स्मृति शेष: पृथ्वी की सुर साम्राज्ञी स्वर्ग में माधुर्य बिखेरने चल पड़ीं

By दीपा लाभ | Feb 07, 2022

रहें ना रहें हम, महका करेंगे

बन के कली, बन के सबा, बाग़े वफ़ा में


1966 में लता जी के गाये इस गीत ने आज अपना सत्य पा लिया। सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर का यूँ रुख़सत हो जाना असहनीय है। उनके होने का एहसास ही संगीत प्रेमियों के लिए संतोष का कारण था। अब उनके नहीं होने से संगीत जगत् के एक सदी का अंत हो गया। ताई का जाना हम सबको रुला गया। भारत रत्न, पद्म भूषण, पद्म विभूषण, स्वर कोकिला लता मंगेशकर के निधन से समूचे देश में शोक की लहर है। देश के सर्वोच्च नागरिक से लेकर आम इंसान तक, हर देशवासी इस खबर से एक सामान आहत है। ‘लता दीदी’ की लोकप्रियता देश-विदेश तक फैली थी। भारतीय सिने-जगत् का एक सुरीला सितारा अब आसमान का नक्षत्र बन स्वर्ग में माधुर्य घोलगा। शायद ईश्वर के यहाँ राग-रागिनियाँ कम पड़ गयीं थीं जो हमारा सर्वश्रेष्ठ सुर अपने पास बुला लिया। उनके जाने से भारतीय संगीत पटल में आई रिक्तता सदैव महसूस की जाएगी।

इसे भी पढ़ें: संगीत जगत की माँ सरस्वती सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का महाप्रयाण (स्मृति-शेष)

92 वर्षीया लता मंगेशकर विगत 8 दशकों से अपनी सुरीली आवाज़ के जादू से सभी को मंत्र मुग्ध करती रहीं। 34 भारतीय भाषाओँ में 30 हज़ार से भी अधिक गीतों के साथ उन्होंने सभी भाषा-भाषियों के बीच अपनी अद्वितीय पहचान बनाई थी। मैथिली, कोंकणी, गढ़वाली, पंजाबी, बांग्ला, उड़िया, मराठी, तमिल, तेलगु, कन्नड़, मलयालम समेत कई विदेशी भाषाओँ के गीत भी बड़ी सहजता से गा लेंतीं थीं लता ताई। उन्हें कभी “भारत का नाइटिंगेल” कहा गया तो कभी “क्विन ऑफ़ मेलोडी”; सुरों की ऐसी साधिका आज की पीढ़ी के लिए एक मिसाल है। “ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आँख में भर लो पानी” गाकर जो हजारों भारतीयों की आँखें नम कर देतीं थी; “वन्दे मातरम्” के आलाप से जो करोड़ो भारतीयों की रगों में देशभक्ति का जज़्बा जगा देतीं थीं; “लुका-छुपी, बहुत हुई” गाकर जिन्होंने हर माँ की ममता का सजीव चित्रण कर दिया था उन स्वर-देवी के सामने बार-बार नतमस्तक होकर पुनः जी उठने का आग्रह करने का मन करता है। “मेरी आवाज़ ही पहचान है, गर याद रहे” - सत्य कहा था उन्होंने, उनकी आवाज़ ही पहचान है जिसे उन्हें सुनने वाला एक भी संगीतप्रेमी कभी भुला नहीं सकता।

इसे भी पढ़ें: 'लग जा गले' से लेकर 'जिया जले' तक: ये हैं लता मंगेशकर के सर्वश्रेष्ठ 20 गाने

उनके जीवन वृत्त और उपलब्धियों से तो समूचा मीडिया पटा पड़ा है; अतः उन्हें पुनः यहाँ दोहरा कर आपका समय बर्बाद करने का कोई इरादा नहीं है। आज तो बस अपने हृदय के उद्गार बयाँ करने का मन है जो उनकी स्मृति में बार-बार डूब जा रहा है; उनके सुरों के माधुर्य में उनके जाने का गम भूल जाना चाहता है। पाँच साल की छोटी सी उम्र से लता जी ने अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर से संगीत की विधिवत् शिक्षा आरम्भ कर दी थी। कैसा रहा होगा वो जुनून कि खेलने-कूदने की बाली उमर में उस नन्हीं बच्ची ने संगीत-साधना में मन रमा लिया और ऐसा रमाया कि “शताब्दी का स्वर” बनकर उभरीं। उनकी जीवनी, उनकी साधना, उनका देशप्रेम, संगीत के प्रति उनकी असीम श्रद्धा – उनके जीवन का हर पक्ष आज की पीढ़ी के लिए एक मिसाल है। 30 मार्च 2019, यानि 90 वर्ष की आयु में, उन्होंने अपना आख़िरी गीत “सौगंध मुझे इस मिट्टी की” रिकार्ड किया था जिसे देश की सेना को समर्पित किया था। धन्य है वो सैनिक जिनके पास ‘लता मंगेशकर – द लेजेंड’ की आवाज़ उनके आख़िरी गीत के रूप में इतिहास के पन्नों पर दर्ज है और धन्य हैं वो गायिका जिन्होंने जाने से पहले इस देश की मिट्टी की आराधना में शीष झुकाए। दिसम्बर 2021 में अपने ट्विटर हैंडल पर उन्होंने लिखा था, “16 दिसंबर 1941 को, ईश्वर का, पूज्य माई और बाबा का आशीर्वाद लेकर मैंने रेडियो के लिए पहली बार स्टूडियो में 2 गीत गाए थे। आज इस बात को 80 साल पूरे हो रहे हैं। इन 80 सालों में मुझे जनता का असीम प्यार और आशीर्वाद मिला है, मुझे विश्वास है कि आपका प्यार, आशीर्वाद मुझे हमेशा यूँ ही मिलता रहेगा।“ अस्सी सालों का अक्षय धरोहर हमारे नाम छोड़कर 6 फरवरी 2022 को हम सबकी आदरणीया लता मंगेशकर परलोक में अपने सुरों का जादू बिखेरने चली गयीं। किन्तु वे नहीं जानतीं कि उनकी आवाज़ सदियों तक इन फ़िज़ाओं, इन वादियों और करोड़ो भारतीयों के दिलों की धड़कन बनकर सदैव जीवित रहेगी।


- दीपा लाभ 

(भारतीय संस्कृति की अध्येता)

प्रमुख खबरें

Maharashtra : Thane में रिश्ते की बहन और उसके पति की हत्या के दोषी को आजीवन कारावास

Vadattiwar की शहीद हेमंत करकरे पर टिप्पणी से बिल्कुल सहमत नहीं हूं : Raut

Israeli सेना ने फलस्तीनियों को East Rafah अस्थायी रूप से खाली करने को कहा, जमीनी हमले की आशंका

सरकार विपणन वर्ष 2023-24 में 20 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दे : ISMA