छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में हैं चमत्कारिक और दुर्लभ काले गणेशजी

By कमल सिंघी | Nov 01, 2017

दंतेवाड़ा। छत्तीसगढ़ के घोर नक्सली क्षेत्र दंतेवाड़ा में ढोलकल की पहाड़ी पर 10वीं सदी से दुर्लभ काले गणेशजी विराजमान हैं। छिंदक नागवंशी राजाओं ने यहां 10वीं शताब्दी से पहले के ग्रेनाइट पत्थर से बने गणेशजी की प्रतिमा की स्थापना करवाई थी। जो आज भी दुर्लभ गणेश जी के रूप में पूजे जाते हैं। भगवान गणेश चमत्कारिक बताए जाते हैं, यही वजह है कि देश ही नहीं विदेशों से भी यहां पर्यटक दर्शन व पूजन करने के लिए पहुंचते हैं।

भगवान गणेश के भक्तों से नक्सली डरते हैं। जी हां दंतेवाड़ा के ढोलकल पहाड़ी क्षेत्र के जंगल में नक्सलियों के छिपने की कई जगहें हैं, लेकिन घना जंगल क्षेत्र होने से यहां सिर्फ भगवान गणेश की पूजा के लिए भक्त ही पहुंचते हैं। ऐसे में नक्सलियों के लिए डर बना रहता है कि उनकी छिपने की जगह कोई देख न ले। यही वजह है कि करीब 9 माह पहले यानी 26 जनवरी 2017 को पहाड़ी से नक्सलियों ने भगवान गणेश की प्रतिमा को गिरा दिया था। इसके बाद स्थानीय प्रशासन ने जांच की, जिसमें पता लगा कि नक्सलियों ने ही ऐसा किया था। श्रद्धालुओं की आस्था को देखते हुए पहाड़ी के नीचे से मूर्ति को लाया गया और फिर से विधि विधान से पूजन के बाद मूर्ति स्थापित की गई। यहां इस घटना के बाद सुरक्षा बढ़ाई गई है।

 

पौराणिक कथा: परशुरामजी से हुआ था गणेश जी का युद्ध

 

इसी पहाड़ी पर भगवान परशुराम और भगवान गणेश का युद्ध हुआ था। यह पौराणिक कथा आज भी यहां प्रचलित हैं। कहा जाता है कि ढोल कल की पहाड़ियों में भगवान परशुराम से युद्ध के समय ही भगवान गणेश का एक दंत टूटा था। भगवान परशुराम के फरसे से गणेश जी का दंत टूटा था। आज भी आदिवासी भगवान गणेश को अपना रक्षक मानकर पूजते हैं। ब्रह्वैवर्त पुराण में भी इसी तरह की कथा मिलती है। इसमें कहा गया है कि वह कैलाश पर्वत स्थित भगवान शंकर के अंत: पुर में प्रवेश कर रहे थे। लेकिन उस समय भगवान शिव विश्राम कर रहे थे। उनके विश्राम की वजह से परशुराम जी को भगवान शिव से मिलने से गणेशजी ने रोक दिया था, इस बात को लेकर दोनों में युद्ध हुआ था। गुस्से में भगवान गणेश ने परशुरामजी को अपनी सूंड में लपेटकर समस्त लोकों में घुमा दिया था। इसी लड़ाई में गणेश जी का एक दांत टूटा था। तब से गणेश जी एक दंत कहलाए।

 

भगवान गणेश के पेट पर था नाग 

 

दंतेवाड़ा शहर से ढोलकल पहाड़ी करीब 22 किमी की दूरी पर है। इस पहाड़ी पर चढ़ना बेहद मुश्किल है। एक दंत गजानन की 6 फीट ऊंची और 21/2 फीट चौड़ी ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित प्रतिमा को वास्तुकला के लिहाज से अत्यंत कलात्मक तरीके से बनवाया गया था। नागवंशी राजाओं ने भगवान की मूर्ति का निर्माण करवाते वक्त अपने राजवंश का एक चिन्ह अंकित कर दिया था। गणेशजी

के पेट पर नाग देवता का चिह्न स्पष्ट दिखता था। भक्त भगवान गणेश की प्रतिमा में नाग देवता के भी दर्शन करते थे।

 

उसी स्थान पर विराजे हैं गणेश जी

 

भगवान गणेश के पूजन के लिए यहां लोग दूर-दूर से आते हैं। सुनसान रहने वाली इस पहाड़ी पर भगवान गणेश की प्रतिमा के कारण ही चहलपहल रहती है। यही वजह है कि नक्सलियों को समस्या पैदा होने लगी थी। उन्होंने भगवान गणेश की प्रतिमा को पहाड़ी से नीचे गिरा दिया था, लेकिन भक्त फिर से प्रतिमा को नीचे से लाए और पूजन कर उसी स्थान पर स्थापित किया।

 

- कमल सिंघी

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