By अनन्या मिश्रा | May 19, 2024
आज ही के दिन यानी की 19 मई को भारतीय उद्योगों का पिता कहे जाने वाले जमशेदजी टाटा निधन हो गया था। उन्होंने अपने जीवन में काफी संघर्ष कर खुद को स्थापित किया था। जीवन में हालात कभी उनके अनुकूल नहीं थे, लेकिन उन्होंने परिस्थितियों के आगे जाकर उपलब्धियां हासिल की। पिता से विरासत में मिले व्यवसाय को छोड़कर उन्होंने जिस भी व्यवसाय में हाथ डाला, उन्होंने उसमें सफलता पाई। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर जमशेद जी टाटा के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
गुजरात के नवसारी में 3 मई 1839 को जमशेद जी टाटा की जन्म हुआ था। उनके पिता नौशरवांजी पारसी पादरियों के वंश में पहले व्यापारी थे। पढ़ाई के दौरान ही सिर्फ 14 साल की उम्र में वह अपने पिता के व्य़वसाय से जु़ड़ गए। वहीं साल 1858 में उन्होंने एल्फिस्टन कॉलेज में स्नातक की पढ़ाई की। पढ़ाई पूरी होने के बाद वह पूरी तरह से व्यवसाय पर फोकस करने लगे।
अफीम का व्यवसाय
जमशेद जी टाटा के पिता की निर्यात कंपनी की जापान, चीन यूरोप, और अमेरिका में शाखाएं हुआ करती थीं। लेकिन साल 1857 के विद्रोह के बाद उस व्यवसाय को चला पाना काफी मुश्किल काम था। वहीं नुसेरवानजी टाटा नियमित तौर पर चीन जाया करते थे और अफीम का कारोबार करते थे। नुसेरवानजी अपने बेटे जमशेद को भी इसी व्यवसाय में डालना चाहते थे। जिसके लिए वह जमशेद जी को चीन भेजना चाहते थे। ताकि वह अफीम के व्यापार की बारीकियों को सीख सकें।
बता दें कि जब वह चीन गए, तो देखा कि कपड़े के व्यवसाय में भविष्य है। उन्होंने सिर्फ 29 साल की उम्र तक पिता के व्यवसाय में काम किया फिर 1868 में जमशेद जी ने 21 हजार रुपए में एक कंपनी खोली। चिंचपोकली में दिवालिया तेल की कारखाने को खरीदा और उस कंपनी को रूई की फैक्ट्री में बदला। वहीं करीब दो साल बाद मुनाफे पर इस कंपनी को बेच दिया।
इसके बाद उन्होंने कपड़े का व्यवसाय शुरू किया और जल्द ही वह कपड़ा और कपास उद्योग के शीर्ष पर पहुंच गए। बता दें कि अहमदाबाद के आर्थिक विकास में जमशेद जी की कपड़ा मिल ने अहम भूमिका निभाई। वह खुद स्वदेशी के पक्षधर हुआ करते थे और वह चाहते थे कि मैनचेस्टर में जितना महीन कपड़ा तैयार होता था, उसी स्तर और गुणवत्ता वाला कपड़ा भारत में भी हो। वह भारत को कपड़ा उद्योग में निर्यातक की श्रेणी में लाना चाहते थे।
अधूरे सपने और मृत्यु
लेकिन जमशेद जी टाटा के तीन सपने अधूरे रह गए, जिनको बाद में उनके वंशजों ने पूरा किया। जिनमें से पहला सपना टाटा स्टील कंपनी को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कंपनियों में से एक बनाना, जोकि एशिया की पहली और भारत की सबसे बड़ी स्टील कंपनी है। वहीं दूसरा सपना बेंगलूरू में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस आज विज्ञान, इंजीनियरिंग और शोध में भारत के शीर्ष संस्थान में गिना जाने लगा। तीसरा सपना हाइड्रोइलेक्ट्रिक पॉवर सप्लाई कंपनी बनाना, जिसको वर्तमान में टाटा पॉवर के नाम से जाना जाता है। वहीं 19 मई 1904 को जमशेद जी टाटा की निधन हो गया।