By संतोष उत्सुक | Oct 19, 2024
दशहरा में इस बार भी बुराइयों के अनेक असली प्रतीक बच गए तभी हमारे उत्सव प्रिय समाज में आनंद छाया है। त्योहार आते हैं तो हमें मनचाहा करने की अनुमति मिल जाती है। सब तरफ आज़ादी होती है। त्योहार न हो तो अनुशासन लागू रहता है। यहां कचरा मत फेंको। सूखा, गीला कचरा अलग अलग रखो। जोर से लाउड स्पीकर मत बजाओ। वाहन तेज मत घुमाओ। एक बार त्योहार शुरू हो जाएं तो ज़िंदगी का असली मज़ा आना शुरू हो जाता है। हम वही करते हैं जिसके लिए दुनिया में आए हैं।
उत्सव में हम बड़ी से बड़ी मूर्ति बनाना चाहते हैं ताकि एक रिकॉर्ड बने। किसी न किसी रिकॉर्ड बुक में नाम आ जाए। पुरस्कार मिल जाए। घर पर पूजा रखते हैं। धमाल मचाउ श्रद्धा से त्योहार मनाते हैं फिर तनचाहा मज़ा लेते हैं। मूर्ति विसर्जन जैसे कैसे निबटाते हैं। कम पड़ते पानी को दूषित करते हैं। पर्यावरण को जानबूझकर नुकसान पहुंचाते हैं। भगवान की मूर्तियों को घर से निकालकर सड़क किनारे या पुल के नीचे कहीं भी फेंक देते हैं। पूजा संपन्न करने के बाद ऐसा करना हमारी समृद्ध परम्परा है।
अगला त्योहार आता है इसमें भी खूब मूर्तियां खरीदते हैं। सुन्दर वस्त्र पहन कर पंडाल में जाते हैं। जीवन में दिमागचाहा हो इसके लिए आशीर्वाद मांगते हैं। तन मन धन से पूजा करते हैं। हज़ारों किलोमीटर दूर से अपने घर आते हैं ताकि पूर्वजों की धरती पर बैठकर पूजा पाठ कर पुण्य कमाएं। डीजे पर खूब जोर शोर से संगीत मचाते हैं। नाचते गाते हैं। हर कहीं कचरा फैलाते हैं क्यूंकि त्योहार है जी। उत्सव में शामिल होकर अपनी संस्कृति को जीवित रखना, जूलूस निकालना, कचरा फैलाना हमारा धर्म है जी और कचरा उठाना किसी और की जिम्मेदारी है। ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने में जो मज़ा है वह मानने में नहीं। यह सब हमारी भावनाओं का प्रदर्शन है जी लेकिन सुरक्षा व्यवस्था में सहयोग करना, अनुशासन बनाए रखना हमारी भावनाओं में शामिल नहीं है।
अभी बड़ा त्योहार आने वाला है। एक दूसरे का उपहार निबटाने के लिए खरीददारी शुरू हो गई है। वाहनों पर इतनी छूट दी जा रही है कि रिझाने वाली सुविधायुक्त महंगी गाडी खरीद ली जाएगी । वह बात दीगर है कि बाक़ी कहानी उसकी न दी जा सकने वाली किश्तें समझाएगी। प्रशासन और शासन को खुश रखने के लिए बड़े आकार के काजू बादाम उपहार दिए जाएंगे।
महंगी मार्किटिंग और शानदार पैकिंग के सहारे चल रहे बाज़ार ने ग्राहकों को फुसलाने के लिए विज्ञापन अपने मुंह पर पोत लिए हैं। बाद में यह शायद ही समझ आएगा कि नैसर्गिक बुद्धि का कितना दिवाला निकला। पर्यावरण प्रेम के गीत और नारे सुनना, प्लास्टिक फिलहाल पसंद नहीं करेगी। उसके यहां भी त्योहार है। उसने भी कानून तोड़ने मरोड़ने वालों के साथ मिलकर अपना साम्राज्य फैलाना है जी।
- संतोष उत्सुक