में आर्मी फैसिलिटी के अलावा बांग्लादेश के चटगांव में कंटेनर सुविधा बेस, म्यांमार में यांगून बंदरगाह पर मिलिट्री बेस की स्थापना इत्यादि शामिल हैं। चीन ने 12 जुलाई 2017 को अपना पहला विदेशी मिलिट्री बेस बनाने के लिए अपना एक युद्धपोत अफ्रीकी देश जिबूती के लिए रवाना किया था। उसके उस कदम से स्पष्ट हो गया था कि चीन भारत के पड़ोसी देशों में मिलिट्री बेस बनाकर समुद्र के रास्ते भी भारत को घेरने की योजना बना रहा है।

 

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बहरहाल, दोनों देशों के बीच पनप रहे तनाव के बीच भारतीय वायुसेना ने रूस से मिग-29, एसयू-30एमकेआई लड़ाकू विमान, एस-400 मिसाइल प्रणाली मंगाने की प्रक्रिया तेज कर दी है। इसी माह भारत को अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस छह राफेल विमान भी मिल जाएंगे। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की थलसेना हर परिस्थिति में चीनी सेना से बेहतर और अनुभवी है, जिसके पास युद्ध का बड़ा अनुभव है, जोकि विश्व में शायद ही किसी अन्य देश के पास हो। भले ही चीन के पास भारत से ज्यादा बड़ी सेना और सैन्य साजो-सामान है लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य में दुनिया में किसी के लिए भी इस तथ्य को नजरअंदाज करना संभव नहीं हो सकता कि भारत की सेना को अब धरती पर दुनिया की सबसे खतरनाक सेना माना जाता है। सेना के विभिन्न अंगों के पास ऐसे-ऐसे खतरनाक हथियार हैं, जो चीनी सेना के पास भी नहीं हैं। धरती पर लड़ी जाने वाली लड़ाईयों के लिए भारतीय सेना की गिनती दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सेनाओं में होती है और कहा जाता है कि अगर किसी सेना में अंग्रेज अधिकारी, अमेरिकी हथियार और भारतीय सैनिक हों तो उस सेना को युद्ध के मैदान में हराना असंभव होगा। सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे विभिन्न अवसरों पर कह चुके हैं कि भारत की सेना के पास अब पूरी ताकत से चीन को जवाब देने की क्षमता है। वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया ने भी कहा है कि वायुसेना लक्ष्य को पूरा करने के लिए दृढ़ संकल्पित है तथा किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार तथा सही जगह पर तैनात है।


-योगेश कुमार गोयल

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिनकी इसी वर्ष ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ पुस्तक प्रकाशित हुई है)

 

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