By अभिनय आकाश | Dec 16, 2021
आतंकी वो होता है जो दहशत फैलाए और वीर वो जो ढाल बनकर सामने खड़ा हो जाए। आज की सबसे बड़ी त्रासदी ये है कि आतंकियों के चेहरे और उनके नाम तो हमें मुंह जुबानी याद हैं। लेकिन जो ढाल बनकर निढाल गिर गए वो गुमनाम रह गए। आज ही के दिन 16 दिसंबर 1971 को भारत ने पाकिस्तान को धूल चटाकर बांग्लादेश को जीत दिलाई थी। लेकिन आज ही के दिन भारत ने जगदम्बा की जय हो के नारे के साथ पाकिस्तान के 10 टैंक को नष्ट करने वाले अपने एक वीर सपूत को खो दिया। वो परमवीर जिसके साहस को पाकिस्तानी अफसर भी नमन करने को मजबूर हो गए थे। आज आपको सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की कहानी सुनाते हैं।
अरुण खेत्रपाल के दादा सूबेदार चमनलाल खेत्रपाल ने दूसरे विश्व युद्ध में अपना पराक्रम दिखाया। पिता ब्रिगेडियर एमएल खेत्रपाल ने अपनी वीरता के लिए परम विशिष्ट सेवा मेडल जीता। इसलिए किसी को आश्चर्य नहीं हुआ जब 14 दिसंबर 1950 को पुणे में एक सैनिक के घर पैदा हुए अरुण ने नेशनल डिफेंस एकेडमी जाने की इच्छा जताई। बचपन से ही फौज की कहानियां सुनकर बड़े हुए अरुण खेत्रपाल सेकेंड लेफ्टिनेंट के तौर पर पूना हॉर्स में कमीशन हुए। यानी वो यूनिट जो टैंकों में महारत रखती है। किस्मत से अरुण उस यूनिट का हिस्सा बने जिसमें कभी उनके आदर्श परमवीर चक्र विजेता अदी तारापोर थे। जून 1971 में जब अरुण डिफेंस एकेडमी से पास हुए तब तक भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की आहट सुनाई देने लगी। युद्ध छिड़ने के साथ ही दिसंबर में पूना हॉर्स को रणभूमि में जाने के आदेश दे दिए गए।
अरुण ने जम्मू कश्मीर के बसंतर में मोर्चा संभाला था। बसंतर की लड़ाई 1971 के जंग के दौरान पश्चिमी सेक्टर में लड़ी महत्वपूर्ण लड़ाइयों में से एक थी। लेकिन इसमें एक अड़चन थी की अधिकारी ने कहा था कि अरुण जो भी फैसला लें वो अपने अधिकारी से पूछकर ही लें। लेकिन अरुण जब युद्द में पहुंचे तो उनमें अजब ही उत्साह आ गया। वो दुश्मनों को रौंदते हुए आगे बढ़ रहे थे। वो अपने टैंकों के साथ दुश्मन की अग्रिम को सफलतापूर्वक काबू में करने में सक्षम हो थे। हालांकि युद्ध के दौरान दूसरे टैंक का कमांडर घायल भी हो गया। लेकिन खेत्रपाल ने अपना हमला जारी रखा। सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण ने महज 21 साल की उम्र में अपने अदम्य साहस की बदौलत 10 पाकिस्तानी टैंक तबाह कर दिए। खेत्रपाल मां जगदंबा के भक्त थे और उन्होंने प्रेरणा देने के लिए ये नारे लगाए। उन्होंने जिस जज्बे का प्रदर्शन किया उसने न सिर्फ पाकिस्तानी सेना को आगे बढ़ने से रोका बल्कि उसके जवानों का मनोबल इतना गिर गया कि आगे बढ़ने से पहले दूसरी बटालियन की मदद मांगने पर मजबूर हो गए।