By अभिनय आकाश | Aug 20, 2021
कहते हैं कि सोमनाथ के मंदिर को खुद भगवान चंद्रमा ने बनाया था। उस वक्त इसे सोने का बनाया गया था। इसके बाद लंका के राजा रावण ने इसे चांदी से बनवाया। फिर भगवान कृष्ण ने चंदन की लकड़ी से इसे बनवाया। फिर भीम ने इसे पत्थरों से बनवाया। हजारों हजार साल से गुजरात के जूनागढ़ में खड़ा है सोमनाथ का मंदिर। जब से इतिहास लिखा गया है तब से अबतक इसको 17 बार तोड़ा गया। लेकिन भगवान शिव के धाम का भला कोई कुछ कहां बिगार सकता है। हर बार इसे फिर से बनाया गया। लेकिन कुछ लोगो को लगता था कि शायद वो शिव के इस धाम का विनाश कर सकते हैं। आज वो लोग जमीन के नीचे या इतिहास की किताबों में दफन हैं। लेकिन सोमनाथ के शिखर पर आज भी धर्म पताका लहरा रहा है। जो ये साबित करती है कि सोमनाथ का मंदिर सदा से था और सदा रहेगा। मंदिर सात बार बना और आजाद भारत के इतिहास में इस मंदिर की वजह से राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच गतिरोध भी हुआ। एक लंबी कहानी है सोमनाथ को लेकर। राजनीति से इतर सोमनाथ के जुड़ी जानकारी। इन कहानियों को सुनने के बाद आपको लिए सोमनाथ मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं रहेगा। प्रतीक भी हो जाएगा, जिजिविषा का, संघर्ष का और साथ ही इस संदेश का भी कि पुनर्निर्माण की ताकत हमेशा तबाही की ताकत से बड़ी होती। पावन प्रभासक्षेत्र में स्थित सोमनाथ-ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कन्दपुराणादि में विस्तार से बताई गई है। चंद्रमा का एक नाम सोम भी है, उन्होंने भगवान् शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहाँ तपस्या की थी। अतः इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहा जाता है।
कई बार हुए थे सोमनाथ मंदिर पर हमले
सोमनाथ मंदिर को बार-बार विदेशी हमलावरों द्वारा लूटा गया। खासतौर पर मुस्लिम सुल्तानों और बादशाहों ने सोमनाथ मंदिर को तोड़ने और नष्ट करने के लिए गुजरात पर बार-बार हमले किए। कहा जाता है कि सबसे पहले एक मंदिर ईसा के पूर्व में अस्तित्व में था जिस जगह पर दूसरी बार मंदिर का पुनर्निर्माण सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने किया। आठवीं सदी में सिन्ध के अरबी गवर्नर जुनायद ने इसे नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी। प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका तीसरी बार पुनर्निर्माण किया। मंदिर का बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार होता रहा। 1022 ईस्वी में राजा भीमदेव सोलंकी ने गुजरात के चालूक्य राज्य की सत्ता संभाली। सोलंकी वंश के इसी राजा के शासनकाल में सोमनाथ के विश्व प्रसिद्ध मंदिर को लूटने व तोड़ने की घटना 1026 ई में घटित हुई थी। करीब 50,000 योद्धाओं के बलिदान के पश्चात ही महमूद गजनवी सोमनाथ के मंदिर को तोड़ने में सफल हुआ था। उस समय राजा भीमदेव भी उस विदेशी लुटेरे शासक के विरुद्ध आक्रमणकारी के विरुद्ध संघर्ष कर रहे थे। वह स्वयं भी युद्धभूमि में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। उनके घायल होने के उपरांत ही महमूद गजनवी मन्दिर विध्वंस के अपने कुकृत्य को करने में सफल हो पाया था। जिसका जिक्र केएम मुंशी ने अपनी पुस्तक ‘इंपीरियल गुर्जर्स’ में किया है । गजनवी ने मंदिर की संपत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। तब मंदिर की रक्षा के लिए निहत्थे हजारों लोग मारे गए थे। ये वे लोग थे, जो पूजा कर रहे थे या मंदिर के अंदर दर्शन लाभ ले रहे थे और जो गांव के लोग मंदिर की रक्षा के लिए निहत्थे ही दौड़ पड़े थे। महमूद के मंदिर तोड़ने और लूटने के बाद गुजरात के राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। 1093 में सिद्धराज जयसिंह ने भी मंदिर निर्माण में सहयोग दिया। 1168 में विजयेश्वर कुमारपाल और सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ मंदिर के सौन्दर्यीकरण में योगदान किया था। सन् 1297 में जब दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां ने गुजरात पर हमला किया तो उसने सोमनाथ मंदिर को दुबारा तोड़ दिया और सारी धन-संपदा लूटकर ले गया। मंदिर को फिर से हिन्दू राजाओं ने बनवाया। लेकिन सन् 1395 में गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह ने मंदिर को फिर से तुड़वाकर सारा चढ़ावा लूट लिया। इसके बाद 1412 में उसके पुत्र अहमद शाह ने भी यही किया। बाद में मुस्लिम क्रूर बादशाह औरंगजेब के काल में सोमनाथ मंदिर को दो बार तोड़ा गया- पहली बार 1665 ईस्वी में और दूसरी बार 1706 ईस्वी में। 1665 में मंदिर तुड़वाने के बाद जब औरंगजेब ने देखा कि हिन्दू उस स्थान पर अभी भी पूजा-अर्चना करने आते हैं तो उसने वहां एक सैन्य टुकड़ी भेजकर कत्लेआम करवाया। 1783 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई द्वारा मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर पूजा-अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव का एक और मंदिर बनवाया गया। जूनागढ़ की रियासत के नवाब ने 1947 के पहले अपनी रियासत को पाकिस्तान में मिलाने का फैसला किया था। जिसको भारत की ओर से अस्वीकार कर दिया गया और जूनागढ़ को हिन्दुस्तान में मिला दिया गया था। भारत की आजादी के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल ने समुद्र का जल लेकर नए मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया। उनके संकल्प के बाद 1950 में मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ।
समुद्र किनारे का वॉक वे, सोमनाथ प्रदर्शनी सेंटर और प्राचीन सोमनाथ मंदिर परिसर का पुननिर्माण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमनाथ से जुड़े कई परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। वीडियो कॉन्फ्रेंसिग के जरिये हुए इस कार्यक्रम में पीएम मोदी सोमनाथ समुंद्र दर्शन पैदल पथ, सोमनाथ प्रदर्शनी केंद्र और नवीनीकृत अहिल्याबाई होल्कर स्टेडियम का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी श्री पार्वती मंदिर की भी आधारशिला ऱखा। कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिग के माध्यम से मौजूद रहे।
समुद्र दर्शन पथ यानी की समुद्र के दर्शन करा सके ऐसा पथ। 47 करोड़ के खर्चे से इस पथ का निर्माण किया गया है। केंद्र सरकार की योजना प्रसाद के तहत जितने भी अध्यात्मिक जगहें हैं उनकी कायाकल्प की योजना के तहत 47 करोड़ के खर्च से समुद्र दर्शन पथ का निर्माण हुआ है। सोमनाथ के मंदिर के प्रांगण में समुद्र दर्शन पथ है। डेढ़ किलोमीटर लंबा ये पथ है। इस पथ पर चलते हुए आप भगवान शंकर के जीवन से जुड़ी बहुत सारी कथाएं दीवारों पर अंकित हैं। शिवपुराण के आधार पर इन कथाओं को यहां चित्रित किया गया है।
सोमनाथ प्रदर्शनी केंद्र
सोमनाथ प्रदर्शनी केंद्र को टूरिस्ट सुविधा केंद्र के परिसर में बनाया गया हे। इसमें प्राचीन सोमनाथ मंदिर के ध्वस्त हो चुके हिस्सों की जानकारी दी जाएगी। पुराना सोमनाथ मंदिर नागर शैली में बना था, उसके वास्तुशिल्प की जानकारी पर्यटकों को यहां से मिल सकेगी।
जूना सोमनाथ मंदिर परिसर
सोमनाथ ट्रस्ट ने प्राचीन (जूना) सोमनाथ मंदिर परिसर का पुनर्निमाण करवाया है। इस पर कुल 3.5 करोड़ रुपयों का खर्चा आया है। इस मंदिर को रानी अहिल्याबाई मंदिर भी कहा जाता है क्योंकि दौर की रानी अहिल्याबाई ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था।
श्री पार्वती मंदिर
यहां श्री पार्वती मंदिर की भी आधारशिला रखी गई। इसके निर्माण में करीब 30 करोड़ रुपयों की लगात आएगी। इसमें गर्भ गृह और नृत्य मंडप बनाया जाएगा।-अभिनय आकाश