Gyan Ganga: अगस्त्य मुनि के आश्रम में रामकथा श्रवण करने पधारे भगवान शंकर और माँ पार्वती जी

By सुखी भारती | Mar 28, 2024

ऋर्षि याज्ञवल्क्यजी के चरणों में, मुनि भारद्वाजजी जी श्रद्धा पूर्वक बैठ कर अपनी जिज्ञासा रखते हैं। वे कहते हैं, कि काशी में भगवान शंकर सदा ही राम नाम की महिमा गाते हैं, वहाँ मरने वालों को राम नाम से ही मुक्ति प्रदान करवाते हैं। लेकिन वहीं एक राम अवध में भी अवतार लेकर आते हैं। क्या अवध में जन्में श्रीराम और काशी में भगवान शंकर द्वारा मुक्ति प्रदाता राम नाम एक ही हैं, अथवा इनमें कोई भिन्नता है?


‘प्रभु सोई राम कि अपर कोउ जाहि जपत त्रिपुरारि।

सत्यधाम सर्बग्य तुम्ह कहहु बिबेकु बिचारि।।’


ऋर्षि याज्ञवल्क्यजी से मुनि ने जो प्रश्न रखा, उसमें उन्होंने मानों मन ही मन तीव्र अभिलाषा रखदी थी, कि वे श्रीराम जी की कथा को विस्तार पूर्वक सुनना चाहते हैं-


‘जैसें मिटै मोर भ्रम भारी।

कहहु सो कथा नाथ बिस्तारी।।

जागबलिक बोले मुसुकाई।

तुम्हहि बिदित रघुपति प्रभुताई।।’


मुनि भारद्वाजजी यह भी कह सकते थे, कि मुझे बस इतना बता दीजिए, कि अवध में जन्में श्रीराम, और भगवान शंकर द्वारा जपे जाने वाले राम क्या एक ही हैं, अथवा भिन्न हैं। उत्तर में ऋर्षि याज्ञवल्क्यजी कह देते कि दोनों एक ही हैं।

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लेकिन मुनि भारद्वाजजी ने कहा, कि मुझे सब कुछ पूरे विस्तार से सुनना है। कथा को इतने विस्तार से कहिए, कि मेरा एक भी संशय बाकी न रहे। ऋर्षि याज्ञवल्क्यजी ने मुनि के मुख से यह वाक्य सुनें, तो वे मुस्करा पड़े, और बोले-


‘रामभगत तुम्ह मन क्रम बानी।

चतुराई तुम्हारि मैं जानी।।

चाहहु सुनै राम गुन गुढ़ा कीन्हिहु प्रस्न मनहुँ अति मूढ़ा।।’


हे मुनिराज! आप मन, वचन और कर्म से श्रीराम जी के भक्त हैं। आपकी चतुराई को मैं जान गया हूं। इसी कारण आपने ऐसा प्रश्न किया है, मानों जैसे आप बड़े ही मूढ़ हों। चलो ऐसा ही है, तो मैं आपसे श्रीराम की वह कथा कहता हुँ, जिसे आप श्रद्धा पूर्वक श्रवण करें।


कारण कि श्रीराम जी की कथा चंद्रमा की किरणों के समान है, जिसे संत रुपी चकोर सदा पान करते हैं।


‘रामकथा ससि किरन समाना।

संत चकोर करहिं जेहि पाना।।’


एक बार ऐसा ही संदेह पार्वती जी ने भगवान शंकर जी के समक्ष रखा था, कि अवध में रहने वाले श्रीराम, और काशी में निरंतर जपे जाने वाले राम नाम, क्या एक ही हैं, अथवा उनमें भिन्नता है? अब मैं वही संवाद, अपनी बुद्धि के अनुसार कहता हुँ। वह जिस समय और जिस हेतु से हुआ, हे मुनि! आप उसे सुनो, आपका विषाद मिट जायेगा।


‘एक बार त्रेता जुग माहीं।

संभु गए कुंभज रिषि पाहीं।।

संग सती जगजननि भवानी।

पूजे रिषि अखिलेस्वर जानी।।’


एक बार त्रेता युग में भगवान शंकर जगत जननी माँ पार्वती जी को लेकर अगस्तय मुनि के आश्रम में गये। मुनि में सकल जगत् के ईश्वर जान कर उनका पूजन किया। मुनि ने वहाँ श्रीराम जी की कथा विस्तार से कही। जिसे भगवान शंकर जी ने परम सुख मान कर सुना-


‘रामकथा मुनिबर्ज बखानी।

सुनी महेस परम सुखु मानी।।’


सज्जनों! गोस्वामी जी के शब्दों को हमें बड़े ध्यान से श्रवण सुनना चाहिए। क्योंकि अभी-अभी तो वे कह कर हटे हैं, कि अगस्त्य मुनि के आश्रम में भगवान शंकर और माँ पार्वती जी, दोनों रामकथा श्रवण करने पधारे हैं। लेकिन जब मुनि कथा वाचन कर रहे हैं, तो गोस्वामी जी ने कहा, कि महेश्वर जी ने कथा को परम सुख मान कर सुना। यहाँ गोस्वामी जी यह भी तो कह सकते थे, कि पार्वती जी ने भी बड़े ध्यान व श्रद्धा से श्रीराम कथा श्रवण की। लेकिन वे ऐसा नहीं कहते। बस केवल भगवान शंकर का ही नाम लेते हैं। मानों माँ पार्वती जी तो वहाँ पर थी ही नहीं।


क्या ऐसा संभव है, कि पार्वती जी भगवान शंकर जी के साथ आश्रम में तो गईं, लेकिन चलती कथा में उठ कर वन मे विहार करने चली गई, और भगवान शंकर कथा सुनते रहे? निःसंदेह ऐसा स्वपन में भी संभव नहीं। लेकिन फिर गोस्वामी जी केवल महेश्वर जी का ही नाम क्यों लेते हैं? गोस्वामी जी एक चौपाई में फिर ऐसा वर्णन करते हैं, मानों शिवजी के साथ माता पार्वतीजी वहाँ हों ही न-


‘कहत सुनत रघुपति गुन गाथा।

कछु दिन तहाँ रहे गिरिनाथा।।

मुनि सन बिदा मागि त्रिपुरारी। 

चले भवन सँग दच्छकुमारी।।’


गोस्वामी जी कहते हैं, कि भगवान शंकर कुछ दिनों तक मुनि के आश्रम में रहकर श्रीराम कथा का रसपान करते हैं। और फिर मुनि से विदा माँग कर दक्षकुमारी के साथ वापिस चल पड़ते हैं-


‘कहत सुनत रघुपति गुन गाथा।

कछु दिन तहाँ रहे गिरिनाथा।।

मुनि सन बिदा मागि त्रिपुरारी।

चले भवन सँग दच्छकुमारी।।’


अब कोई गोस्वामी जी से पूछे, कि भई इतने दिनों तक महेश्वर जी अपनी पत्नी पार्वती जी संग आश्रम में ही तो रुके थे। फिर यह केवल भगवान शंकर जी का ही नाम क्यों लिया, कि वे आश्रम में रहे। क्या माँ पार्वती कहीं और जाकर ठहरी थी? जी नहीं! ऐसा भी नहीं था।


एक और आश्चर्य की बात, जो गोस्वामी जी ने कही, कि जब भगवान शंकर माँ पार्वती जी को लेकर वापिस कैलाश को चले, तो गोस्वामी जी माँ पार्वती जी के लिए जगत जननी जैसे आदरपूर्वक शब्दों का प्रयोग न करके यह कहते हैं, कि भगवान शंकर दक्षकुमारी के साथ कैलाश को चले।


गोस्वामी जी के इन गूढ़ शब्दों के क्या अर्थ हैं, जानेंगे अगले अंक में---(क्रमशः)---जय श्रीराम।


- सुखी भारती

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