By नीरज कुमार दुबे | Dec 04, 2025
देश की सबसे बड़ी विमान सेवा कंपनी इंडिगो इन दिनों एक अभूतपूर्व परिचालन संकट से गुजर रही है। लगातार तीसरे दिन गुरुवार को भी हालात इतने बिगड़ गए कि 300 से अधिक घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को रद्द करना पड़ा, जबकि बड़ी संख्या में उड़ानें घंटों की देरी से चलीं। नतीजतन, हजारों यात्री हवाई अड्डों पर फंसे रह गए, कई की छुट्टियां खराब हुईं, तो कई के व्यवसायिक कार्यक्रम चौपट हो गए। रिपोर्टों के मुताबिक दोपहर तक केवल चार महानगरों में ही रद्द उड़ानों का आंकड़ा चौंकाने वाला रहा— दिल्ली में 95, मुंबई में 85, हैदराबाद में 70 और बेंगलुरु में 50 उड़ानें ठप रहीं। अन्य हवाई अड्डों पर भी हालात अच्छे नहीं थे। छह प्रमुख हवाई अड्डों के संयुक्त आंकड़ों के मुताबिक, इंडिगो की ‘ऑन-टाइम परफॉर्मेंस’ बुधवार को गिरकर सिर्फ 19.7% पर आ गई जबकि सामान्य दिनों में यह कंपनी 80–90% तक समयपालन के लिए जानी जाती है।
देखा जाये तो यह परिस्थिति यूं ही नहीं बनी। पायलटों की कार्य-समय सीमा तय करने वाले नए ‘एफडीटीएल’ नियम लागू होने के बाद से ही इंडिगो के पास चालक दल की भारी किल्लत है। नए नियम पायलटों को अधिक विश्राम देने और रात में लैंडिंग की सीमा तय करने की बात करते हैं, जिससे उड़ान सुरक्षा तो बढ़ती है, लेकिन एयरलाइनों को अधिक पायलटों की जरूरत भी पड़ती है। यही वह बिंदु है जहां इंडिगो पर उंगलियां उठ रही हैं। पायलट संगठनों का कहना है कि सुधारात्मक तैयारी के लिए एयरलाइन को पूरे दो साल मिले थे, लेकिन कंपनी ने इसके बजाय पायलट भर्ती पर रोक लगाकर एक “अदूरदर्शी और जोखिमभरी रणनीति” अपना ली।
हम आपको बता दें कि फेडरेशन ऑफ इंडियन पायलट्स (FIP) ने डीजीसीए को लिखे अपने पत्र में कहा है कि इंडिगो की यह स्थिति उसकी दीर्घकालिक मानव संसाधन कुप्रबंधन का नतीजा है। संगठन का आरोप है कि नए नियम लागू होने से पहले ही इंडिगो ने बिना कारण भर्ती रोक दी, जिस कारण आज एयरलाइन अपनी ही प्रतिबद्धताएँ निभाने में असमर्थ है। एफआईपी ने यह भी मांग की है कि जब तक इंडिगो पर्याप्त चालक दल उपलब्ध कराने का प्रमाण नहीं देती, तब तक नियामक उसके मौसमी उड़ान कार्यक्रम को मंजूरी न दे। साथ ही संगठन ने डीजीसीए को सुझाव दिया है कि यात्रियों के हित में इंडिगो के स्लॉट्स का पुनर्मूल्यांकन किया जाए और जरूरत पड़ने पर उन्हें उन एयरलाइनों को आवंटित किया जाए जिनके पास व्यवधान-रहित सेवा की क्षमता है।
दूसरी ओर, इंडिगो का कहना है कि उसके परिचालन में आ रही गड़बड़ियों के पीछे कई कारण एक साथ काम कर रहे हैं। इंडिगो का कहना है कि तकनीकी समस्याएं, शीतकालीन उड़ान समय-सारिणी में बदलाव, मौसम की प्रतिकूलता, हवाई अड्डों पर बढ़ती भीड़भाड़ और नए रोस्टरिंग नियम इसके लिए जिम्मेदार हैं। एयरलाइन ने बयान जारी कर बताया है कि स्थिति को सामान्य करने के लिए शुक्रवार तक “संतुलित उड़ान समायोजन” किया जाएगा, जिसमें कुछ उड़ानों को रद्द और कुछ को पुनर्निर्धारित किया जाएगा। इसके अलावा, इंडिगो पर आया यह दबाव शेयर बाजार में भी दिखा। इंडिगो की मूल कंपनी इंटरग्लोब एविएशन के शेयर में गुरुवार को 2.25% की गिरावट आई और इसकी कीमत 5,466.55 रुपये पर आ गई।
वहीं नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए इंडिगो से विस्तृत स्पष्टीकरण मांगा है। नियामक की ओर से यह भी जांच चल रही है कि एयरलाइन ने नए एफडीटीएल नियमों के अनुरूप समय पर तैयारी क्यों नहीं की।
देखा जाये तो इंडिगो का यह संकट सिर्फ एक कंपनी की लापरवाही या रणनीतिक भूल भर नहीं है, यह भारतीय विमानन क्षेत्र की उस पुरानी बीमारी को उजागर करता है जिसमें तेज़ विस्तार की चाह, सीमित मानव संसाधन और नियामकीय बदलावों की अनदेखी एक खतरनाक मिश्रण बनाते हैं। कंपनियां अक्सर मुनाफे और लागत-कटौती के दबाव में पायलटों और तकनीकी कर्मचारियों की वास्तविक जरूरतों को नजरअंदाज कर देती हैं, और कीमत चुकाते हैं यात्री।
एफडीटीएल जैसे नियम सुरक्षा के लिहाज से आवश्यक हैं लेकिन उनका पालन तभी प्रभावी हो सकता है जब एयरलाइंस दीर्घकालिक सोच के साथ भर्ती और प्रशिक्षण में निवेश करें। इंडिगो ने यदि वास्तव में दो साल की तैयारी अवधि खो दी, तो यह सिर्फ प्रबंधन की असफलता नहीं, बल्कि यात्रियों के भरोसे के साथ खिलवाड़ भी है। अब गेंद इंडिगो और डीजीसीए दोनों के पाले में है, एक को अपने परिचालन ढांचे की मरम्मत करनी है और दूसरे को यह सुनिश्चित करना है कि भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन भविष्य में ऐसी अव्यवस्था न दोहराए। इंडिगो को समझना होगा कि यात्री इंतजार में हैं— उन्हें उड़ानें चाहिए, बहाने नहीं।