घर में सुख-शांति के सूत्र

By विजय कुमार | Nov 13, 2018

मैं एक सामाजिक व्यक्ति हूं। अतः सैंकड़ों परिवारों में जाने का अवसर मिला है। अधिकांश परिवारों में प्रायः कलह का वातावरण दिखायी देता है। पीढ़ीगत अंतर के कारण बुजुर्ग और युवाओं में तालमेल नहीं है। और सास-बहू या जेठानी और देवरानी के किस्से तो घर-घर की कहानी हैं; पर कुछ लोगों ने समझदारी से इन समस्याओं को सुलझा कर परिवार की सुख-शांति और नयी पीढ़ी के संस्कारों को जीवित रखा है।  

 

मेरे एक घनिष्ठ मित्र हैं। वे दो भाई हैं। दोनों के कारोबार एक साथ ही हैं, जो ठीक से चल रहा है; पर घर पर आते ही समस्याएं शुरू। महिलाओं के बीच हर दिन के किस्से सुन-सुनकर दोनों परेशान हो जाते थे। इनका कोई सिर-पैर तो होता नहीं था, प्रायः अपने-अपने अहं के कारण ही मनमुटाव होता था। किसी बुजुर्ग की सलाह पर उन्होंने एक रास्ता निकाला और प्रसन्नतापूर्वक दो रसोई चलाने का निर्णय लिया। 

 

पर इसके साथ ही दोनों परिवारों ने निश्चय किया कि शनिवार रात का भोजन वे साथ करेंगे। शनिवार शाम को बड़े भाई की पत्नी अपनी देवरानी की रसोई में पहुंच जाती, दोनों मिलकर साथ-साथ भोजन बनातीं। दूसरे शनिवार को ऐसा ही छोटे भाई की पत्नी करती। सच जानिये, साल भर में दोनों महिलाओं के मन फिर से मिल गये। 

 

एक सूत्र उन्होंने और अपनाया। बच्चे घर से विद्यालय और दोनों भाई अपने कारोबार पर जाते समय घर में ही बने छोटे से मंदिर में सिर झुकाकर जाते हैं। आते समय भी यही क्रिया दोहरायी जाती है। इसके साथ ही हर मंगल की रात्रि में वे सामूहिक आरती करते हैं। आरती की पूरी तैयारी करने और फिर तिलक लगाने, दीपक घुमाने से लेकर प्रसाद बांटने तक की जिम्मेदारी क्रमशः एक-एक बच्चे की रहती है। जिस बच्चे का उस मंगल को नंबर होता है, वह मंदिर की सफाई से लेकर सजावट में विशेष उत्साह दिखाता है। इस प्रकार उनके मन पर अच्छे संस्कार पड़ते हैं और परिवार में प्रेमभाव भी बढ़ता है।

 

इसी प्रकार उनके परिवार में एक मासिक कार्यक्रम भी चलता है। हर मास के अंतिम रविवार को सुबह नाश्ते के बाद दोनों परिवार एक गाड़ी किराये पर लेकर कहीं आसपास घूमने निकल पड़ते हैं। खाना कुछ साथ ले लिया और बाकी किसी होटल पर खा लिया। मूड हुआ तो पिक्चर भी देख ली या फिर कुछ और...। कुछ निजी खरीदारी करनी हो, तो दोनों महिलाएं परस्पर परामर्श से कर लेती हैं। आठ-दस घंटे के इस कार्यक्रम की मीठी याद पूरे परिवार में महीने भर बनी रहती है।

 

हां, आर्थिक समन्वय के लिए भी उन्होंने एक सूत्र बनाया है। घर में होने वाले सुख-दुख के प्रसंग, मरम्मत, रंगाई-पुताई, मेहमानों पर खर्च, शादी-विवाह के लेन-देन और बच्चों की शिक्षा के व्यय दुकान से होते हैं; पर अपने भोजन, वस्त्र और अन्य निजी खर्चे के लिए दोनों परिवार प्रतिमास एक निश्चित राशि दुकान से उठाते हैं। इस व्यवस्था से दोनों ही सुखी हैं।

 

प्रायः महिलाओं में विवाद का कारण रसोई के झंझट तथा पुरुषों में विवाद का कारण किसी एक भाई द्वारा अधिक खर्च कर लेना ही होता है। अन्य यदि कोई गंभीर समस्या न हो, तो ऊपर बताये कुछ सूत्रों को आप भी प्रयोग कर देखें, शायद आपके घर की समस्या भी हल हो जाये।

 

-विजय कुमार

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