ममता बनर्जी की 25 दिनों की वो भूख हड़ताल आजतक बंगाल की आर्थिक सेहत पर भारी पड़ रही है

By नीरज कुमार दुबे | Nov 01, 2023

पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार राज्य में निवेश आकर्षित करने के लिए खुद को उद्योग हितैषी दर्शाने के लिए काफी प्रयास कर रही है। ममता बनर्जी सरकार का दावा है कि राज्य में निवेश के अनुकूल माहौल है इसलिए किसी को भी मौका चूकना नहीं चाहिए। इसके लिए ममता बनर्जी की सरकार इसी नवंबर माह में 21 और 22 तारीख को कोलकाता में ग्लोबल बिजनेस समिट भी आयोजित कर रही है। इस बिजनेस समिट में देश-विदेश के निवेशक आ सकें इसके लिए खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मोर्चा संभाला हुआ है। हाल ही में ममता बनर्जी स्पेन और दुबई की 10 दिवसीय यात्रा पर भी गयी थीं ताकि निवेशकों को बंगाल में आमंत्रित किया जा सके। लेकिन इसी बीच तृणमूल कांग्रेस का उद्योग विरोधी चेहरा तब फिर सामने आ गया जब एक मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम को निर्देश दिया कि वह घरेलू वाहन विनिर्माता टाटा मोटर्स को सिंगूर संयंत्र में हुए नुकसान की भरपाई के लिए उसे 766 करोड़ रुपये का मुआवजा दे।


देखा जाये तो आज भले ममता बनर्जी कह रही हों कि उनकी सरकार ने राज्य में निवेश के अनुकूल माहौल बनाया है और तृणमूल कांग्रेस के शासन में बंगाल औद्योगिक विकास के मामले में आगे बढ़ा है लेकिन सच्चाई यह है कि 2006 में ममता बनर्जी ने अपनी छवि औद्योगिक विकास की विरोधी नेता की बना ली थी क्योंकि उन्होंने सिंगूर और नंदीग्राम में उद्योगों के लिए किये जा रहे भूमि अधिग्रहण का विरोध किया था। इसके नतीजतन टाटा नैनो को सिंगूर में अपनी कार परियोजना वापस लेनी पड़ी थी। उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने उद्योगों को आकर्षित करने के लिए टाटा नैनो प्रोजेक्ट को गुजरात के साणंद में लगाने में मदद की और जल्द ही मोदी की छवि उद्योग जगत के बीच विकासशील नेता की बन गयी थी। हालात ऐसे हो गये थे कि बंगाल से निवेशक दूर होते जा रहे थे वहीं गुजरात में देश ही नहीं विदेशी निवेशक भी रुचि दिखा रहे थे।

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देखा जाये तो टाटा 'नैनो' के निर्माण प्लांट को पश्चिम बंगाल से बाहर भेजने के लिये दबाव डालना 'बड़ी भूल' थी और इसने अन्य उद्योगपतियों के लिये बाधाएं पैदा करने का काम किया था। उस समय 1000 करोड़ रुपए का निवेश कर चुकी टाटा मोटर्स के प्रोजेक्ट के उखड़ते दृश्य टीवी पर इतने बार दिखाये गये थे कि हर उद्योगपति ने यह बात अपने पल्ले बांध ली थी कि बंगाल में निवेश से दूर रहना है। इसलिए अब जब राज्य सरकार ग्लोबल बिजनेस समिट आयोजित करने जा रही है तब सिंगूर का भूत एक बार फिर सामने आकर खड़ा हो गया है जिसे देखकर सबके हाथ-पांव फूल रहे हैं।


ममता बनर्जी सरकार की मुश्किल यह है कि वह अब यदि जोरदार तरीके से सिंगूर आंदोलन में अपनी भूमिका का बचाव करे तो निवेशक फिर भागेंगे। राज्य सरकार यदि इस मामले पर चुप्पी साधे रहेगी तब भी उद्योगपतियों के मन से संशय के बादल नहीं छंटेंगे। वैसे भी सिंगूर आंदोलन से तृणमूल कांग्रेस पल्ला इसलिए नहीं झाड़ सकती क्योंकि इसी की बदौलत वह वामपंथियों के दशकों पुराने शासन को उखाड़ कर सत्ता हासिल कर पाई थी। लेकिन उस आंदोलन की वजह से केवल औद्योगीकरण को ही नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल की प्रतिष्ठा को भी गंभीर नुकसान पहुंचा था। यह एक सच्चाई है कि एक समय पश्चिम बंगाल देश के बड़े औद्योगिक राज्यों में शुमार था लेकिन आज वह निवेश के लिए तरस रहा है।


जहां तक टाटा मोटर्स के पक्ष में आये फैसले की बात है तो आपको बता दें कि टाटा मोटर्स ने शेयर बाजार को दी गई सूचना में कहा है कि तीन-सदस्यीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया है। इसके मुताबिक, कंपनी प्रतिवादी पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड से 765.78 करोड़ रुपये की राशि 11 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ वसूलने की हकदार है। ब्याज की गणना एक सितंबर, 2016 से मुआवजा चुकाने की तारीख तक होगी। टाटा मोटर्स ने सिंगूर संयंत्र बंद होने से हुए नुकसान की भरपाई के लिए पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड से मुआवजा मांगा था। इसमें पूंजी निवेश पर हुए नुकसान समेत अन्य मदों में दावा किया गया था।


देखा जाये तो यह फैसला राज्य सरकार के लिए बड़ा झटका है लेकिन ग्लोबल बिजनेस समिट की तैयारियों में जुटी पश्चिम बंगाल सरकार ने इस पर चुप्पी साध ली है और सत्तारुढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने बेहद सधी हुई प्रतिक्रिया दी है। तृणमूल कांग्रेस ने टाटा मोटर्स की जीत को तवज्जो नहीं देते हुए कहा है कि यह ‘‘अंतिम फैसला नहीं है’’ तथा राज्य सरकार के सामने कानूनी रास्ते खुले हैं। हालांकि तृणमूल कांग्रेस चाहे कुछ भी कहे लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि ममता सरकार को यदि सरकारी खजाने से टाटा को 766 करोड़ रुपए देने पड़े तो बड़ी मुश्किल हो जायेगी क्योंकि पहले ही गलत आर्थिक नीतियों के चलते राज्य का खजाना खाली बताया जा रहा है। दरअसल राज्य सरकार ने अपने संसाधनों का बेहतर उपयोग करके कभी राजस्व बढ़ाने की दिशा में सही प्रयास ही नहीं किये। यह अलग बात है कि राज्य के मंत्रियों और विधायकों के यहां अक्सर पड़ने वाले छापों के दौरान जो करोड़ों रुपए मिलते हैं वह दर्शाते हैं कि राज्य में पैसे की कोई कमी नहीं है। आज के बंगाल की यह कड़वी सच्चाई है कि भ्रष्टाचार चरम पर है, तुष्टिकरण की राजनीति को बढ़ावा दिया जा रहा है और लोक लुभावन नीतियों की वजह से हो रही धन की बर्बादी के चलते राज्य पर कर्ज का भारी बोझ है। ऐसे में टाटा को 766 करोड़ रुपए का मुआवजा देने का निर्देश कैसे पूरा होगा यह सवाल सबके जेहन में आना स्वाभाविक है।


बहरहाल, सिंगूर के आंदोलन ने राज्य से निवेशकों को तो दूर किया ही था साथ ही टाटा मोटर्स का प्रोजेक्ट काफी हद तक लग जाने के चलते कृषि भूमि भी उपजाऊ नहीं रह गयी थी। यही नहीं, तृणमूल कांग्रेस ने सिंगूर के लोगों से विकास और रोजगार के जो वादे किये थे, बताया जाता है कि वह अब तक पूरे नहीं हुए हैं। कुल मिलाकर देखें तो बंगाल के हाथ से एक बड़ा प्रोजेक्ट गया था, कृषि भूमि बर्बाद हो गयी थी, किसानों को जमीन तो वापस मिल गयी लेकिन सुनहरा भविष्य नहीं मिला। अब 766 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ राज्य के खजाने पर पड़ गया है। कहा जा सकता है कि 2006 में ममता बनर्जी ने कोलकाता में एस्पलेनैड में 25 दिनों तक जो अनिश्चिकालीन भूख हड़ताल की थी उसका विपरीत असर राज्य की आर्थिक सेहत पर लगातार देखने को मिल रहा है।


-नीरज कुमार दुबे

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