By अभिनय आकाश | May 05, 2025
पहलगाम के पाकिस्तान प्रायोजित आंतकी हमले को लेकर 10 दिन से ज्यादा गुजर चुके हैं। हर किसी की निगाहें इस बात पर टिकी है कि भारत इस टेरर अटैक, इस हमले का जवाब कैसे देगा? वहीं कुछ वर्ग नाराज भी हैं कि इतने दिन बीत चुके हैं। पाकिस्तान को जवाब कैसे दिया जाएगा या फिर इस बार भारत चुप बैठेगा। पुलवामा का भी जवाब 12 दिन बाद आया था। प्रधानमंत्री मोदी ने भी ऐलान कर दिया है कि भारत हर एक आतंकवादी और उनके हैडलर्स को ढूंढ़ करके सजा दिया जाएगा। ऐसा करने के लिए तीनों सेनाओं को खुली छूट भी दे दी गई है। अपने देश से पाकिस्तानियों को निकालने के बाद उनके सारे अकाउंट ब्लॉक करने के बाद, सारे पाकिस्तान लिंक इंपोर्ट को रोकने और सिंधु जल संधि निरस्त किए जाने के बाद भारत की तरफ से एक कड़ा मिलिट्री ऑपरेशन का प्रेशर है। वाजपेयी और मनमोहन सिंह की तरह मोदी पीछे नहीं हट सकते हैं। खासकर उरी और बालाकोट के एक्शन के बाद एक सशक्त कार्रवाई की अपेक्षा की जा रही है। लेकिन वो रिएक्शन कैसा होगा, किस रूप में आएगा इस सवाल ने पाकिस्तानी हुकूमत को भी असमंजस में डाल दिया है।
मुल्ला मुनीर किसे मानते अपना गुरु
पाकिस्तान में पाकिस्तानी आर्मी चीफ को लोग मुल्ला मुनीर के नाम से बुलाते है। पाकिस्तान के आर्मी चीफ मुनीर देश के पूर्व तानाशाह जनरल जिया उल हक को अपना आइडियल मानते हैं। जिन्होंने पाकिस्तानी फौज में कट्टरवाद के नाम पर धर्म की एंट्री करवाई थी। ये वही मुल्ला मुनीर हैं जो पुलवामा हमले के दौरान पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के चीफ थे। हमारे (हिंदुओं और मुसलमानों के) धर्म अलग हैं, हमारे रीति-रिवाज अलग हैं, हमारी परंपराएं अलग हैं, हमारे विचार अलग हैं, हमारी महत्वाकांक्षाएं अलग हैं... हम दो राष्ट्र हैं, हम एक राष्ट्र नहीं हैं। जिनके सीने पर आर्मी की वर्दी नहीं होती तो शायद कोई यकीन भी नहीं करता कि ये अल्फाज किसी आर्मी अफसर के थे। जिसके ऊपर पूरे पाकिस्तान के हिफाजत की जिम्मेदारी है। मगर वो अफसर अपने मुल्क की जिम्मेदारी और तरक्की से ज्यादा इस बात पर तव्ज्यो देने की कोशिश कर रहा है कि मुसलमान हिंदुओं से कैसे अलग है और उसके पूर्वजों ने पहले से ये तय कर लिया था कि हिंदू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते।
मुनीर, बाजवा, इमरान
कई पाकिस्तानी जनरलों के विपरीत, मुनीर ने कभी पश्चिम में सेवा नहीं की या ब्रिटिश या अमेरिकी सैन्य संस्थानों में प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया। हालाँकि, उन्हें मूल रूप से एक सैनिक माना जाता है। एक ऐसी प्रतिष्ठा जो सेना में उनके कुछ हद तक असंभव उत्थान के लिए जिम्मेदार है, साथ ही 2019 में उन्हें लगभग गुमनामी में डाल दिया गया। मुनीर भारतीय सीमा पर फोर्स कमांड उत्तरी क्षेत्रों में एक ब्रिगेडियर के रूप में सेवा कर रहे थे, जब उन्होंने तत्कालीन एक्स कॉर्प्स कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल कमर जावेद बाजवा का ध्यान आकर्षित किया। उनके रिश्ते ने मुनीर को अंततः सेना प्रमुख के रूप में बाजवा का उत्तराधिकारी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 2017 की शुरुआत में, मुनीर को सैन्य खुफिया महानिदेशक (DGMI) के रूप में तैनात किया गया था, जो पाक सेना का प्रशासनिक खुफिया तंत्र है जो संगठनात्मक सुरक्षा बनाए रखता है, और विरोधियों की जमीनी सेना की क्षमताओं पर खुफिया जानकारी भी इकट्ठा करता है। मार्च 2018 में तत्कालीन मेजर जनरल मुनीर को पाकिस्तान के दूसरे सबसे बड़े राजकीय सम्मान हिलाल-ए-इम्तियाज से सम्मानित किया गया था। सितंबर में उन्हें लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर पदोन्नत किया गया, जिसके बाद अक्टूबर में उन्हें इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) का प्रमुख बनाया गया। उल्लेखनीय है कि फरवरी 2019 में पुलवामा में हुए आतंकी हमले के दौरान मुनीर आईएसआई प्रमुख थे, जिसमें 40 भारतीय सुरक्षाकर्मी मारे गए थे। लेकिन आईएसआई प्रमुख के रूप में मुनीर का कार्यकाल महज आठ महीने तक चला, जो अब तक का सबसे छोटा कार्यकाल था। जून 2019 में, बाजवा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान के आग्रह पर मुनीर को गुजरांवाला में XXX कोर में स्थानांतरित कर दिया। जाहिर तौर पर ऐसा तब हुआ जब मुनीर इमरान की पत्नी बुशरा बीबी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करना चाहते थे। मुनीर अक्टूबर 2021 तक XXX कोर के कमांडर के रूप में तैनात थे, जब उन्हें पाक सेना के क्वार्टरमास्टर जनरल के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने नवंबर 2022 में बाजवा के सेवानिवृत्त होने से महज तीन दिन पहले सेना प्रमुख के रूप में पदभार संभाला। आज इमरान जेल में हैं। पूर्व प्रधानमंत्री ने बार-बार मुनीर पर उनके खिलाफ व्यक्तिगत दुश्मनी रखने और यहां तक कि उन्हें मारने की साजिश रचने का आरोप लगाया है।
सोच बदलना मुश्किल
भारत को आतंक की आग में झुलसाने की नापाक कोशिशों से पाकिस्तान खुद झुलसने लगा है, लेकिन उसके सैन्य हुक्मरान अवाम को कश्मीर का सपना दिखाते हुए सत्ता पर वर्चस्व बनाए रखने की स्वार्थी नीतियों से हटना नहीं चाहते। अस्सी के दशक में पाकिस्तानी सेना के इस्लामीकरण की जो मुहिम जनरल जिया उल हक ने चलाई थी, उसके बाद वहां कई पीढ़ियों से जिहादी जनरल बनते आ रहे हैं। मौजूदा सेना प्रमुख जनरल मुनीर तो हिंदू-मुस्लिम दो कौमों की भाषा बोल ही रहे है, भविष्य में भी पाकिस्तानी सेना के आला जनरल और अफसर इसी सोच वाले होंगे। इसलिए यह सोचना कि पाकिस्तानी सेना की भारत के प्रति सोच को कभी बदला जा सकता है, गलत होगा।
सेना में अंदरुनी फूट
मुनीर एक ऐसे सैन्य प्रतिष्ठान का नेतृत्व कर रहे हैं जो इस समय उतना ही अलोकप्रिय है जितना कि लंबे समय से रहा है। 2024 के दिखावटी आम चुनाव, जिसमें इमरान की पीटीआई को एक पार्टी के रूप में चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी गई, ने जनता के बीच सेना की स्थिति को नुकसान पहुंचाया है - जैसा कि इमरान की लंबी कैद और उनके समर्थकों द्वारा विरोध प्रदर्शनों के खिलाफ कार्रवाई ने किया है। यहां तक कि सेना भी इमरान के समर्थक और विरोधी गुटों में बंटी हुई है। बलूचिस्तान में उग्रवाद बढ़ता जा रहा है, साथ ही पाकिस्तान तालिबान और काबुल में शासन के साथ भी परेशानियाँ बढ़ रही हैं। 11 मार्च को बलूच अलगाववादियों ने जाफ़र एक्सप्रेस को हाईजैक कर लिया और सैकड़ों लोगों को बंधक बना लिया। इस घटना में अंततः 64 लोगों की मौत हो गई। बलूचिस्तान और ख़ैबर-पख़्तूनख्वा में पंजाबियों, शियाओं, सिंधियों और चीनी नागरिकों की लक्षित हत्याएँ अक्सर होती रही हैं। मुनीर के हालिया बयानों को नई दिल्ली में पाकिस्तान और उसकी सेना के लिए मुश्किल समय में समर्थन जुटाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
सर्जिकल और एयर स्ट्राइक नाकाफी
भारत और पाकिस्तान के माहौल बीच वैसा ही है जैसा 1999 में करगिल घुसपैठ, 2001 में संसद पर हमला, 2008 में मुंबई पर आतंकवादी हमला और 2019 में पुलवामा हमले के बाद देखा गया था। इस बार भी दोनों देशों की ओर से आरपार की लड़ाई की बातें की जा रही हैं। पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए भारत ने 2016 और 2019 में दो बार सर्जिकल स्ट्राइक किए, लेकिन इसके बाद भी पाकिस्तान ने आतंकवादियों को प्रश्रय देना बंद नहीं किया।
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