Madan Mohan Malviya Birth Anniversary: पं. मदन मोहन मालवीय ने हैदराबाद के निजाम को ऐसे सिखाया था सबक, गांधी ने दी थी 'महामना' की उपाधि

By अनन्या मिश्रा | Dec 25, 2024

कोई भी देश तभी ताकतवर हो सकता है, जब सभी समुदाय के लोग आपसी सद्भावना और सहयोग रखें। यह वाक्य पं. मदन मोहन मालवीय है। आज ही के दिन यानी की 25 दिसंबर को पं. मदन मोहन मालवीय का जन्म हुआ था। उन्होंने अपने कार्यों से समाज सुधार, शिक्षा, स्वाधीनता संग्राम, पत्रकारिता और धार्मिकता के क्षेत्र में गहरा योगदान दिया। इसके अलावा पं. मालवीय ने हिंदी भाषा का प्रचार, बीएचयू की स्थापना और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर पं. मदन मोहन मालवीय के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और शिक्षा

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 25 दिसंबर 1861 को पंडित मदन मोहन मालवीय का जन्म हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय से पूरी की थी। वहीं महात्मा गांधी ने उनको महामना की उपाधि दी थी। मदन मोहन मालवीय 4 बार कांग्रेस के अध्यक्ष बनें और सत्य, धर्म और शिक्षा को अपनी प्राथमिकता बनाई।


सपना और संघर्ष

बता दें कि बीएचयू के निर्माण के लिए जब महामना चंदा इकट्ठा करने निकले तो उनका समाना हैदराबाद के निजाम से हुआ। जब महामना ने हैदराबाद के निजाम से आर्थिक मदद मांगी, तो निजाम ने बदतमीजी करते हुए कहा कि उनके पास सिर्फ जूती है। जिस पर मालवीय ने निजाम की जूती को उठाकर नीलाम करने की घोषणा कर दी। इस घोषणा को सुनकर निजान ने भारी दान देकर अपनी इज्जत बचाई। वहीं जब साल 1916 में काशी में हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की, तो इस विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए 1 करोड़ 64 लाख रुपए का चंदा इकट्ठा हुआ था।


स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी मदन मोहन मालवीय ने सक्रिय भूमिका निभाई थी। वह सविनय अवज्ञा आंदोलन और असहयोग आंदोलन का हिस्सा रहे। तब गांधी जी ने उनको महामना की उपाधि दी थी और अपना बड़ा भाई माना था। वह साल 1909, 1913, 1919, और 1932 में यानी की 4 बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बनें। वहीं अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय जनता की आवाज बुलंद की।


सत्यमेव जयते को बनाया लोकप्रिय

पंडित मदन मोहन मालवीय ने 'सत्यमेव जयते' वाक्य को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। साल 1918 में कांग्रेस अधिवेशन में मालवीय ने इस वाक्य का इस्तेमाल किया था। जिससे यह वाक्य पूरे देश का आदर्श वाक्य बन गया था। बाद में भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे भी यह अंकित किया गया।


सम्मान

वहीं साल 2014 में पं. मदन मोहन मालवीय को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। वह न सिर्फ एक शिक्षाविद् और स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि वह एक महान समाज सुधारक भी थे।


मृत्यु

भारत की स्वतंत्रता से करीब 1 साल पहले 12 दिसंबर 1946 को पं. मदन मोहन मालवीय का निधन हो गया था।

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