ममता की टकराव की राजनीति से कमजोर होगा कानून का शासन

By योगेंद्र योगी | Aug 11, 2025

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ठान लिया है कि हरहाल में केंद्र सरकार और स्वायत्त संवैधानिक संस्थाओं का विरोध करना है। सीमा संबंधी विवादों में जिस तरह पाकिस्तान और चीन से भारत का टकराव रहता है, ठीक ऐसी ही हालत ममता बनर्जी के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल की हो गई है। ममता का बस चले तो अदालतों के निर्णर्यों को भी नहीं माने, किन्तु अवमानना के भय से मानना मजबूरी बन गई है। विवादों की इसी श्रृंखला में केंद्रीय चुनाव आयोग से टकराव की एक कड़ी ओर जुड़ गई है। ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग के निर्देश पर चार अफसरों को निलंबित करने से किया इंकार कर दिया।   


निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची तैयार करने में कथित चूक को लेकर राज्य सरकार के चार अधिकारियों और एक डाटा एंट्री ऑपरेटर को निलंबित करने का निर्देश दिया था। ममता ने चुनाव आयोग के इस कदम की वैधता पर सवाल उठाया और आयोग पर भारतीय जनता पार्टी के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि हम उन्हें निलंबित नहीं करेंगे। ममता ने निर्वाचन आयोग को भाजपा का बंधुआ मजदूर करार देते हुए कहा कि वे अमित शाह और बीजेपी के एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं। चुनाव आयोग से इस टकराव से कुछ दिनों पहले अवैध बांग्लादेशियों की शिनाख्त और उन्हें वापस भेजे जाने के मुद्दे को लेकर भी ममता सरकार ने इसी तरह का रुख अख्तियार किया था।   


अल्पसंख्यक वोट बैंक को हरहाल में अपनी तरफ रखने के प्रयासों के तहत ममता बनर्जी ने बांग्लादेशियों के मुद्दे पर दिल्ली पुलिस की तरफ से भेजे गए पत्र में भाषा और शब्दों पर आपत्ति जताई थी। दिल्ली पुलिस ने वैध दस्तावेजों के बगैर भारत रह रहे 8 संदिग्ध बांग्लादेशी नागरिकों की गिरफ्तारी के संबंध में बंग भवन के कार्यालय प्रभारी को एक पत्र लिखा था। ममता बांग्लादेशी शब्द लिखने पर भड़क गई। उन्होंने केंद्र की भाजपा सरकार को बंगाल विरोधी तक करार दे दिया। इस पर भाजपा आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने ममता बनर्जी को भाषाई संघर्ष भड़काने के लिए, शायद राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत भी जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। वोट बैंक के लिए ममता बनर्जी की तुष्टिकरण का ही परिणाम है कि मुर्शिदाबाद में वक्फ कानून के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क गई थी, जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई।   


केंद्रीय एजेंसियों और स्वायत्तशाषी संस्थाओं से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के टकराव की फेहरिस्त काफी लंबी है। वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के डायमंड हार्बर में हुए रोड शो के दौरान पथराव और हमले में सुरक्षा चूक को लेकर पश्चिम बंगाल डीजीपी और चीफ़ सेक्रेटरी से जवाब तलब किया था। राज्य सरकार ने कोरोना का हवाला देकर दोनों अधिकारियों को भेजने से इंकार कर दिया। इससे पहले केंद्र ने जेपी नड्डा की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल रहे तीन आईपीएस अधिकारियों को डेप्युटेशन पर भेजने का निर्देश दिया था। राज्य सरकार ने कहा था कि पश्चिम बंगाल में पहले से ही आईपीएस अधिकारियों की संख्या काफी कम है। ऐसे में तीन अधिकारियों को डेप्युटेशन पर भेजना संभव नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अम्फान तूफान प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने के दौरान प्रोटोकाल की परवाह किए बगैर ममता बनर्जी बैठक में शामिल नहीं हुई। देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब सबसे बड़ी जांच एजेंसी के पांच अधिकारियों को राज्य की पुलिस ने हिरासत में ले लिया गया। शारदा चिट फंड घोटाले की जांच कर रही सीबीआई टीम कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के घर पहुंची। पुलिस कमिश्नर के घर पर तैनात गार्ड ने सीबीआई टीम को अंदर आने से रोक दिया। पुलिस सीबीआई के रिजनल दफ्तर पहुंची।   

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पुलिस ने सीबीआई के पांच अधिकारियों को हिरासत में भी ले लिया। सीबीआई की कार्रवाई के विरोध में ममता बनर्जी मेट्रो चैनल के पास धरने पर बैठ गईं। देश में संवैधानिक ढांचे का ऐसा मजाक शायद ही किसी राज्य में उड़ाया गया हो, जहां भारतीय सिविल सेवा का अधिकारी धरने पर शामिल हुआ हो। सिविल सेवा के अधिकारी होते हुए कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार अपने घर से बाहर निकले और ममता बनर्जी के साथ धरने पर बैठे। ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता जगह-जगह प्रदर्शन किए। कई जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुतले फूंके गए और हावड़ा-हुगली में ट्रेन को रोक दिया गया। इसके अलावा देश में राज्यपाल और मुख्यमंत्री के संबंधों में कटुता की पश्चिमी बंगाल में सारी हदें पार हो गई। विधानसभा के वर्षाकालीन अधिवेशन के दौरान राज्यपाल रहे जगदीप धनखड़ ने अभिभाषण के मसौदे में से कुछ हिस्सों को बदलने की मांग की। लेकिन सरकार ने इससे साफ इंकार कर दिया। ममता बनर्जी और उनकी पार्टी ने राज्यपाल धनखड़ पर जैन हवाला मामले में शामिल होने और हरियाणा में विवेकाधीन कोटे से जमीन का अवैध आवंटन कराने के मामले में शामिल होने का आरोप लगाया। राजभवन में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में राज्यपाल ने ममता के इस आरोप को निराधार करार दिया। राज्यपाल धनखड़ और ममता सरकार के बीच अभिभाषण पर भी विवाद बढ़ गया।   


देश के राजनीतिक इतिहास में ऐसा पहले कभी किसी भी राज्य की सरकार ने नहीं किया, जो ममता ने वैधानिक परंपराओं को तिलांजलि देते हुए कर दिखाया। सरकार ने अभिभाषण का मसौदा राजभवन भेजा। लेकिन राज्यपाल धनखड़ ने यह कहते हुए इसमें बदलाव की मांग की कि इसमें लिखी बातों और जमीनी हकीकत में भारी अंतर है। लेकिन उसके बाद ममता बनर्जी ने फोन पर राज्यपाल को बताया कि अब इसमें बदलाव संभव नहीं है। राज्य मंत्रिमंडल ने इस अभिभाषण को अनुमोदित कर दिया। राज्यपाल जगदीप धनखड़ पश्चिम बंगाल में चुनाव नतीजों के बाद हुई हिंसा को लेकर ममता बनर्जी और उनकी सरकार पर लगातार हमलावर मुद्रा में रहे। इसके अलावा उन्होंने मुकुल रॉय के बीजेपी छोड़कर टीएमसी में शामिल होने के बाद दल-बदल कानून को सख्ती से लागू करने की बात कही थी। टीएमसी नेताओं का कहना है कि राज्यपाल सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप कर रहे हैं। साथ ही कुछ दिन पहले राजभवन में हुई कुछ नियुक्तियों को लेकर भी राज्यपाल जगदीप धनखड़ पर आरोप लगाए गए थे।   


पश्चिमी बंगाल में ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही सभी राज्यपालों से संबंध कटुतापूर्ण रहे हैं। धनखड़ के बाद राज्यपाल बने सीवी आनंद बोस के साथ विवाद इतना बढ़ गया कि मामला हाईकोर्ट तक जा पहुंचा। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यह बयान दिया था कि राज्यपाल के खिलाफ हालिया आरोपों के कारण महिलाएं पश्चिम बंगाल में राजभवन में प्रवेश करने में सुरक्षित महसूस नहीं कर रही हैं। कलकत्ता हाई कोर्ट ने मुख्यमंत्री और तीन अन्य को राज्यपाल सीवी आनंद बोस के खिलाफ कोई भी अपमानजनक या गलत बयान देने से रोक दिया।   


पश्चिमी बंगाल का चुनावी इतिहास भी सर्वाधिक रक्तरंजित रहा है। चुनावी हिंसा का कलंक कभी बिहार और उत्तरप्रदेश पर था। इसके बाद पश्चिमी बंगाल देश में पहले स्थान पर है। पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता के नेतृत्व वाली राज्य सरकार जिस तरह हर मुद्दे पर केंद्र और संवैधानिक संस्थाओं से टकराव मोल ले रहीं हैं, उससे यही लगता है कि देश की संवैधिानिक व्यवस्था में उनका विश्वास नहीं रहा है, जबकि देश में दूसरे राज्यों में गैरभाजपा सरकारों पर पश्चिमी बंगाल की तरह व्यवस्था से खिलवाड़ करने की ऐसे बड़े उदाहरण देखने को नहीं मिलते। सत्ता को बरकरार रखने के लिए ममता बनर्जी द्वारा उठाए गए कदम निश्चित तौर पर देश की एकता-अखंडता और कानूनी शासन को कमजोर करेंगे।


- योगेन्द्र योगी

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